HBSE Class 10 Social Science Question Paper 2022 Answer Key

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HBSE Class 10 Social Science Question Paper 2022 Answer Key

SET-A,B,C,D (Subjective Questions) 

Q1. मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में किस प्रकार सहायता की ? स्पष्ट कीजिए। 

Ans. मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंग्रेजी काल में भारतीय लेखकों ने अनेक ऐसी पुस्तकों की रचना की जो राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत थी। बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास आनंदमठ ने लोगों में देश प्रेम की भावना का संचार किया । वंदे मातरम गीत भारत के कोने कोने में गूंजने लगा। भारतीय समाचार पत्रों ने भी राष्ट्रीय आंदोलन के लिए उचित वातावरण तैयार किया। अमृत बाजार पत्रिका, केसरी , मराठा,  हिंदू तथा मुंबई समाचार आदि समाचार पत्रों में छपने वाले लेख राष्ट्रीय प्रेम से ओतप्रोत होते थे । इन लेखों ने भारतीयों के मन में राष्ट्रीयता की ज्योति जलाई। इसके अतिरिक्त भारतीय समाचार पत्र अंग्रेजी सरकार की गलत नीतियों को जनता के सामने रखते थे और उनकी खुलकर आलोचना करते थे।समाचार पत्रों के माध्यम से ही लोगों को पता चला कि अंग्रेजी सरकार किस प्रकार बांटो तथा राज करो (डिवाइड एंड रूल) की नीति का अनुसरण कर रही है। उन्हें भारत से होने वाले धन की निकासी की जानकारी भी समाचार पत्रों ने हीं दी। इस प्रकार समाचार पत्रों ने उनके मन में राष्ट्रीयता के बीज बोऐ। सच तो यह है कि मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद को बहुत ही मजबूत आधार प्रदान किया। मुद्रण ने समुदाय के बीच केवल मत-मतांतर उत्पन्न नहीं किए अपितु इसने समुदायों को भीतर से और अलग-अलग भागों को पुरे भारत से जोड़ने का काम भी किया। समाचार-पत्र एक स्थान से दूसरे स्थान तक समाचार पँहुचाते थे जिससे अखिल भारतीय पहचान उभरती थी। कई पुस्तकालय भी मिल-मज़दूरों तथा अन्य लोगों द्वारा स्थापित किए गए ताकि वे स्वयं को शिक्षित कर सकें। 

 

                                           अथवा 

उदारवादियों तथा रूढ़िवादियों के विचारों की तुलना करें। 

Ans. उदारवाद (Liberalism) वह विचारधारा है जिसके अंतर्गत मनुष्य को विवेकशील प्राणी मानते हुए सामाजिक संस्थाओं के मनुष्यों की सूझबूझ और सामूहिक प्रयास का परिणाम समझा जाता है। रूढ़िवाद सामाजिक विज्ञान के अंतर्गत व्यवहृत एक ऐसी विचारधारा है जो पारंपरिक मान्यताओं का अनुकरण तार्किकता या वैज्ञानिकता के स्थान पर केवल आस्था तथा प्रागनुभवों के आधार पर करती है।

सुधारात्मक गतिविधियों में, रूढ़िवादी हमेशा बुरे उद्देश्यों, विचारों, मौजूदा विचार और व्यवस्था में क्रांति लाने की इच्छा देखेंगे। वे सभी मौलिक नवाचारों का विरोध करते हैं। उसी समय, रूढ़िवाद का अर्थ है सुधारों को स्पष्ट करना, उनमें गलतियों को दूर करना, जो पहले से मौजूद है उस पर काम करना। इसी समय, मूल हठधर्मिता अडिग रहती है। दूसरी ओर, उदारवादी समाज को उसके सार में बदलने का प्रयास करते हैं, विवरण और मामूली विधायी परिवर्तन या रियायतें उनके लिए बहुत कम रुचि रखती हैं। उनका लक्ष्य कार्डिनल परिवर्तनों द्वारा अपने विचार को प्राप्त करना है। अर्थशास्त्र में, रूढ़िवादी बाहरी लोगों को पसंद नहीं करते हैं, उनके आर्थिक स्थान में हस्तक्षेप करने के किसी भी प्रयास को दबा दिया जाता है, भले ही प्रस्तावित प्रस्ताव अधिक जिज्ञासु और लाभदायक (आधुनिक यूरोप, विशेष रूप से जर्मनी) हो। उदारवादी खुले बाजार और मुक्त आर्थिक संबंधों की वकालत करते हैं। रूढ़िवादी मांग करते हैं कि धर्म अपरिवर्तनीय है। कोई अन्य धर्म स्वीकार, अस्वीकार आदि नहीं किया जाता है। उदारवाद के लिए एक चीज की आवश्यकता होती है – मानव विवेक की स्वतंत्रता। यह विचारधारा प्रत्येक व्यक्ति को सबसे आगे रखती है, और इसलिए धर्म एक गौण घटना है और केवल इच्छा पर है।

 

Q2. यूरोप में वुडब्लॉक विधि क्यों प्रचलित हुई ? 

Ans. 1295 में मार्को पोलो नामक महान खोजी यात्री चीन में काफ़ी साल तक खोज करने के बाद इटली वापस लौटा। चीन के पास वुडब्लॉक वाली छपाई की तकनीक पहले से मौजूद थी। मार्को पोलो यह ज्ञान अपने साथ लेकर लौटा। फिर इतालवी भी तख़्ती की छपाई से किताबें निकालने लगे और जल्द ही यह तकनीक बाक़ी यूरोप में फैल गई।

 

Q3. भारत के लोग रॉलेट ऐक्ट के विरोध में क्यों थे ? 

Ans. यह एक काला कानून था। इस कानून के अंतर्गत किसी को भी बिना सुनवाई के लंबे समय तक जेल में डाला जा सकता था। यह प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ही भारतीय जनता को नियंत्रण में करने के लिए लाया गया था। इसका विरोध भारत की आम जनता ने किया। 

 

Q4. लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी क्यों जरूरी है ? वर्णन कीजिए। 

Ans. जब किसी शासन व्यवस्था में हर सामाजिक समूह और समुदाय की भागीदारी सरकार में होती है तो इसे सत्ता की साझेदारी कहते हैं। लोकतंत्र का मूलमंत्र है सत्ता की साझेदारी। किसी भी लोकतांत्रिक सरकार में हर नागरिक का हिस्सा होता है। यह हिस्सा भागीदारी के द्वारा संभव हो पाता है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में नागरिकों को इस बात का अधिकार होता है कि शासन के तरीकों के बारे में उनसे सलाह ली जाये। भारत में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था है। यहाँ के नागरिक सीधे मताधिकार के माध्यम से अपने प्रतिनिधि को चुनते हैं। लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि एक सरकार को चुनते हैं। इस तरह से एक चुनी हुई सरकार रोजमर्रा का शासन चलाती है और नये नियम बनाती है या पुराने नियमों और कानूनों में संशोधन करती है। किसी भी लोकतंत्र में हर प्रकार की राजनैतिक शक्ति का स्रोत प्रजा होती है। यह लोकतंत्र का एक मूलभूत सिद्धांत है। ऐसी शासन व्यवस्था में लोग स्वराज की संस्थाओं के माध्यम से अपने आप पर शासन करते हैं। एक समुचित लोकतांत्रिक सरकार में समाज के विविध समूहों और मतों को उचित सम्मान दिया जाता है। जन नीतियों के निर्माण में हर नागरिक की आवाज सुनी जाती है। इसलिए लोकतंत्र में यह जरूरी हो जाता है कि राजनैतिक सत्ता का बँटवारा अधिक से अधिक नागरिकों के बीच हो। 

समाज में सौहार्द्र और शांति बनाये रखने के लिये सत्ता की साझेदारी जरूरी है। इससे विभिन्न सामाजिक समूहों में टकराव को कम करने में मदद मिलती है। किसी भी समाज में बहुसंख्यक के आतंक का खतरा बना रहता है। बहुसंख्यक का आतंक न केवल अल्पसंख्यक समूह को तबाह करता है बल्कि स्वयं को भी तबाह करता है। सत्ता की साझेदारी के माध्यम से बहुसंख्यक के आतंक से बचा जा सकता है। लोगों की आवाज ही लोकतांत्रिक सरकार की नींव बनाती है। इसलिये यह कहा जा सकता है कि लोकतंत्र की आत्मा का सम्मान रखने के लिए सत्ता की साझेदारी जरूरी है। सत्ता की साझेदारी के दो कारण होते हैं। एक है समझदारी भरा कारण और दूसरा है नैतिक कारण। सत्ता की साझेदारी का समझदारी भरा कारण है समाज में टकराव और बहुसंख्यक के आतंक को रोकना। सत्ता की साझेदारी का नैतिक कारण है लोकतंत्र की आत्मा को अक्षुण्ण रखना। 

 

                                           अथवा

राजनीतिक दलों के सामने क्या-क्या चुनौतियाँ हैं ? 

Ans. राजनीतिक दलों के सामने चुनौतियाँ- 

(i) गलतियों के लिए राजनीतिक दलों पर दोषारोपण– लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था में जनता का पूर्ण विश्वास राजनीतिक दलों में होता है।लोकतान्त्रिक राजनीति का संचालन राजनीतिक दलों द्वारा किया जाता है। अतशासन की गलतियों के कारण जनता को जो कठिनाई होती है, उसका दोषारोपण राजनीतिक दलों के ऊपर किया जाता है। सामान्य जनता की अप्रसन्नता तथाआलोचना राजनीतिक दलों के काम-काज के विभिन्न पहलुओं पर केन्द्रित होतीहै। 

(ii) आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव– यद्यपि राजनीतिक दल लोकतन्त्र की दुहाई देते हैं, परन्तु उनमें आन्तरिक लोकतन्त्र का अभाव देखने को मिलता है।राजनीतिक दलों के संगठनात्मक चुनाव नियमित रूप से नहीं होते हैं। दल की सम्पूर्ण शक्ति कुछ व्यक्तियों के हाथों में सिमट जाती है। दलों के पास अपने सदस्यों की सूची भी नहीं होती है। 

(iii) साधारण सदस्यों की उपेक्षा– यह भी देखा गया है कि दलों में साधारण सदस्यों की उपेक्षा की जाती है, उसे दल की नीतियों के निर्माण में सहभागिता प्रदान नहीं की जाती है, वह दल के कार्यक्रमों के बारे में अनभिज्ञ बना रहता है। जो सदस्य दल की नीतियों का विरोध करते हैं उन्हें दल की प्राथमिक सदस्यता से वंचित कर दिया जाता है। 

(iv) वंशवादी उत्तराधिकार– भारत सहित विश्व के अनेक राष्ट्रों में यह देखा गया है कि दलों में भी वंशवादी उत्तराधिकार की परम्परा पड़ गई है। कांग्रेस की बागडोर पहले पं० नेहरू के हाथ में थी, उनके बाद श्रीमती इन्दिरा गांधी,राजीव गांधी, सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी के हाथों रही। 

(v) धन की महत्ता– वर्तमान में राजनीतिक दलों में भी धन की महत्ता बढ़ती जा रही है। चुनाव के समय राजनीतिक दलों द्वारा अपने प्रत्याशियों कोआर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। सभी राजनीतिक दल चुनावों में विजय प्राप्त करना चाहते हैं। अत राजनीतिक दल चन्दों के माध्यम से धन का संग्रह करते हैं।है। सम्पूर्ण विश्व में लोकतन्त्र के समर्थक देशों ने लोकतान्त्रिक राजनीति में अमीरकी लोग तथा बड़ी कम्पनियों की बढ़ती भूमिका के प्रति चिन्ता व्यक्त की है।

(vi) सार्थक विकल्प का अभाव– राजनीतिक दलों के समक्ष महत्त्वपूर्ण चुनौती राजनीतिक दलों के बीच विकल्पहीनता की स्थिति की है। सार्थक विकल्पका तात्पर्य यह है कि राजनीतिक दलों की नीतियों तथा कार्यक्रमों में महत्त्वपूर्णअन्तर हो। वर्तमान विश्व के विभिन्न दलों के बीच वैचारिक अन्तर कम होता गयाहै तथा यह प्रवृत्ति सम्पूर्ण विश्व में दिखाई देती है।

(vii) राजनीति का अपराधीकरण– वर्तमान में राजनीति का अपराधीकरण हो रहा है। राजनीतिक दलों के समक्ष उनमें अपराधी तत्त्वों की बाहरी घुसपैठ तथाप्रभाव है। राजनीतिक दल चुनावों में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की सहायता लेतेहैं। राजनीतिक दल उन्हें अपनी पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार भी बनाने में संकोच नहीं करते हैं।

 

Q5. राजनीतिक समानता क्या है ? 

Ans. संविधान के द्वारा राजनीति में सबका स्थान समान है तथा देश के राजनीतिक क्रियाकलापों में सभी को बिना किसी भेदभाव के भाग लेने का अधिकार। हर नागरिक को चुनाव मतदान और चुनाव लड़ने का अधिकार दिया जाना चाहिए। 

 

Q6. 1992 के संविधान संशोधन के पहले और बाद के स्थानीय शासन के महत्त्वपूर्ण अंतरों को बताइए। 

Ans. 1992 के पहले स्थानीय सरकार के पास अपने कोई अधिकार या संसाधन नहीं थे परन्तु 1992 के संविधान के बाद की राज्य सरकारों से यह अपेक्षा की गई, वे अपने राजस्व और अधिकारों के कुछ अंश स्थानीय सरकारों को देगी। 1992 के पहले स्थानीय सरकारों के लिए नियमित रूप से चुनाव नहीं होते थे, परन्तु 1992 के संविधान के बाद नियमित रूप से चुनाव होने लगे। 1992 के पहले महिलाओं के लिए, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए एवं पिछड़े वर्ग के लिए सींटे आरक्षित नहीं थी। जबकि 1992 के संविधान के बाद महिलाओं के लिए, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए एवं पिछड़े वर्ग के लिए भी सींटे आरक्षित की गई।

 

Q7. विनिर्माण क्या है ? परिभाषित करें। 

Ans. कच्चे माल को मूल्यवान उत्पाद में परिवर्तित कर अधिक मात्रा में वस्तुओं के उत्पादन को विनिर्माण या वस्तु निर्माण कहते हैं। विनिर्माण से तैयार माल उपभोक्ताओं द्वारा उपयोग किया जाता है। यह किसी भी अर्थव्यवसायी की सम्पन्नता का जनक होता है। राष्ट्रीय विनिर्माण नीति में राष्ट्रीय और निवेश क्षेत्रों की स्थापना व्यापार के नियमों को युक्तिसंगत और सरल बनाना, बीमार इकाइयों को बन्द करने की व्यवस्था को सुगम बनाना, औद्योगिक प्रशिक्षण और कौशल उन्नयन के उपाय बढ़ाना और विनिर्माण इकाइयों और सम्बन्धित गतिविधियों में अंशधारिता पूँजी लगाने के लिये भी प्रोत्साहन देना शामिल है।

 

Q8. आधारभूत उद्योग क्या हैं ? 

Ans. जो उद्योग दूसरे उद्योगों के आधार होते हैं उन्हें आधारभूत उद्योग कहा जाता है, जैसे-लोहा उद्योग एवं गंधक अम्ल जैसे रसायन उद्योग इत्यादि इन्हे मूल उद्योग भी कहा कहा जाता है। जिनका निर्मित सामान दूसरे उद्योगों के आधार पर होता है। 

 

Q9. निम्नलिखित को भारत के रेखामानचित्र पर प्रदर्शित करें : 

(i) कोयना बाँध

(ii) पेरियार बाँध

(iii) नर्मदा नदी

(iv) महानदी नदी

(v) पारादीप समुद्रीपत्तन 

 

                                     अथवा

कृषि को परिभाषित करें और चावल की खेती की व्याख्या करें। 

Ans. भूमि पर की जाने वाली समस्त क्रियाएँ जो फसलोत्पादन एवं पशुपालन व्यवसाय के लिए आवश्यक है, उन्हें करने की कला एवं विज्ञान को कृषि कहा जाता है। कृषि एक बहुत प्रचलित व्यवसाय है। चावल की खेती का पारंपरिक तरीका है तरुण अंकुर के रोपण के समय, या बाद में खेतों में पानी भरना। इस सरल विधि के लिए अच्छी सिंचाई योजना की आवश्यकता होती है। चावल को ऐसी भूमि पर उगाया जाता है, जो वर्षा या सिंचाई के पानी से लबालब भरी होती है। भारत में चावल की खेती समुद्र तल से 3000 मीटर ऊंचाई तक एवं 8 से 35 डिग्री उत्तर अक्षांश तक होती है। चावल की फसल को एक गर्म और नम जलवायु की जरूरत है। यह सबसे अच्छा उच्च नमी, लंबे समय तक धूप और पानी की एक आश्वस्त आपूर्ति वाले क्षेत्रों के लिए अनुकूल है। फसल की जीवन अवधि के दौरान आवश्यक औसत तापमान 21 से 42°C होना चाहिए। चावल को बाढ़ रहित भूमि पर उगाया जाता है, और फसल वर्षा के पानी पर बहुत ज्यादा निर्भर होती है। प्राकृतिक वर्षा इन खेतों की सिंचाई का एकमात्र तरीका है। ऐसे मामले में, हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि 3 से 4 महीने तक लगातार बारिश होनी चाहिए, जो पौधों के सही विकास के लिए बहुत जरूरी होता है। 

 

Q10. धारणीयता का विषय, विकास हेतु क्यों महत्त्वपूर्ण है ? वर्णन कीजिए। 

Ans. विकास का मतलब केवल वर्तमान को खुशहाल बनाना ही नहीं है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भविष्य बनाना भी है। धारणीयता का मतलब होता है ऐसा विकास करना जो आने वाले कई वर्षों तक सतत चलता रहे। यह तभी संभव होता है जब हम संसाधन का दोहन करने की बजाय उनका विवेकपूर्ण इस्तेमाल करते हैं। पिछली सदी में दुनिया के तेजी से औद्योगिकीकरण से स्थायी विकास का मुद्दा उभरा है। यह महसूस किया जाता है कि आर्थिक विकास और औद्योगिकीकरण ने प्राकृतिक संसाधनों का बहुत शोषण किया है। स्थिरता प्राकृतिक संसाधनों का तर्कसंगत उपयोग को बढ़ावा देती है। यदि हम उन्हें आर्थिक रूप से इस्तेमाल करते हैं तो विकास के लिए हमारे वर्तमान और भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए धरती में पर्याप्त संसाधन हैं। लेकिन, यदि हम तेजी से आर्थिक विकास के लालच में उनका उपयोग करते हैं, तो हमारी दुनिया एक विशाल बर्बाद भूमि बन सकती है। धारणीयता का विषय विकास के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण परस्पर निर्भर हैं। पर्यावरण की उपेक्षा कर आर्थिक विकास भावी पीढ़ी के लिए धारणीय नहीं हो सकता। 

 

                                            अथवा

उदाहरण सहित प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक क्षेत्रकों में अन्तर स्पष्ट करें।  

Ans. प्राथमिक क्षेत्र– प्राथमिक क्षेत्र का संबंध पृथ्वी से प्राकृतिक संसाधनों या कच्चे माल के निष्कर्षण से है। प्राथमिक क्षेत्र के आर्थिक संचालन आमतौर पर उस विशेष स्थान की प्रकृति पर निर्भर होते हैं। ये उद्योग ऐसे उत्पाद बनाते हैं, जिन्हें आम जनता को बेचा या आपूर्ति किया जाएगा। एक प्राथमिक उद्योग का आर्थिक संचालन ग्रह के प्राकृतिक संसाधनों, जैसे वनस्पति, पृथ्वी जल और खनिजों का उपयोग करने के इर्द-गिर्द घूमता है।  खनन, खेती और मछली पकड़ना प्राथमिक उद्योगों के उदाहरण हैं। इस निष्कर्षण से कच्चे माल और मुख्य खाद्य पदार्थ, कोयला, लकड़ी, लोहा और मकई का उत्पादन होता है। 

द्वितीयक क्षेत्र– प्राथमिक उद्योगों के कच्चे माल जमा होने के बाद, द्वितीयक उद्योग चित्र में प्रवेश करते हैं। निर्माण और विनिर्माण उद्योग मुख्य रूप से द्वितीयक उद्योग में शामिल हैं। कच्चे माल का तैयार वस्तुओं में परिवर्तन द्वितीयक क्षेत्र का हिस्सा है। उदाहरण के लिए, फर्नीचर बनाने के लिए लकड़ी का उपयोग किया जाता है, ऑटोमोबाइल बनाने के लिए स्टील का उपयोग किया जाता है, और वस्त्रों का उपयोग कपड़े बनाने के लिए किया जाता है। 

तृतीयक क्षेत्र– तृतीयक क्षेत्र उपभोक्ताओं को द्वितीयक क्षेत्र के उत्पादों का विपणन करते हैं। वे आम तौर पर उत्पाद बनाने में नहीं बल्कि आम जनता और अन्य उद्योगों को सेवाएं प्रदान करने में शामिल होते हैं। विभिन्न प्रकृति सेवाओं का निर्माण, जैसे अनुभव, चर्चा, पहुंच, तृतीयक क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है। तृतीयक क्षेत्र के उद्योगों में निवेश, वित्त, बीमा, बैंकिंग, थोक, खुदरा, परिवहन, अचल संपत्ति सेवाएं शामिल हैं; पुनर्विक्रय व्यापार; पेशेवर, कानूनी, होटल, व्यक्तिगत सेवाएं; पर्यटन, रेस्तरां, मरम्मत और रखरखाव सेवाएं, पुलिस, सुरक्षा, रक्षा सेवाएं, प्रशासनिक, परामर्श, मनोरंजन, मीडिया, सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य, सामाजिक कल्याण आदि। 

 

Q11. बैंकों के कोई दो मुख्य कार्य बताइए। 

Ans. जमा धन स्वीकार करना, चालू खाते की सुविधा, बचत खाते की सुविधा, स्थायी जमा खाता, ऋण देना, असुरक्षित साख, सुरक्षित साख आदि। 

 

Q12. मनरेगा अधिनियम, 2005 की संक्षेप में व्याख्या करें। 

Ans. मनरेगा को “एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों की गारंटीकृत मजदूरी रोजगार प्रदान करके ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा को बढ़ाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, जिसके लिए प्रत्येक परिवार के वयस्क सदस्यों को अकुशल मैनुअल काम करने के लिए स्वयंसेवा किया गया था।” मनरेगा का एक और उद्देश्य है टिकाऊ संपत्तियां (जैसे सड़कों, नहरों, तालाबों, कुओं) का निर्माण करें आवेदक के निवास के 5 किमी के भीतर रोजगार उपलब्ध कराया जाना है, और न्यूनतम मजदूरी का भुगतान करना है। यदि आवेदन करने के 15 दिनों के भीतर काम नहीं किया गया है, तो आवेदक बेरोजगारी भत्ता के हकदार हैं। इस प्रकार, मनरेगा के तहत रोजगार एक कानूनी हकदार है। 

 

 

SET-A (Objective Questions)

Q1. जापान की सबसे पुरानी मुद्रित पुस्तक कौन-सी है ?

(A) बाइबिल 

(B) डायमंड सूत्र

(C) महाभारत

(D) यूकीयो

 

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