Haryana Board (HBSE) Class 12 History Question Paper 2024 Answer Key. BSEH (Board of School Education Haryana) Class 12 History Answer Key 2024. HBSE (Haryana Board of School Education) Class 12 History Solved Question Paper 2024. BSEH Class 12 History Paper 2024 Solution. Download PDF and check accurate answers carefully prepared through my personal understanding, subject knowledge, and dedication to help students based on the syllabus and exam pattern.
HBSE Class 12 History Question Paper 2024 Answer Key
1. निम्न में से कौन-सा भवन हड़प्पा संस्कृति से सम्बन्धित नहीं है?
(A) स्नानागार
(B) विशाल गोदाम
(C) अन्नागार
(D) पिरामिड
उत्तर – (D) पिरामिड
2. कुरु जनपद की राजधानी थी :
(A) वैशाली
(B) इन्द्रप्रस्थ
(C) श्रावस्ती
(D) राजगृह
उत्तर – (B) इन्द्रप्रस्थ
3. महाभारत का युद्ध किस स्थान पर हुआ था?
(A) इन्द्रप्रस्थ
(B) कुरुक्षेत्र
(C) वैशाली
(D) राजगृह
उत्तर – (B) कुरुक्षेत्र
4. कहाँ भगवान बुद्ध ने सच्चा ज्ञान प्राप्त किया?
(A) लुंबिनी
(B) कुशीनगर
(C) सारनाथ
(D) बोध गया
उत्तर – (D) बोध गया
5. कबीर के गुरु कौन थे?
(A) संत रैदास
(B) बाबा फरीद
(C) रामानन्द जी
(D) सन्त नामदेव
उत्तर – (C) रामानन्द जी
6. ‘प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस’ का आह्वान किया :
(A) हिन्दू महासभा ने
(B) कांग्रेस ने
(C) अकाली दल ने
(D) मुस्लिम लीग ने
उत्तर – (D) मुस्लिम लीग ने
7. ‘हरिजन’ नामक अखबार निकाला :
(A) जवाहरलाल नेहरू ने
(B) महात्मा गाँधी ने
(C) मुहम्मद अली जिन्नाह ने
(D) डॉ० अम्बेडकर ने
उत्तर – (B) महात्मा गाँधी ने
8. भारतीय संविधान का निम्नलिखित अभिलक्षण विश्व के लिए एक उदाहरण था :
(A) संप्रभु गणराज्य
(B) पूर्ण वयस्क मताधिकार
(C) लोकतन्त्र
(D) मौलिक अधिकार
उत्तर – (B) पूर्ण वयस्क मताधिकार
9. हड़प्पा सभ्यता के लोग किस पशु की पूजा करते थे?
उत्तर – कूबड़ वाला बैल
10. भारत के सबसे प्राचीन विधि ग्रन्ध का नाम बताइये।
उत्तर – मनुस्मृति
11. ‘रिहला’ तथा ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एंपायर’ के लेखक कौन थे?
उत्तर – ‘रिहला’ के लेखक ‘इब्न बतूता’ तथा ‘ट्रैवल्स इन द मुगल एंपायर’ के लेखक ‘फ्रांस्वा बर्नियर’ थे।
12. विजयनगर के शासकों को क्या कहा जाता था?
उत्तर – राय
13. गाँधी जी ने अपना राजनीतिक गुरु किसे माना?
उत्तर – गोपाल कृष्ण गोखले
14. पुरुषसूक्त में …………… वर्णों का उल्लेख मिलता है।
उत्तर – चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र)
15. पंच अणुव्रत का सम्बन्ध …………… धर्म से है।
उत्तर – जैन धर्म
16. आदि ग्रन्थ ‘साहिब’ का संकलन …………… ने किया।
उत्तर – गुरु अर्जन देव जी
17. विजयनगर में घोड़ों के व्यापारियों …………….. को कहा जाता था।
उत्तर – कुदिराई चेट्टी
18. लखनऊ में विद्रोह के समय लोगों ने ……………… को अपना नेता घोषित किया।
उत्तर – बेगम हजरत महल
19. अभिकथन (A) : डॉ० वी० ए० स्मिथ ने समुद्रगुप्त को नेपोलियन की संज्ञा दी।
कारण (R) : समुद्रगुप्त के नेपोलियन के साथ अच्छे सम्बन्ध थे।
विकल्प :
(A) अभिकथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं और कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(B) अभिकथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं, परन्तु कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
(C) अभिकथन (A) सही है, परन्तु कारण (R) सही नहीं है।
(D) कारण (R) सही है, परन्तु अभिकथन (A) सही नहीं है।
उत्तर – (C) अभिकथन (A) सही है, परन्तु कारण (R) सही नहीं है।
20. अभिकथन (A) : झाँसी में क्रान्ति का नेतृत्व रानी लक्ष्मीबाई ने किया था।
कारण (R) : शाहमल ने कानपुर में क्रान्ति के लिए काश्तकारों को संगठित किया।
विकल्प :
(A) अभिकथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं और कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(B) अभिकथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं, परन्तु कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
(C) अभिकथन (A) सही है, परन्तु कारण (R) सही नहीं है।
(D) कारण (R) सही है, परन्तु अभिकथन (A) सही नहीं है।
उत्तर – (C) अभिकथन (A) सही है, परन्तु कारण (R) सही नहीं है।
21. अभिकथन (A) : लाल, बाल और पाल इन तीनों का यह जोड़ उनके संघर्ष के अखिल भारतीय चरित्र की सूचना देता था।
कारण (R) : इन तीनों के निवास-स्थान एक-दूसरे से बहुत दूर थे।
विकल्प :
(A) अभिकथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं और कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(B) अभिकथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं, परन्तु कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
(C) अभिकथन (A) सही है, परन्तु कारण (R) सही नहीं है।
(D) कारण (R) सही है, परन्तु अभिकथन (A) सही नहीं है।
उत्तर – (B) अभिकथन (A) और कारण (R) दोनों सही हैं, परन्तु कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
22. अशोक के अभिलेखों के ऐतिहासिक महत्त्व पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – अशोक के अभिलेख प्राचीन भारतीय इतिहास के सबसे विश्वसनीय और मौलिक स्रोतों में से एक हैं। इन अभिलेखों से हमें मौर्यकालीन शासन व्यवस्था, प्रशासनिक ढाँचे, समाज, अर्थव्यवस्था तथा अशोक की धार्मिक नीतियों की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। इनसे यह भी पता चलता है कि अशोक एक दयालु, प्रजापालक और धर्ममय शासक था जिसने ‘धम्म’ के सिद्धांतों के माध्यम से नैतिक और सामाजिक मूल्यों को बढ़ावा दिया। इसके अतिरिक्त, ये अभिलेख यह दर्शाते हैं कि पहली बार किसी भारतीय शासक ने अपनी नीतियों और विचारों को जनता तक पहुँचाने के लिए पत्थरों और स्तंभों पर खुदवाया। इन अभिलेखों में प्रयुक्त ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा भारत की प्राचीन भाषाओं और लिपियों के अध्ययन में भी सहायक हैं।
अथवा
कौटिल्य के अर्थशास्त्र पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – कौटिल्य (चाणक्य या विष्णुगुप्त) द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ प्राचीन भारत का अत्यंत महत्वपूर्ण राजनीतिक और आर्थिक ग्रंथ है। यह ग्रंथ राज्य संचालन, शासन व्यवस्था, राजनीति, अर्थव्यवस्था, कूटनीति, न्याय और युद्धनीति के सिद्धांतों पर आधारित है। इसमें राजा के कर्तव्यों, मंत्रिपरिषद की भूमिका, कर और राजस्व व्यवस्था, जासूसी तंत्र, सेना संगठन तथा कानून-व्यवस्था से संबंधित विस्तृत जानकारी मिलती है। ‘अर्थशास्त्र’ से यह स्पष्ट होता है कि मौर्यकालीन शासन अत्यंत संगठित, सशक्त और व्यावहारिक था। कौटिल्य ने इस ग्रंथ के माध्यम से आदर्श राजा का स्वरूप प्रस्तुत किया, जो प्रजा-हित, नीति और सुरक्षा पर बल देता है।
23. मनुस्मृति में चाण्डालों के क्या कर्त्तव्य बताए गए हैं?
उत्तर – मनुस्मृति प्राचीन भारत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण धर्मशास्त्र है, जिसमें समाज को वर्णव्यवस्था के आधार पर चार वर्गों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) में विभाजित किया गया था। इन चारों वर्णों से बाहर रहने वाले लोगों को ‘अवर्ण’ या ‘चांडाल’ कहा गया। मनुस्मृति में चांडालों के लिए कठोर और अपमानजनक कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है। उन्हें मृत शरीर उठाने, अपराधियों या मृत व्यक्तियों के वस्त्र एकत्र करने और अंत्येष्टि कर्मों में सहायता करने का कार्य सौंपा गया था। उन्हें गाँव या बस्ती से बाहर रहना पड़ता था, मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करना और फटे-पुराने वस्त्र पहनना अनिवार्य बताया गया था। समाज के उच्च वर्णों से उन्हें दूरी बनाए रखनी पड़ती थी और केवल सेवा-कार्य करने की अनुमति थी।
24. छठीं शताब्दी ई० पू० को भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण क्यों माना जाता है?
उत्तर – छठी शताब्दी ई० पू० भारतीय इतिहास का एक अत्यंत परिवर्तनकारी और जागरण काल था। इस समय उत्तर भारत में राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में गहरे परिवर्तन हुए। इस युग में महाजनपदों का उदय हुआ, जिनमें मगध सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली राज्य के रूप में उभरा। यह काल शहरीकरण, व्यापार-वाणिज्य के विस्तार, सिक्कों के प्रचलन और लौह उपयोग की बढ़ती भूमिका के लिए भी प्रसिद्ध है। इसी समय जैन धर्म और बौद्ध धर्म जैसी नई धार्मिक एवं दार्शनिक धाराओं का उदय हुआ, जिन्होंने वेदों की कठोर धार्मिक परंपराओं और यज्ञ-प्रथा का विरोध करते हुए सरल, नैतिक और मानवतावादी जीवन का संदेश दिया।
25. नायक तथा अमर नायक कौन थे? विजयनगर के प्रशासन में उनकी भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर – विजयनगर साम्राज्य में नायक राजा द्वारा नियुक्त सैन्य प्रमुख थे जिन्हें विशेष क्षेत्र या नायकट्टनम/अमरम सौंपा जाता था। नायक अपने क्षेत्रों में कानून-व्यवस्था बनाए रखते, कर वसूलते और साम्राज्य के आदेश लागू करते थे। अमर नायक उच्च स्तर के नायक थे, जो अपने क्षेत्र से कर वसूलकर अपनी सेना (सैनिक और घोड़े) का रखरखाव करते और राजस्व का एक हिस्सा राजा को देते थे। वे केवल सैन्य ही नहीं बल्कि स्थानीय प्रशासन, सिंचाई और अर्थव्यवस्था के विकास में भी योगदान देते थे। इस प्रणाली के माध्यम से विजयनगर में सैन्य शक्ति, राजस्व और प्रशासन प्रभावी ढंग से संचालित होता था, और इसे सामंती ढाँचे के समान माना जा सकता है।
26. ‘चरखे’ को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना गया?
उत्तर – ‘चरखे’ को राष्ट्रवाद का प्रतीक इसलिए चुना गया क्योंकि यह स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का प्रतीक था। महात्मा गांधी ने इसे अपनाया ताकि भारतीय लोग विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करें और अपने वस्त्र स्वयं गाँवों में ही बनाएं, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो। चरखे का उपयोग केवल कपड़े बनाने के लिए ही नहीं था, बल्कि यह लोगों में राष्ट्रीय चेतना और आत्मसम्मान जगाने का साधन भी था। इसे चलाने से यह संदेश मिलता था कि भारत अपनी आवश्यकताओं को स्वयं पूरा कर सकता है और विदेशी वस्तुओं पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। इस प्रकार, चरखा न केवल आर्थिक स्वावलंबन का प्रतीक था, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान का भी प्रतीक बन गया।
अथवा
भारत का राष्ट्रपिता किसे कहा गया और क्यों?
उत्तर – महात्मा गांधी (मोहनदास करमचंद गांधी) को भारत का राष्ट्रपिता कहा जाता है। यह उपाधि उन्हें उनके अद्वितीय नेतृत्व और देश को एकजुट करने वाले सिद्धांतों के कारण दी गई। उन्होंने सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया, जिसमें असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे बड़े जन-आंदोलन शामिल थे। गांधीजी ने केवल राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए ही नहीं, बल्कि सामाजिक सुधारों, जैसे अस्पृश्यता उन्मूलन, महिला सशक्तिकरण और हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए भी काम किया। उन्होंने साधारण जीवन, खादी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को अपनाकर जनता के बीच खुद को जोड़ा और उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भागीदार बनाया। सुभाष चंद्र बोस ने 6 जुलाई 1944 को सिंगापुर रेडियो पर उन्हें “राष्ट्र का पिता” कहा, और आज़ादी के बाद यह उपाधि जनमानस में स्थायी रूप से स्थापित हो गई।
27. भारतीय संविधान की मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – भारतीय संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है, जिसमें अनेक अनुच्छेद, भाग और अनुसूचियाँ शामिल हैं। यह संविधान कठोरता और लचीलेपन का संतुलन प्रस्तुत करता है, कुछ हिस्सों में संशोधन कठिन है और कुछ हिस्सों को आसानी से बदला जा सकता है। इसमें संघवाद और एकात्मकता का संतुलन है, जिससे केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण होता है, जबकि आपातकाल जैसी परिस्थितियों में यह एकात्मक भी बन जाता है। भारत में संसदीय शासन है और एक एकीकृत एवं स्वतंत्र न्यायपालिका संविधान की सर्वोच्चता सुनिश्चित करती है। संविधान नागरिकों को मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्य, और समानता, स्वतंत्रता व न्याय प्रदान करता है। इसके अलावा, इसमें राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत, धर्मनिरपेक्षता, सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार, एकल नागरिकता, स्वतंत्र निकाय और आपातकालीन प्रावधान भी शामिल हैं। इन विशेषताओं के कारण भारतीय संविधान लोकतंत्र, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय का मजबूत आधार है।
28. हड़प्पावासियों के सुदूर क्षेत्रों से संपर्क थे। उदाहरण दीजिए।
उत्तर – हड़प्पा सभ्यता के लोग केवल स्थानीय व्यापार तक सीमित नहीं थे, बल्कि उनका संपर्क एशिया के अनेक सुदूर क्षेत्रों से भी था। ये संबंध उनके व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, तकनीकी दक्षता और समुद्री ज्ञान को दर्शाते हैं।
• हड़प्पावासियों के सुदूर क्षेत्रों से संपर्क :
(i) मेसोपोटामिया (आधुनिक इराक) – मेसोपोटामिया के अभिलेखों में “मेलुह्हा” नामक देश का उल्लेख मिलता है, जिसे हड़प्पा सभ्यता से जोड़ा गया है। दोनों सभ्यताओं के बीच समुद्री व्यापार मार्ग सक्रिय था। हड़प्पावासी वहाँ मोती, कीमती पत्थर, लकड़ी और हाथीदांत भेजते थे, जबकि मेसोपोटामिया से तांबा, ऊन और खजूर प्राप्त करते थे। मेसोपोटामिया के नगरों से हड़प्पाई मुहरें और मनके भी मिले हैं, जो दोनों के बीच घनिष्ठ संपर्क का प्रमाण हैं।
(ii) अफगानिस्तान – अफगानिस्तान के बदख्शां क्षेत्र से हड़प्पा वासी लाजवर्द जैसे कीमती नीले पत्थर प्राप्त करते थे। इन पत्थरों का उपयोग हड़प्पा के आभूषण, मूर्तियों और सजावटी वस्तुओं में किया जाता था। यह व्यापारिक संपर्क हड़प्पा की स्थलीय व्यापारिक दक्षता और मार्ग नियंत्रण को दर्शाता है।
(iii) ईरान – हड़प्पा सभ्यता का ईरान के साथ भी सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध था। बलूचिस्तान के मार्ग से दोनों के बीच स्थलीय व्यापार मार्ग संचालित था। ईरान से हड़प्पावासी धातुएँ, वस्त्र और शिल्प सामग्री प्राप्त करते थे। हड़प्पाई बेलनाकार मुहरों पर ईरानी प्रभाव देखा जा सकता है, जो संपर्क की पुष्टि करता है।
(iv) ओमान और बहरीन – ओमान में हड़प्पा काल के मिट्टी के बने बर्तन, जार और मनके मिले हैं। ओमान के तांबे में पाए गए निकेल के अंश हड़प्पा क्षेत्र के तांबे से मेल खाते हैं, जो दोनों के बीच वैज्ञानिक प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। बहरीन, जिसे मेसोपोटामिया के ग्रंथों में “दिलमुन” कहा गया है, हड़प्पा और मेसोपोटामिया के बीच एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था।
(v) दक्षिण भारत – हड़प्पा सभ्यता का दक्षिण भारत से भी संपर्क था, विशेषकर समुद्री तटीय मार्गों के माध्यम से। हड़प्पावासी दक्षिण भारत से शंख, मसाले और वस्त्र प्राप्त करते थे। लोथल जैसे बंदरगाह नगर इस समुद्री व्यापार के मुख्य केंद्र थे, जो हड़प्पा की समुद्री कुशलता को दर्शाते हैं।
(vi) राजस्थान (खेतड़ी क्षेत्र) – हड़प्पावासियों ने राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र में तांबे की खोज और खनन के लिए अभियान चलाए थे। यह क्षेत्र हड़प्पा की धातु उद्योग की आवश्यकताओं को पूरा करता था और उनके आंतरिक व्यापारिक नेटवर्क का हिस्सा था।
(vii) नागेश्वर और बालाकोट – गुजरात के तटीय क्षेत्र में स्थित नागेश्वर और बालाकोट जैसे स्थानों से शंख के कच्चे माल के उपयोग के प्रमाण मिले हैं। इन क्षेत्रों में शंख से आभूषण और सजावटी वस्तुएँ बनाई जाती थीं। यह दर्शाता है कि हड़प्पावासी समुद्री संसाधनों का कुशल उपयोग करते थे और स्थानीय व्यापार को भी सुदृढ़ बनाए रखते थे।
अथवा
हड़प्पा सभ्यता के शिल्प उत्पादों पर एक लेख लिखिए।
उत्तर – हड़प्पा सभ्यता (सिंधु घाटी सभ्यता) विश्व की सबसे प्राचीन और उन्नत शहरी सभ्यताओं में से एक थी। यह सभ्यता न केवल नगर नियोजन और व्यापार के लिए प्रसिद्ध थी, बल्कि इसके शिल्प उत्पाद भी अत्यंत उत्कृष्ट थे। इन शिल्पों से हड़प्पावासियों की कलात्मकता, तकनीकी दक्षता और सौंदर्यबोध का परिचय मिलता है।
• हड़प्पा सभ्यता के शिल्प उत्पाद :
(i) मिट्टी के बर्तन – हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रमुख शिल्पकला मृद्भांड निर्माण थी। हड़प्पावासी लाल मिट्टी से सुंदर बर्तन बनाते थे जिन पर काले रंग से ज्यामितीय, पुष्पीय और पशु आकृतियाँ बनाई जाती थीं। ये बर्तन घरेलू उपयोग के साथ धार्मिक और सजावटी प्रयोजनों के लिए भी प्रयुक्त होते थे। लोथल, कालीबंगन और हड़प्पा स्थलों से प्राप्त बर्तनों से यह स्पष्ट होता है कि कुम्हारों के पास पहिये पर बर्तन बनाने की उन्नत तकनीक थी।
(ii) मनके निर्माण – हड़प्पावासी मनका निर्माण कला में अत्यंत निपुण थे। वे कार्नेलियन, अगेट, लैपिस लाजुली, शंख, काँच और धातु जैसे पदार्थों से अत्यंत सुंदर मनके बनाते थे। इनसे हार, कंगन, झुमके और अन्य आभूषण तैयार किए जाते थे। लोथल और चन्हूदड़ो मनका निर्माण के प्रमुख केंद्र थे जहाँ बड़े पैमाने पर मनका कारखानों के प्रमाण मिले हैं।
(iii) धातु शिल्प – हड़प्पा वासी तांबा, कांसा, सोना, चाँदी और सीसा जैसी धातुओं से वस्तुएँ बनाते थे। उन्होंने ढलाई और मिश्रधातु निर्माण की तकनीक में महारत हासिल की थी। हड़प्पा से प्राप्त औज़ार, बर्तन, आभूषण और मूर्तियाँ उनके उच्च तकनीकी ज्ञान को प्रमाणित करती हैं। “नाचती हुई बालिका” की कांस्य मूर्ति उनकी धातु कला का अनुपम उदाहरण है, जो उस समय की कलात्मक परिपक्वता को प्रदर्शित करती है।
(iv) मूर्तिकला – हड़प्पा के शिल्पकारों ने पत्थर, धातु और मिट्टी से विविध प्रकार की मूर्तियाँ बनाई। मातृदेवी की मूर्तियाँ उर्वरता की देवी के रूप में पूजी जाती थीं। पत्थर से बनी “पुरोहित राजा” की मूर्ति में गहरी भावाभिव्यक्ति और परिष्कार दिखाई देता है। इसके अतिरिक्त पशु आकृतियाँ, खिलौने, रथ और नर्तकी की मूर्तियाँ यह बताती हैं कि हड़प्पावासी यथार्थवादी कला और धार्मिक प्रतीकों में विश्वास रखते थे।
(v) मुहर निर्माण – हड़प्पा की मुहरें उनकी सबसे प्रसिद्ध शिल्प वस्तुएँ थीं। ये मुख्यतः स्टियाटाइट नामक मुलायम पत्थर से बनाई जाती थीं, जिन पर पशु आकृतियाँ, लिपि और प्रतीक अंकित होते थे। मुहरों पर प्रयुक्त पशुओं में बैल, यूनिकॉर्न, बाघ और हाथी प्रमुख थे। ये मुहरें व्यापारिक लेन-देन, पहचान और धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी थीं।
(v) वस्त्र और बुनाई – हड़प्पा वासी विश्व के पहले लोगों में थे जिन्होंने कपास की खेती की और उससे वस्त्र तैयार किए। मूर्तियों और मुहरों पर दिखाई देने वाली वस्त्र आकृतियाँ उनके बुनाई कौशल का प्रमाण हैं। उन्होंने कपड़ों पर डिज़ाइन और सजावट का भी प्रयोग किया। कपास के अतिरिक्त वे ऊनी वस्त्र भी प्रयोग करते थे।
(vii) शंख और हाथीदांत शिल्प – समुद्र तटीय नगरों जैसे लोथल और बालाकोट से शंख से बनी वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं, जिनसे बटन, कंघियाँ, चूड़ियाँ और सजावटी वस्तुएँ तैयार की जाती थीं। हाथीदांत से अत्यंत महीन और कलात्मक वस्तुएँ बनाना हड़प्पावासियों की विशेषता थी।
29. गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं की व्याख्या कीजिए। क्या वे कोई नया धर्म स्थापित करना चाहते थे?
उत्तर – गुरु नानक देव जी (1469–1539 ई.) सिख धर्म के प्रथम गुरु थे। उन्होंने 15वीं–16वीं शताब्दी में भारतीय समाज में फैली धार्मिक अंधविश्वास, जातिगत भेदभाव और बाह्याचार की कड़ी आलोचना की। उनकी शिक्षाएँ भक्ति और सूफी परंपरा दोनों से प्रभावित थीं, जिनका उद्देश्य था मानवता, समानता और सत्य के मार्ग पर चलना।
• गुरु नानक देव जी की प्रमुख शिक्षाएँ :
(i) एकेश्वरवाद (एक परमात्मा में विश्वास) – गुरु नानक ने सिखाया कि ईश्वर एक है, निराकार है और सबके भीतर विद्यमान है। उन्होंने कहा “एक ओंकार सतनाम करतापुरख।”
उनका मत था कि ईश्वर को किसी मूर्ति या मंदिर में नहीं, बल्कि सच्चे कर्म और भक्ति से पाया जा सकता है।
(ii) समानता और भाईचारा – उन्होंने समाज में जाति, धर्म, लिंग और ऊँच-नीच के भेदभाव का विरोध किया। गुरु नानक ने बताया कि सभी मनुष्य समान हैं और ईश्वर की दृष्टि में सब एक हैं।
(iii) कर्मप्रधान जीवन (सच्चा जीवन) – गुरु नानक ने कहा कि मनुष्य को हमेशा सच्चाई, ईमानदारी और मेहनत से जीवन व्यतीत करना चाहिए। उन्होंने “नाम जपो, किरत करो, वंड छको” (ईश्वर का स्मरण करो, मेहनत से जीविका चलाओ, और अपनी कमाई दूसरों से बाँटो) का संदेश दिया।
(iv) आडंबर और अंधविश्वास का विरोध – उन्होंने कर्मकांड, बलि, मूर्तिपूजा और बाह्याचारों को निरर्थक बताया। उनका मानना था कि सच्ची भक्ति मन की पवित्रता और सत्य आचरण में निहित है, न कि धार्मिक रस्मों में।
(v) स्त्री सम्मान – उन्होंने स्त्रियों को समाज में समान अधिकार देने पर बल दिया और कहा कि जिस स्त्री से मनुष्य जन्म लेता है, उसका तिरस्कार नहीं होना चाहिए।
(vi) सामाजिक एकता और सेवा भावना – गुरु नानक ने “संगत और पंगत” की परंपरा शुरू की। संगत में सब एक साथ बैठकर भक्ति करते थे और पंगत में बिना भेदभाव सब एक साथ भोजन करते थे। इससे सामाजिक एकता और समरसता को बल मिला।
• गुरु नानक देव जी ने प्रारंभ में कोई नया धर्म स्थापित करने का उद्देश्य नहीं रखा था। उनका मुख्य उद्देश्य था हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों में व्याप्त बुराइयों को दूर कर सच्चे धर्म का मार्ग दिखाना। उन्होंने दोनों समुदायों के बीच सद्भाव, एकता और मानवीय मूल्य स्थापित करने का प्रयास किया। बाद में उनके अनुयायियों के जीवन-मार्ग और उपदेशों के आधार पर सिख धर्म का विकास हुआ।
अथवा
क्यों और किस तरह शासकों ने नयनार और सूफी संतों से अपने सम्बन्ध बनाने का प्रयास किया?
उत्तर – मध्यकालीन भारत में नयनार (शैव भक्त संत) और सूफी संतों का समाज पर गहरा प्रभाव था। वे जनता के बीच अत्यंत लोकप्रिय थे और सामाजिक एकता, प्रेम, समानता तथा भक्ति का संदेश देते थे। शासकों ने इन संतों से संबंध बनाकर अपनी राजनीतिक शक्ति को धार्मिक और सामाजिक आधार प्रदान करने का प्रयास किया।
• संबंध बनाने के प्रमुख कारण (क्यों) :
(i) सत्ता को वैधता और पवित्रता प्रदान करना – शासक चाहते थे कि जनता उन्हें ईश्वरीय कृपा से युक्त माने। इसलिए वे संतों और धार्मिक संप्रदायों का समर्थन प्राप्त कर अपनी सत्ता को दैवी वैधता और धार्मिक पवित्रता प्रदान करते थे।
(ii) लोकप्रियता और जनसमर्थन प्राप्त करना – नयनार और सूफी संत समाज के विभिन्न वर्गों में सम्मानित थे। उनके साथ संबंध रखकर शासक जनता के बीच अपनी स्वीकार्यता और प्रतिष्ठा बढ़ा सकते थे।
(iii) राजनीतिक स्थिरता बनाए रखना – संतों के अनुयायियों में समाज के हर वर्ग के लोग थे। इन संतों से संबंध रखने से शासकों को समाज में शांति और स्थिरता बनाए रखने में सहायता मिलती थी।
(iv) सामाजिक एवं धार्मिक एकता – सूफी और नयनार दोनों ने भक्ति, प्रेम और सहिष्णुता का संदेश दिया। शासकों ने इनके विचारों को प्रोत्साहित कर हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक सौहार्द को मजबूत किया।
• संबंध बनाने के तरीके (किस तरह) :
(i) मंदिरों का निर्माण और संरक्षण – चोल शासकों ने नयनार संतों के सम्मान में भव्य शिव मंदिरों का निर्माण कराया और उनमें उनकी मूर्तियाँ स्थापित करवाईं। इससे धर्म और शासन दोनों का गौरव बढ़ा।
(ii) दान और भूमि अनुदान – सुल्तानों ने सूफी संतों की खानकाहों को कर-मुक्त भूमि (इनाम/वक्फ) दान में दी। सूफी संत इन दानों का उपयोग गरीबों की सहायता, शिक्षा और परोपकार में करते थे।
(iii) धार्मिक अनुष्ठानों में सहभागिता – चोल शासक नयनार संतों के भक्ति गीतों और त्योहारों में भाग लेते थे। उन्होंने तमिल भक्ति भजनों के गायन को राजकीय संरक्षण दिया।
(iv) सामाजिक समूहों का समर्थन प्राप्त करना – नयनार और सूफी संतों से संबंध रखकर शासक वेल्लाल किसानों जैसे प्रभावशाली वर्गों का समर्थन प्राप्त करते थे, जिससे उनकी राजनीतिक स्थिति मजबूत होती थी।
(v) सांस्कृतिक संरक्षण – शासकों ने संतों की रचनाओं को ग्रंथों में संकलित करवाया और उनके स्मारक बनवाए। इससे शासन की सांस्कृतिक प्रतिष्ठा और धार्मिक सहिष्णुता दोनों बढ़ीं।
30. 1857 ई० के विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेज सरकार की नीति व उठाए गए कदमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – 1857 ई. का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम चरण था। इसने अंग्रेजों के शासन की नींव हिला दी। ब्रिटिश सरकार ने इस विद्रोह को कठोरता, चतुराई और रणनीति के साथ दबाने के लिए अनेक कदम उठाए, ताकि भविष्य में ऐसा आंदोलन फिर न उठ सके।
• अंग्रेज सरकार द्वारा अपनाई गई नीतियाँ और कदम :
(i) सेना का पुनर्गठन – विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीय सेना का ढांचा पूरी तरह बदल दिया। भारतीय सैनिकों की संख्या घटाकर यूरोपीय सैनिकों की संख्या बढ़ाई गई, ताकि भविष्य में कोई बगावत आसानी से न हो सके। साथ ही एक ही जाति, धर्म या क्षेत्र के सैनिकों को बड़ी संख्या में एक साथ भर्ती न करने का नियम बनाया गया। अंग्रेज अधिकारियों की निगरानी और नियंत्रण भी काफी बढ़ा दिया गया।
(ii) ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति – 1857 के विद्रोह में हिंदू और मुसलमान दोनों ने मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था। इस एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने सांप्रदायिक भेदभाव की नीति अपनाई। उन्होंने धार्मिक, सामाजिक और जातीय विभाजन को बढ़ावा दिया ताकि भविष्य में भारतीय एकजुट न हो सकें।
(iii) देशी रियासतों के प्रति नई नीति – विद्रोह के बाद अंग्रेजों ने ‘लैप्स की नीति’ समाप्त कर दी। देशी शासकों को यह आश्वासन दिया गया कि अगर वे ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादार रहेंगे तो उनके राज्य, उपाधियाँ और उत्तराधिकार सुरक्षित रहेंगे। इस नीति से कई राजाओं ने भविष्य में अंग्रेजों के शासन को सहयोग देना शुरू किया।
(iv) कठोर दमन नीति – विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने अत्यंत निर्दय दमनकारी नीति अपनाई। हजारों भारतीय सैनिकों और नागरिकों को फांसी, तोपों से उड़ाने, और गाँवों को जलाने जैसी क्रूर सजाएँ दी गईं। दिल्ली, कानपुर, लखनऊ और झाँसी जैसे केंद्रों में विद्रोहियों पर अमानवीय अत्याचार किए गए। इस नीति का उद्देश्य भारतीयों में भय और आतंक फैलाना था।
(v) राजनीतिक नियंत्रण में परिवर्तन – 1858 ई. में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया और भारत सीधे ब्रिटिश सरकार के अधीन आ गया। अब भारत का प्रशासन ब्रिटिश संसद और महारानी विक्टोरिया के नियंत्रण में आ गया। भारत सचिव और वायसराय की नियुक्ति कर शासन को अधिक केंद्रीकृत बनाया गया।
(vi) रानी विक्टोरिया की घोषणा – इस घोषणा के माध्यम से भारतीयों को यह आश्वासन दिया गया कि उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता, न्याय में समानता और सरकारी नौकरियों में अवसर दिए जाएंगे। हालांकि यह घोषणा अधिकतर राजनीतिक उद्देश्य से थी, ताकि जनता का विश्वास फिर से हासिल किया जा सके।
(vii) संचार और परिवहन का विकास – विद्रोह के दौरान अंग्रेजों को सैनिकों और संदेशों के आवागमन में कठिनाई हुई थी। इसलिए उन्होंने रेल, टेलीग्राफ, और डाक व्यवस्था को तेज़ी से विकसित किया ताकि भविष्य में सैनिक सहायता और सूचनाएँ समय पर पहुँच सकें। यह कदम प्रशासनिक नियंत्रण को भी सुदृढ़ बनाता था।
अथवा
1857 ई० के घटना क्रम को निर्धारित करने में धार्मिक विश्वासों की किस हद तक भूमिका थी?
उत्तर – 1857 ई० का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का पहला संगठित रूप था। इसमें केवल राजनीतिक और आर्थिक कारण नहीं थे, बल्कि धार्मिक विश्वासों और भावनाओं ने विद्रोह के घटनाक्रम को गहराई से प्रभावित किया। सैनिकों और आम जनता की आस्था और धार्मिक मान्यताओं का अपमान होने पर असंतोष भड़का और विद्रोह की शुरुआत हुई।
• धार्मिक विश्वासों की भूमिका के कारण :
(i) चर्बी-युक्त कारतूस विवाद – नए राइफल के कारतूसों पर गाय और सूअर की चरबी का लेप होने की अफ़वाह ने हिंदू और मुसलमान सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को आहत किया। इसे सैनिकों ने धार्मिक अपमान माना, जिससे विद्रोह का तात्कालिक और प्रमुख कारण बन गया।
(ii) मिशनरी गतिविधियाँ और ईसाई धर्म का प्रसार – ब्रिटिश मिशनरियों द्वारा ईसाई धर्म का प्रचार और धर्म परिवर्तन को मिलने वाली सरकारी सुविधाएँ लोगों में भय उत्पन्न कर रही थीं। भारतीयों को लगा कि अंग्रेज उनके धार्मिक विश्वासों को बदलना चाहते हैं, जिससे विद्रोह की लोकप्रियता और समर्थन बढ़ा।
(iii) पश्चिमी सामाजिक सुधारों का विरोध – सती प्रथा, बाल विवाह और विधवा पुनर्विवाह जैसे सुधारों को कई पारंपरिक हिंदू परिवारों ने धार्मिक हस्तक्षेप माना। इससे ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष और विद्रोह की सामाजिक वैधता बढ़ी।
(iv) धार्मिक नेताओं और स्थानीय विश्वासियों का समर्थन – धार्मिक नेताओं और संतों ने विद्रोह में सैनिकों और जनता को समर्थन दिया। हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों ने अपनी धार्मिक चेतना के आधार पर अंग्रेजों के खिलाफ मिलकर संघर्ष किया।
(v) पैतृक संपत्ति के कानून में बदलाव – 1850 के कानून ने ईसाई धर्म अपनाने वाले को ही पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकारी बनने का अधिकार दिया। इससे धार्मिक धर्मांतरण के प्रति असंतोष और विद्रोह की सामाजिक संवेदनशीलता बढ़ी।
(vi) मंदिरों और धार्मिक स्थलों का अपमान – कई क्षेत्रों में अंग्रेजों द्वारा मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर हस्तक्षेप और नियंत्रण ने हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया। यह विद्रोह के फैलाव और घटना क्रम को तेज करने में भूमिका निभाई।
(vii) धार्मिक प्रतीक और रीतियों का संरक्षण – विद्रोह के दौरान कई सैनिक और जनता धार्मिक प्रतीकों (मूर्ति, मंदिर, मस्जिद) के संरक्षण के लिए भी उठ खड़े हुए। यह दिखाता है कि धार्मिक विश्वास केवल व्यक्तिगत भावना नहीं, बल्कि घटना क्रम और आंदोलन की रणनीति को प्रभावित करने वाला आधार था।
31. SOURCE BASED : घोंसले से निकलता पक्षी
यह रिहला से लिया गया एक उदाहरण है :
अपने जन्म-स्थान तैजियर से मेरा प्रस्थान गुरुवार को हुआ .…. मैं अकेला ही निकल पड़ा, बिना किसी साथी यात्री .…. या कारवाँ के जिसकी टोली में मैं शामिल हो सकूँ, लेकिन अपने अन्दर एक अधिप्रभावी आवेश और इन प्रसिद्ध पुण्य स्थानों को देखने की इच्छा जो लम्बे समय से मेरे अंतःकरण में थी, से प्रभावित होकर। इसलिए मैंने अपने प्रियजनों को छोड़ जाने के निश्चय को दृढ़ किया और अपने घर को ऐसे ही छोड़ दिया जैसे पक्षी अपने घोंसले को छोड़ देते हैं ….. उस समय मेरी उम्र 22 वर्ष थी।
इब्नबतूता 1354 में घर वापस पहुँचा, अपनी यात्रा आरम्भ करने के लगभग तीस वर्ष बाद।
प्रश्न :
(i) रिहला क्या है?
उत्तर – रिहला एक यात्रा विवरण या यात्रा-वृत्तांत है, जिसमें यात्रा के अनुभव और यात्रियों के अनुभवों का वर्णन होता है।
(ii) इब्नबतूता अपनी यात्रा के लिए अकेला ही क्यों निकल पड़ा?
उत्तर – क्योंकि वह किसी कारवाँ या साथी यात्री के बिना भी अपनी यात्रा शुरू करना चाहता था। उसके अंदर एक मजबूत उत्साह और प्रसिद्ध स्थानों को देखने की इच्छा थी, जो लंबे समय से उसके मन में थी।
(iii) इब्नबतूता अपने देश कब वापिस गया तथा उस समय उसकी आयु कितनी थी?
उत्तर – इब्नबतूता 1354 में अपने देश वापस पहुँचा। उस समय उसकी आयु लगभग 52 वर्ष थी (यात्रा शुरू करने के समय उसकी आयु 22 वर्ष थी और यात्रा लगभग 30 वर्ष चली)।
(iv) इब्नबतूता का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर – तैजियर में
32. SOURCE BASED : नकद या जीन्स?
आइन से यह एक और अनुच्छेद है :
अमील गुजार सिर्फ नकद लेने की आदत न डालें बल्कि फसल भी लेने के लिए तैयार रहें। यह बाद वाला तरीका कई तरह से काम में लाया जा सकता है। पहला कण कुत : हिन्दी जुबान में कण का मतलब है अनाज और कुत अन्दाजा ….. अगर कोई शक हो तो फसल को तीन अलग-अलग पुलिन्दों में काटना चाहिए – अच्छा, मध्यम और बदतर और इस तरह शक दूर करना चाहिए। अकसर अन्दाज से किया गया जमीन का आकलन भी पर्याप्त रूप से सही नतीजा देता है। दूसरा बटाई जिसे भाओली भी कहते हैं (में) फसल काट कर जमा कर लेते हैं और फिर सभी पक्षों की मौजूदगी में व रजामंदी में बटवारा करते हैं। लेकिन इसमें कई समझदार निरीक्षकों की जरूरत पड़ती है। वर्ना दुष्ट-बुद्धि और मक्कार धोखेबाजी की नीयत रखते हैं। तीसरे खेत बटाई जब वे बीज बोने के बाद खेत बाँट लेते हैं। चौथे लॉग बटाई; फसल काटने के बाद, वे इसका ढेर बना लेते हैं और फिर उसे अपने में बाँट लेते हैं। और हरेक (पक्ष) अपना हिस्सा घर ले जाता है और उससे मुनाफा कमाता है।
प्रश्न :
(i) फसल को कौन-से तीन पुलिन्दों में काटना चाहिए?
उत्तर – फसल को तीन अलग-अलग पुलिन्दों में काटना चाहिए: अच्छा, मध्यम और बदतर।
(ii) फसल बाँटने का चौथा तरीका कौन-सा था?
उत्तर – फसल बाँटने का चौथा तरीका लाँग बटाई था, जिसमें फसल काटने के बाद उसका ढेर बनाकर बाँट लिया जाता था और हर पक्ष अपना हिस्सा घर ले जाता था।
(iii) कण कुत : का अर्थ बताइये।
उत्तर – कण का अर्थ है अनाज, और कुत का अर्थ है अन्दाजा या अनुमान। इसलिए कण कुत का अर्थ है अनाज का अनुमानित आकलन।
(iv) भाओली किसे कहा जाता था?
उत्तर – बटाई को भाओली भी कहा जाता था। इसमें फसल काटकर जमा कर ली जाती थी और फिर सभी पक्षों की मौजूदगी और रजामंदी में उसका बटवारा होता था।
33. SOURCE BASED : उस दिन सूपा में
16 मई, 1875 को पूना के जिला मजिस्ट्रेट ने पुलिस आयुक्त को लिखा :
शनिवार दिनांक 15 मई को सूपा में आने पर मुझे इस उपद्रव का पता चला। एक साहूकार का घर पूरी तरह जला दिया गया, लगभग एक दर्जन मकानों को तोड़ दिया गया और उनमें घुसकर वहाँ के सारे सामान को आग लगा दी गई। खाते पत्र, बांड, अनाज, देहाती कपड़ा, सड़कों पर लाकर जला दिया गया, जहाँ राख के ढेर अब भी देखे जा सकते हैं।
मुख्य कांस्टेबल ने 50 लोगों को गिरफ्तार किया। लगभग 2,000 रु० का चोरी का माल छुड़ा लिया गया। अनुमानतः 25,000 रु० से अधिक की हानि हुई। साहूकारों का दावा है कि 1 लाख रु० से ज्यादा का नुकसान हुआ है।
प्रश्न :
(i) 16 मई, 1875 को कौन-सा वार था?
उत्तर – शनिवार
(ii) उपद्रव कहाँ पर हुआ था?
उत्तर – सूपा में
(iii) सड़कों पर क्या जलाया गया?
उत्तर – सड़कों पर खाते पत्र, बांड, अनाज, और देहाती कपड़ा जलाया गया था।
(iv) उपद्रव के लिए कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया?
उत्तर – 50 लोगों को
34. दिए गए भारत के राजनीतिक रेखा-मानचित्र पर निम्नलिखित स्थानों को दर्शाइए :
(i) दांडी (गुजरात)
(ii) अमृतसर (पंजाब)
(iii) अश्मक (महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना)
(iv) राखीगढ़ी (हरियाणा)
(v) बोधगया (बिहार)
उत्तर –
