Haryana Board (HBSE) Class 12 Political Science SAT-1 Question Paper 2026 Answer Key. Get the Students Assessment Test (SAT) Class 12 Political Science question paper with complete solution, accurate answer key, and expert preparation tips. The Haryana Board of School Education (HBSE) conducts SAT as an important assessment for Class 12 students. Best resource for Haryana Board Class 12 SAT Political Science exam practice, quick revision, and scoring better marks.
HBSE Class 12 Political Science SAT-1 Question Paper 2026 Answer Key
Instructions :
• All questions are compulsory.
• Questions (1-5) carry 1 mark each.
• Questions (6-7) carry 2 marks each.
• Questions (8-9) carry 3 marks each.
• Question (10) carry 5 marks.
1. ‘भारतीय स्वतंत्रता कानून’ कब पारित हुआ?
(A) वर्ष 1947 में
(B) वर्ष 1946 में
(C) वर्ष 1948 में
(D) वर्ष 1949 में
उत्तर – (A) वर्ष 1947 में
2. भारत के प्रथम चुनाव आयुक्त कौन थे?
(A) बलराम जाखड
(B) सुकुमार सेन
(C) हुकुम सिंह
(D) शिवराज पाटिल
उत्तर – (B) सुकुमार सेन
3. भारत में पहली पंचवर्षीय योजना ………….. में लागू की गई थी।
उत्तर – 1951 में
4. आजादी के बाद भारत में कैसी अर्थव्यवस्था लागू की गई?
उत्तर – मिश्रित अर्थव्यवस्था
5. अभिकथन (A) : ‘जय जवान, जय किसान’ नारे का संबंध श्री लाल बहादुर शास्त्री से है।
कारण (R) : 1967 के चुनावों में कांग्रेस लोकसभा के चुनाव भी हारी और विधानसभा के भी।
(A) (A) और (R) दोनों सही है, और (R), (A) का सही स्पष्टीकरण है।
(B) (A) और (R) दोनों सही है, किंतु (R), (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
(C) (A) सही है, किंतु (R) गलत है।
(D) (R) सही है, किंतु (A) गलत है।
उत्तर – (C) (A) सही है, किंतु (R) गलत है।
6. भारत की दलीय व्यवस्था के कोई दो लक्षण बताईए।
उत्तर – भारत की दलीय व्यवस्था के दो प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं :
(i) बहुदलीय व्यवस्था – भारत में अनेक राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं। देश की सामाजिक, भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के कारण यह बहुदलीय प्रणाली विकसित हुई है।
(ii) क्षेत्रीय दलों की बढ़ती भूमिका – क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों या क्षेत्रों के हितों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और केंद्र की राजनीति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
7. मिश्रित अर्थव्यवस्था का क्या अर्थ है?
उत्तर – मिश्रित अर्थव्यवस्था वह आर्थिक व्यवस्था है जिसमें सरकार और निजी क्षेत्र दोनों मिलकर देश की आर्थिक गतिविधियों का संचालन करते हैं। इस व्यवस्था में सार्वजनिक और निजी स्वामित्व दोनों का सह-अस्तित्व होता है, तथा बाजार की शक्तियों के साथ सरकारी नियोजन भी कार्य करता है। इसका उद्देश्य आर्थिक विकास के साथ सामाजिक न्याय और समान अवसर सुनिश्चित करना होता है।
8. कांग्रेस में फूट के क्या कारण थे?
उत्तर – कांग्रेस में 1969 में फूट के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे :
(i) नेतृत्व संघर्ष – पार्टी के वरिष्ठ नेता ‘सिंडिकेट’ और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीच सत्ता और निर्णय लेने को लेकर मतभेद थे। इंदिरा गांधी ने अपने समर्थकों की संख्या बढ़ाई और पार्टी एवं सरकार पर अपनी पकड़ मजबूत की, जिससे पारंपरिक नेताओं की स्थिति कमजोर हुई और टकराव बढ़ गया।
(ii) राष्ट्रपति चुनाव विवाद – 1969 के राष्ट्रपति चुनाव में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार का विरोध करते हुए वी.वी. गिरी को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में समर्थन दिया। इस कदम ने पार्टी में गहरी खाई पैदा कर दी और मतभेद स्पष्ट हो गए।
(iii) विचारधारात्मक मतभेद – इंदिरा गांधी ने गरीब जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए समाजवादी नीतियाँ अपनाईं, जैसे बैंकों का राष्ट्रीयकरण और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम। जबकि ‘सिंडिकेट’ के नेता इन नीतियों के विरोधी थे और पारंपरिक दृष्टिकोण के पक्षधर थे। इस विचारधारात्मक अंतर ने फूट को और बढ़ावा दिया।
9. भारत में हरित क्रांति अपनाने के कोई तीन कारण लिखिए।
उत्तर – भारत में हरित क्रांति अपनाने के तीन मुख्य कारण :
(i) खाद्यान्न की कमी – 1960 के दशक में भारत में लगातार खाद्यान्न की कमी और अकाल जैसी स्थिति पैदा हो रही थी। इससे भूखमरी का खतरा बढ़ गया और देश की आर्थिक स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। इस स्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया कि देश में पर्याप्त खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है।
(ii) जनसंख्या वृद्धि – उस समय भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही थी। बढ़ती जनसंख्या के कारण भोजन की मांग लगातार बढ़ रही थी और पारंपरिक कृषि पद्धतियों से इस बढ़ती मांग को पूरा करना कठिन हो रहा था। इससे यह आवश्यक हो गया कि कृषि उत्पादन में सुधार करके अधिक अन्न उत्पादन किया जाए।
(iii) कृषि उत्पादन में वृद्धि की आवश्यकता – पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ सीमित उत्पादन देती थीं और अधिकांश किसानों की पैदावार काफी कम थी। इसलिए उच्च उपज देने वाले बीज, आधुनिक सिंचाई तकनीक, उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग करके अन्न उत्पादन बढ़ाना और देश को आत्मनिर्भर बनाना जरूरी था।
10. राष्ट्र निर्माण के तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – राष्ट्र निर्माण का अर्थ है एक ऐसा मजबूत और एकजुट राष्ट्र तैयार करना, जिसमें लोग, भूभाग, सरकार और संप्रभुता के आधार पर समाज और राज्य का समग्र विकास हो। राष्ट्र निर्माण केवल राजनीतिक या आर्थिक पहलू तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक सक्रियता का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।
• राष्ट्र निर्माण के मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं :
(i) जनसंख्या – राष्ट्र के लिए एक निश्चित संख्या में लोग होना आवश्यक है। ये लोग राष्ट्र के सदस्य होते हैं और उनकी सक्रिय भागीदारी, सहयोग, उत्तरदायित्व और राष्ट्रीय भावना राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
(ii) निश्चित भूभाग – राष्ट्र के पास एक स्पष्ट और मान्यता प्राप्त भौगोलिक क्षेत्र होना चाहिए। इस क्षेत्र में सीमाएँ निश्चित होती हैं और यह न केवल राष्ट्र की स्थिरता और सुरक्षा के लिए जरूरी है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों के सुचारू संचालन के लिए भी आवश्यक है।
(iii) सरकार – हर राष्ट्र की अपनी सरकार होती है जो कानून बनाती है, उन्हें लागू करती है और नागरिकों के अधिकारों व कर्तव्यों की रक्षा सुनिश्चित करती है। मजबूत और सक्षम सरकार ही राष्ट्र को राजनीतिक स्थिरता, सुशासन और न्यायसंगत प्रशासन प्रदान कर सकती है।
(iv) संप्रभुता – राष्ट्र स्वतंत्र रूप से अपने आंतरिक और बाहरी मामलों में निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिए। संप्रभुता के बिना राष्ट्र अपनी नीति, आर्थिक योजना और विदेश संबंधों को स्वतंत्र रूप से निर्धारित नहीं कर सकता।
(v) सांस्कृतिक एकता – समान भाषा, धर्म, रीति-रिवाज और परंपराएं लोगों को जोड़ती हैं। यह साझा सांस्कृतिक आधार नागरिकों में एकजुटता और राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करता है, जिससे राष्ट्र के प्रति समर्पण और सामूहिक जिम्मेदारी की भावना उत्पन्न होती है।
(vi) राजनीतिक एकता – समान कानून और सुसंगत प्रशासन व्यवस्था नागरिकों को एक-दूसरे से जोड़ती है। यह राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने में सहायक है और समाज में अनुशासन, समरसता और न्याय की भावना को बढ़ावा देती है।
(vii) राष्ट्रीयता की भावना और नेतृत्व – लोगों में राष्ट्र के प्रति समर्पण और साझा उद्देश्य की भावना होना आवश्यक है। इसके साथ ही, दूरदर्शी नेतृत्व और मजबूत संस्थाएँ राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को दिशा और समर्थन प्रदान करती हैं, जिससे राष्ट्र अपने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लक्ष्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त कर सके।
अथवा
भारत द्वारा गुट निरपेक्षता की नीति अपनाने के क्या कारण थे?
उत्तर – भारत द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण :
(i) औपनिवेशिक अतीत से मुक्ति – भारत हाल ही में स्वतंत्र हुआ था। उसने अपने अनुभव से यह सीखा कि किसी भी विदेशी शक्ति या गुट में शामिल होने से उसकी स्वतंत्रता और संप्रभुता पर खतरा हो सकता है। इसलिए भारत ने यह निर्णय लिया कि वह किसी भी सैन्य या राजनीतिक गठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगा। यह नीति भारत को अपने फैसलों में स्वतंत्रता और किसी बाहरी दबाव से सुरक्षा प्रदान करती थी।
(ii) स्वतंत्रता और स्वायत्तता बनाए रखना – गुटनिरपेक्षता ने भारत को पश्चिमी पूंजीवाद और सोवियत साम्यवाद के राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक प्रभावों से मुक्त रखा। इस नीति के माध्यम से भारत अपने विदेश नीति, रक्षा और आर्थिक निर्णय स्वतंत्र रूप से ले सकता था। इससे भारत को अपनी राष्ट्रीय हितों के अनुसार निर्णय लेने और किसी महाशक्ति के दबाव में न आने की स्वतंत्रता मिली।
(iii) विश्व शांति को बढ़ावा देना – शीत युद्ध के समय दुनिया दो महाशक्तियों अमेरिका और सोवियत संघ में बँटी हुई थी। भारत ने किसी भी गुट में शामिल न होकर वैश्विक तनाव को कम करने और शांति स्थापित करने का प्रयास किया। गुटनिरपेक्षता नीति ने भारत को शांतिपूर्ण और संतुलित अंतर्राष्ट्रीय संबंध बनाए रखने में सक्षम बनाया।
(iv) आर्थिक और सामाजिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना – भारत उस समय एक नव-स्वतंत्र और अविकसित देश था। युद्ध या सैन्य गठबंधनों में शामिल होने से उसके सीमित संसाधनों पर दबाव पड़ता। इसलिए भारत ने अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने, गरीबी उन्मूलन, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक विकास जैसी प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित किया। इससे देश का आंतरिक विकास और जनकल्याण सुनिश्चित हुआ।
(v) अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और नव-स्वतंत्र देशों के हितों की रक्षा – गुटनिरपेक्षता नीति ने भारत को अन्य एशियाई और अफ्रीकी नव-स्वतंत्र देशों के साथ सहयोग बढ़ाने का अवसर दिया। भारत ने उनके राजनीतिक और आर्थिक हितों का समर्थन किया और वैश्विक स्तर पर शांति, सहयोग तथा आणविक निरस्त्रीकरण का समर्थन करके अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी निभाई। इससे भारत को विश्व राजनीति में सम्मान और नैतिक नेतृत्व भी प्राप्त हुआ।