HBSE Class 10 Social Science Question Paper 2021 Answer Key
HBSE Class 10 Social Science Previous Year Question Paper with Answer. HBSE Board Solved Question Paper Class 10 Social Science 2021. HBSE 10th Question Paper Download 2021. HBSE Class 10 Social Science Paper Solution 2021. Haryana Board Class 10th Social Science Question Paper 2021 Pdf Download with Answer.
Subjective Questions
Q1. ‘ऐक्ट ऑफ यूनियन’ क्या था ?
Ans. ‘एक्ट ऑफ यूनियन’ वो अधिनियम था, जिसके अंतर्गत इंग्लैंड और स्कॉटलैंड दोनों देशों का विलय हुआ और ‘ग्रेट ब्रिटेन’ के रूप में एक संयुक्त देश का उदय हुआ। ‘एक्ट ऑफ यूनियन’ 1707 में पारित किया गया था। जिसके अंतर्गत ‘यूनियन विद स्कॉटलैंड’ एक्ट और ‘यूनियन विद इंग्लैंड एक्ट’ इन दोनों अधिनियम के अंतर्गत देशों के संसदों के सांसदों के प्रतिनिधियों ने 22 जुलाई 1706 को एक संधि पर हस्ताक्षर किए जिसे ‘एक्ट ऑफ यूनियन’ का नाम दिया गया। यह अधिनियम 1 मई 1707 को लागू हुआ और इस दिन से स्कॉटलैंड संसद और अंग्रेजी संसद दोनों का विलय होकर ग्रेट ब्रिटेन की संसद की स्थापना हुई और दोनों देशों का विलय होकर ग्रेट ब्रिटेन नाम के एक देश की स्थापना हुई।
Q2. सत्याग्रह के विचार का क्या मतलब है ?
Ans. सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह और सत्य की खोज पर बल दिया जाता था। इसका अर्थ था कि अगर अपका उद्देश्य सच्चा है यदि आपका संघर्ष अनयाय के खिलाफ है तो उत्पीड़क से मुकाबला करने के किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है।
Q3. ‘‘यूरोप में वुडब्लाॅक (काठ की तख्ती) वाली छपाई 1295 के बाद आई।’’ इस कथन की पुष्टि के लिए कोई तीन कारण दें।
Ans. वुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई, इसके कई कारण थे –
1295 ई० में मार्को पोलो नामक महान खरेजी यात्री चीन में काफी सालों तक खोज करने के बाद इटली वापस लौटा। मार्को पोलो चीन के आविष्कारों की जानकारी लेकर इटली आया। 1295 ई० के पूर्व यूरोप वुडब्लॉक प्रिंट की छपाई से अवगत नहीं था। चीन के पास वुडब्लॉक (काठ की तख्ली) वाली छपाई की तकनीक पहले मौजूद थी। मार्को पोलो यह ज्ञान अपने साथ लेकर लौटा। वुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 तक नहीं आने का एक मुख्य कारण यह था कि कुलीन वर्ग, पादरी और भिक्षु संघ पुस्तकों की छपाई को धर्म के विरुद्ध मानते थे। मुद्रित किताबों को सस्ती और अश्लील मानते थे। अतः पुस्तकों की छपाई को प्रोत्साहन प्रारम्भ में नहीं मिला।
अथवा
नेपोलियन की आचार संहिता पर एक नोट लिखें।
Ans. फ्रांस में राजतंत्र वापस लाकर नेपोलियन ने निःसंदेह वहाँ प्रजातंत्र को नष्ट किया था। मगर प्रशासनिक क्षेत्र में उसने क्रांतिकारी सिद्धांतों का समावेश किया था ताकि पूरी व्यवस्था अधिक तर्कसंगत और बन सके। 1804 की नागरिक संहिता जिसे आमतौर पर नेपोलियन की संहिता के नाम से जाना जाता है, ने जन्म पर आधारित विशेषाधिकार समाप्त कर दिए थे। उसने कानून के समक्ष बराबरी और संपत्ति के अधिकार को सुरक्षित बनाया। इस संहिता को फ्रांसीसी नियंत्रण के अधीन क्षेत्रों में भी लागू किया गया। डच गणतंत्र, स्विट्ज़रलैंड, इटली और जर्मनी में नेपोलियन ने प्रशासनिक विभाजनों को सरल बनाया, सामंती व्यवस्था को खत्म किया और किसानों को भू-दासत्व और जागीरदारी शुल्कों से मुक्ति दिलाई। शहरों में भी कारीगरों के श्रेणी संघों के नियंत्राणों को हटा दिया गया। यातायात और संचार व्यवस्थाओं को सुधारा गया। किसानों, कारीगरों, मज़दूरों और नए उद्योगपतियों ने नयी-नयी मिली आज़ादी चखी।
Q4. सत्ता का विकेन्द्रीकरण किसे कहते हैं ?
Ans. सत्ता का विकेंद्रीकरण से तात्पर्य सत्ता अथवा शक्ति के समान वितरण से होता है। इस व्यवस्था में सत्ता का वितरण केवल एक स्थान पर केन्द्रीयकृत न होकर अनेक स्थानीय स्तर पर विभाजित कर दिया जाता है, जिससे सत्ता में सबकी समान भागीदारी हो जाती हैै। सत्ता का विकेंद्रीकरण का तात्पर्य शीर्ष प्रबंधन द्वारा मध्य या निम्न स्तरीय प्रबंधन द्वारा शक्तियों के प्रसार से है। यह प्रबंधन के सभी स्तरों पर प्राधिकरण का प्रतिनिधिमंडल है।
Q5. लोकतंत्र को सबसे बेहतर क्यों बताया गया है ?
Ans. निम्न कारणों से लोकतंत्र को सरकार का सबसे अच्छा रूप माना जाता है –
(i) यह सरकार का अधिक जवाबदेह रूप है क्योंकि उसे लोगों की जरूरतों के बारे में जवाब देना है।
(ii) लोकतंत्र निर्णय लेने की गुणवत्ता में सुधार करता है क्योंकि यह परामर्श और चर्चा पर आधारित है।
(iii) लोकतंत्र मतभेदों और संघर्षों से निपटने का एक तरीका प्रदान करता है।
(iv) लोकतंत्र नागरिकों की गरिमा को बढ़ाता है क्योंकि यह राजनीतिक समानता के सिद्धांत पर आधारित है।
(v) राष्ट्र के शासक जनता द्वारा चुने जाते हैं।
(vi) यह लोगों द्वारा और जनता के लिए संचालित सरकार है।
(vii) लोकतंत्र निर्णय लेने की गुणवत्ता में सुधार करता है।
(viii) लोकतंत्र नागरिकों की गरिमा को बढ़ाता है।
(ix) लोकतंत्र सरकार के अन्य रूपों से बेहतर है क्योंकि यह हमें अपनी गलतियों को सुधारने की अनुमति देता है।
Q6. भारतीय संघीय व्यवस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
Ans. लिखित संविधान– भारतीय संविधान एक लिखित दस्तावेज है जिसमें 395 लेख और 12 अनुसूचियां हैं, और इसलिए, यह संघीय सरकार की बुनियादी आवश्यकता को पूरा करता है। वास्तव में, भारतीय संविधान दुनिया का सबसे विस्तृत संविधान है।
संविधान की सर्वोच्चता– भारत का संविधान भी सर्वोच्च है और केंद्र या राज्यों का हाथ नहीं है। यदि किसी भी कारण से राज्य का कोई भी अंग संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करने का साहस करता है, तो कानून की अदालतें यह सुनिश्चित करने के लिए हैं कि संविधान की गरिमा को हर कीमत पर बरकरार रखा जाए।
कठोर संविधान– भारतीय संविधान काफी हद तक एक कठोर संविधान है। संघ राज्य संबंधों के विषय में संविधान के सभी प्रावधानों को केवल राज्य विधानसभाओं और केंद्रीय संसद के संयुक्त कार्यों द्वारा संशोधित किया जा सकता है। इस तरह के प्रावधानों में संशोधन तभी किया जा सकता है जब संसद में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से संशोधन पारित हो (जिसमें कुल सदस्यता का पूर्ण बहुमत भी होना चाहिए) और कम से कम एक आधा राज्यों द्वारा इसकी पुष्टि की जाए।
शक्तियों का विभाजन– एक महासंघ में, शक्तियों का स्पष्ट विभाजन होना चाहिए ताकि इकाइयों और केंद्र को अपनी गतिविधि के क्षेत्र में लागू करने और कानून बनाने की आवश्यकता हो और कोई भी इसकी सीमाओं का उल्लंघन न करे और दूसरों के कार्यों का अतिक्रमण करने की कोशिश करे। यह आवश्यकता भारतीय संविधान में स्पष्ट है।
स्वतंत्र न्यायपालिका– भारत में, संविधान ने एक सर्वोच्च न्यायालय के लिए प्रावधान किया है और भारत में न्यायपालिका स्वतंत्र और सर्वोच्च है, यह देखने का हर संभव प्रयास किया गया है। भारत का सर्वोच्च न्यायालय एक कानून को असंवैधानिक या अल्ट्रा वायर्स के रूप में घोषित कर सकता है, अगर वह संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन करता है। न्यायपालिका की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए, हमारे न्यायाधीश कार्यपालिका द्वारा हटाने योग्य नहीं हैं और उनके वेतन को संसद द्वारा रोका नहीं जा सकता है।
द्विसदनीय विधानमंडल– एक संघ में एक द्विसदनीय प्रणाली को आवश्यक माना जाता है क्योंकि यह अकेले उच्च सदन में है कि इकाइयों को समान प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है। भारत का संविधान लोकसभा और राज्य सभा से मिलकर केंद्र में द्विसदनीय विधानमंडल का भी प्रावधान करता है। जबकि लोकसभा में लोगों के चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं, राज्य सभा में मुख्य रूप से राज्य विधानसभाओं के चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं। हालाँकि, सभी राज्यों को राज्य सभा में समान प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है।
दोहरी सरकार की राजनीति– एक संघीय राज्य में, दो सरकारें होती हैं- राष्ट्रीय या संघीय सरकार और प्रत्येक घटक इकाई की सरकार। लेकिन एकात्मक राज्य में केवल एक सरकार होती है, अर्थात् राष्ट्रीय सरकार। इसलिए, भारत, एक संघीय प्रणाली के रूप में, एक केंद्र और राज्य सरकार है।
अथवा
लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की विभिन्न भूमिकाओं की चर्चा कीजिए।
Ans. लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की अपनी विशेष भूमिका होती है। ये लोकतंत्र में अपनी भूमिका निम्नलिखित रूप से अदा करते है –
(i) राजनीतिक दल चुनाव लड़ते है और यह कोशिश करते है कि चुनाव में उनके उम्मीदवार की जीत हो ।
(ii) ये राजनीतिक दल देश में व्याप्त समस्याओं को जनता के सामने रख कर जनता में जागरूकता पैदा करते है।
(iii) राजनीतिक दल देश के कानून निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है।
(iv) राजनीतिक दल मतदाताओं के समक्ष अपनी छांवे अच्छी बनाने के लिए जनता की सुख-सुविधा के लिए विभिन्न कार्य करते है।
(v) राजनीतिक दल चुनाव लड़कर सरकार गठित करते है।
(vi) चुनाव में हारने वाले दल विपक्ष की भूमिका अदा करते है। इस प्रकार वे सरकार पर अंकुश रखते है।
(vi) राजनीतिक दल जनता को अपने भाषणों के माध्यम से सरकार की नीतियों से परिचित कराते है जिससे जनता को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त होती है।
(viii) सरकारी दल कल्याणकारी योजनाओं को जनता तक पहुँचाने का कार्य करते है।
(ix) राजनीतिक दल मतदाताओं के समक्ष विभिन्न नीतियों और कार्यक्रमों को रखते है जिनमे से जनता अपनी पसंद का चुनाव करती है।
Q7. उत्पत्ति के आधार पर दो संसाधनों के नाम लिखें।
Ans. उत्पत्ति के आधार पर संसाधन के प्रकार :
जैव संसाधन– वैसे संसाधन जैव संसाधन कहलाते हैं जो जैव मंडल से मिलते हैं। उदाहरण- मनुष्य, वनस्पति, मछलियाँ, प्राणिजात, पशुधन, आदि।
अजैव संसाधन– वैसे संसाधन अजैव संसाधन कहलाते है जो निर्जीव पदार्थों से मिलते हैं। उदाहरण- मिट्टी, हवा, पानी, धातु, पत्थर, आदि।
Q8. उद्योग पर्यावरण को कैसे प्रदूषित करते हैं ?
Ans. उद्योग पर्यावरण को निम्नलिखित तरीके से प्रदूषित करते है –
वायु प्रदूषण– चिमनी से निकलने वाला धुआँ वायु को प्रदूषित करता है। अनचाही गैसे जैसे सल्फर डाईऑक्साइ तथा कार्बन मोनोऑक्साइड वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण है। छोटे-बड़े कारखाने प्रदूषण के नियमों का उलंघन करते हुए धुआँ निष्कासित करते है। जहरीली गैसों का रिसाव बहुत भयानक होता है। यह मानव स्वास्थ्य, पशुओं पौधों और पुरे पर्यावरण पर दुष्प्रभाव डालती है।
जल प्रदूषण– उद्योगों से निकला हुआ जल अपने से 8 गुना अधिक ताजे जल को प्रदूषित करता है। उद्योगों द्वारा कार्बनिक और अकार्बनिक अपशिष्ट प्रदार्थों के नदी में छोड़ने से जल प्रदूषण फैलता है। जल प्रदूषण के प्रमुख कारक- कागज, रसायन, वस्र चमड़ा उद्योग आदि है। भारी धातुएँ जैसे सीसा, पारा आदि जल में वाहित करते है।
तापीय प्रदूषण– कारखानों तथा तापघरों से गर्म जल को बिना ठंडा किए नदियों और तालाबों में छोड़ देने पर तापीय प्रदूषण होता है। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के अपशिष्ट व परमाणु शस्त्र उत्पादक कारखानों से जन्मजात विकार आदि होते है।
ध्वनि प्रदूषण– कुछ उद्योगों से ध्वनि प्रदूषण भी होता है। इससे श्रवण असक्षमता ही नहीं, रक्तचाप आदि समस्याएँ भी उत्पन्न होती है। औद्योगिक तथा निर्माण कार्य, गैस यांत्रिक, जेनरेटर आदि भी ध्वनि उत्पन करते है जो ध्वनि प्रदूषण का कारण बनती है।
Q9. संसाधन क्या है ? मृदा संसाधन की व्याख्या करें।
Ans. संसाधन (resource) एक ऐसा स्रोत है जिसका उपयोग मनुष्य अपने इच्छाओं की पूर्ति के लिए के लिए करता है। स्मिथ एवं फिलिप्स के अनुसार- “भौतिक रूप से संसाधन वातावरण की वे प्रक्रियायें हैं जो मानव के उपयोग में आती हैं।” जेम्स फिशर के शब्दों में- ” संसाधन वह कोई भी वस्तु हैं जो मानवीय आवश्यकतों और इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।
मृदा संसाधन– मृदा एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। मिट्टी में ही खेती होती है। मिट्टी कई जीवों का प्राकृतिक आवास भी है।
मृदा का निर्माण– मिट्टी के निर्माण की प्रक्रिया अत्यंत धीमी होती है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मात्र एक सेमी मृदा को बनने में हजारों वर्ष लग जाते हैं। मृदा का निर्माण शैलों के अपघटन क्रिया से होता है। मृदा के निर्माण में कई प्राकृतिक कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है; जैसे कि तापमान, पानी का बहाव, पवन। इस प्रक्रिया में कई भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों का भी योगदान होता है।
मृदा का वर्गीकरण– बनावट, रंग, उम्र, रासायनिक गुण, आदि के आधार पर मृदा के कई प्रकार होते हैं। भारत में पाई जाने वाली मृदा के प्रकार निम्नलिखित हैं :
(i) जलोढ़ मृदा– जलोढ़ मृदा नदियों या नदियों द्वारा बनाए गये मैदानों में पाई जाती है। जलोढ़ मृदा की आयु कम होती है। भारत में यह मृदा पूर्व और उत्तर के मैदानों में पाई जाती है। इन क्षेत्रों में गंगा, यमुना और ब्रह्मपुत्र नाम की नदियाँ बहती हैं। जलोढ़ मृदा का संचयन नदियों के तंत्र द्वारा होता है। जलोढ़ मृदा पूरे उत्तरी मैदान में पाई जाती है। यह मृदा महानदी कृष्णा, गोदावरी और कावेरी के निकट के तटीय मैदानों में भी पाई जाती है। जलोढ़ मृदा में सिल्ट, रेत और मृत्तिका विभिन्न अनुपातों में पाई जाती है। जब हम नदी के मुहाने से ऊपर घाटी की ओर बढ़ते हैं तो जलोढ़ मृदा के कणों का आकार बढ़ता जाता है। जलोढ़ मृदा बहुत उपजाऊ होती है। इसलिए उत्तर के मैदान में घनी आबादी बसती है। कणों के आकार के अलावा, मृदा को हम आयु के हिसाब से भी कई प्रकारों में बाँट सकते हैं। पुरानी जलोढ़ मृदा को बांगर कहते हैं और नई जलोढ़ मृदा को खादर कहते हैं। बांगर के कण छोटे आकार के होते हैं जबकि खादर के कण बड़े आकार के होते हैं। जलोढ़ मृदा में पोटाश, फॉस्फोरिक एसिड और चूना की प्रचुरता होती है। इसलिये यह मृदा गन्ने, धान, गेहूँ, मक्का और दाल की फसल के लिए बहुत उपयुक्त होती है।
(ii) काली मृदा– काली मृदा का नाम इसके काले रंग के कारण पड़ा है। इसे रेगर मृदा भी कहते हैं। काली मृदा दक्कन पठार के उत्तर पश्चिमी भाग में पाई जाती है। यह महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पठारों में तथा कृष्णा और गोदावरी की घाटियों में पाई जाती है। काली मृदा में सूक्ष्म कणों की प्रचुरता होती है। इसलिए इस मृदा में नमी को लम्बे समय तक रोकने की क्षमता होती है। इस मृदा में कैल्सियम, पोटाशियम, मैग्नीशियम और चूना होता है। काली मृदा कपास की खेती के लिए बहुत उपयुक्त होती है। इस मृदा में कई अन्य फसल भी उगाये जा सकते हैं।
(iii) लाल और पीली मृदा– आग्नेय और रूपांतरित चट्टानों में लोहे की उपस्थिति के कारण इस मृदा का रंग लाल होता है। जब लोहे का जलयोजन हो जाता है तो इस मृदा का रंग पीला होता है। यह मृदा दक्कन पठार के पूर्वी और दक्षिणी भागों में पाई जाती है। यह मृदा उड़ीसा, छत्तीसगढ़, गंगा के मैदान के दक्षिणी भागों में तथा पश्चिमी घाट के पिडमॉन्ट जोन में भी पाई जाती है।
(iv) लैटराइट मृदा– लैटराइट मृदा का निर्माण उन क्षेत्रों में होता है जहाँ उच्च तापमान के साथ भारी वर्षा होती है। भारी वर्षा से निच्छालन होता है और जीवाणु मर जाते हैं। इस कारण से लैटराइट मृदा में ह्यूमस न के बराबर होती है या बिलकुल भी नहीं होती है। यह मृदा मुख्य रूप से केरल, कर्णाटक, तमिल नाडु, मध्य प्रदेश और उड़ीसा तथा असम के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है। इस मृदा को खाद के भरपूर प्रयोग से खेती के लायक बनाया जा सकता है।
(v) मरुस्थली मृदा– यह मृदा उन स्थानों में पाई जाती है जहाँ अल्प वर्षा होती है। इन क्षेत्रों में अधिक तापमान के कारण वाष्पीकरण तेजी से होता है। इस मृदा में लवण की मात्रा अत्यधिक होती है। इस मृदा को समुचित उपचार के बाद खेती के लायक बनाया जा सकता है। मरुस्थली मृदा राजस्थान और गुजरात में पाई जाती है।
(vi) वन मृदा– वन मृदा पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है। ऊपरी ढ़लानों पर यह मृदा अत्यधिक अम्लीय होती है। लेकिन निचले भागों में यह मृदा काफी उपजाऊ होती है।
मृदा अपरदन और संरक्षण– मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहते हैं। मृदा अपरदन के मुख्य कारण हैं; वनोन्मूलन, सघन कृषि, अति पशुचारण, भवन निर्माण और अन्य मानव क्रियाएँ। मृदा अपरदन से मरुस्थल बनने का खतरा रहता है। मृदा अपरदन को रोकने के लिए मृदा संरक्षण की आवश्यकता है। इसके लिए कई उपाय किये जा सकते हैं। पेड़ों की जड़ें मृदा की ऊपरी परत को बचाए रखती हैं। इसलिये वनरोपण से मृदा संरक्षण किया जा सकता है। ढ़ाल वाली जगहों पर समोच्च जुताई से मृदा के अपरदन को रोका जा सकता है। पेड़ों को लगाकर रक्षक मेखला बनाने से भी मृदा अपरदन की रोकथाम हो सकती है।
अथवा
निम्नलिखित को भारत देश के रेखामानचित्र पर प्रदर्शित करें:
(i) सरदार सरोवर बाँध (गुजरात)
(ii) ताप्ती नदी (महाराष्ट्र)
(iii) महानदी नदी (उड़ीसा)
(iv) विशाखापटनम समुद्री पत्तन (आन्ध्र प्रदेश)
(v) मुम्बई हवाई पत्तन (महाराष्ट्र)