HBSE Class 12 Sociology Question Paper 2024 Answer Key

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HBSE Class 12 Sociology Question Paper 2024 Answer Key

1. ‘जन सांख्यिकीय’ आँकड़े महत्त्वपूर्ण होते हैं :
(A) राज्य की नीतियाँ बनाने में
(B) ‘जन’ कल्याण सम्बन्धी नीतियाँ बनाने में
(C) आर्थिक विकास में
(D) उपरोक्त सभी में
उत्तर – (D) उपरोक्त सभी में

2. मॉल्थस का जनसंख्या वृद्धि सिद्धान्त किस जनसंख्या विषयक निबंध में स्पष्ट किया गया है?
(A) राजनीति पर निबन्ध
(B) अर्थव्यवस्था पर निबंध
(C) जनसंख्या पर निबंध
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर – (C) जनसंख्या पर निबंध

3. वह ‘समाज’ जो समुदाय, सामाजिक संस्थाओं और सम्बन्धों के द्वारा बना है और संचालित होता है, कहलाता है : (A) जनसमूह
(B) जनसंख्या
(C) जनसंचार
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर – (D) उपरोक्त में से कोई नहीं
(सही उत्तर ‘समाज’ है)

4. ‘जनजातीय’ जनसंख्या का 85% (प्रतिशत) भाग देश के किस हिस्से में रहता है?
(A) उत्तरी भारत में
(B) दक्षिणी भारत में
(C) मध्य भारत में
(D) पूर्वोत्तर भारत में
उत्तर – (C) मध्य भारत में

5. इनमें से कौन-सी सामाजिक ‘संस्था’ है?
(A) परिवार
(B) जाति
(C) बाजार
(D) ये सभी
उत्तर – (D) ये सभी

6. निम्न में से कौन-सा बड़ी संख्या में लोगों तक ‘सूचना’ प्रदान करने का एक साधन है?
(A) फिल्में
(B) इंटरनेट
(C) टेलीविज़न
(D) ये सभी
उत्तर – (D) ये सभी

7. ‘औद्योगीकरण’ का अर्थ है :
(A) मशीनों पर आधारित उत्पाद
(B) नये सामाजिक समूहों का उद्भव
(C) नये सामाजिक सम्बन्धों का विकास
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर – (D) उपरोक्त सभी

8. निम्न में से कौन-सा आधुनिक नगर ‘औपनिवेशिक’ शासन में प्रचलित हुआ?
(A) बंबई
(B) मद्रास
(C) (A) और (B) दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (C) (A) और (B) दोनों

9. भारत में …………… के विकास के कारण ‘उप-निवेशवाद’ प्रबल हुआ। (पूँजीवाद / उपभोक्तावाद)
उत्तर – पूँजीवाद

10. ‘औपनिवेशिक’ शासन ने भारतीय मजदूरों को निम्न में से किस अन्य ‘उपनिवेश’ में भेजा?
(A) एशिया
(B) अफ्रीका
(C) अमेरिका
(D) उपरोक्त सभी में
उत्तर – (D) उपरोक्त सभी में

11. भारतीय ‘संविधान’ भारतीय ‘लोकतन्त्र’ का आधार है :
(A) मूल
(B) यथार्थ
(C) मजबूत
(D) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर – (A) मूल

12. भारत के लिये ‘संविधान’ का मसौदा तैयार किया गया :
(A) 1928 में
(B) 1930 में
(C) 1938 में
(D) 1942 में
उत्तर – (A) 1928 में (नेहरू रिपोर्ट)

13. भारतीय ‘संविधान’ की प्रस्तावना निम्न में से किसे सुनिश्चित करने का प्रयास करती है?
(A) सामाजिक न्याय को
(B) आर्थिक न्याय को
(C) राजनीतिक न्याय को
(D) उपरोक्त सभी को
उत्तर – (D) उपरोक्त सभी को

14. ‘फेडरेशन ऑफ इंडियन कॉमर्स ऐंड चैम्बर्स’ सम्बन्धित है :
(A) पूँजीपतियों से
(B) उद्योगपतियों से
(C) राजनीतिज्ञों से
(D) उपरोक्त सभी से
उत्तर – (B) उद्योगपतियों से

15. भारतीय ‘समाज’ प्राथमिक रूप से …………… समाज है। (ग्रामीण / शहरी)
उत्तर – ग्रामीण

16. महिलाओं को पारिवारिक सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा दिलाने में सहायक होता है :
(A) समाज
(B) परिवार
(C) सगे-सम्बन्धी
(D) कानून
उत्तर – (D) कानून

17. ‘नमामि गंगे’ परियोजना में राज्य शामिल हैं :
(A) 9
(B) 11
(C) 13
(D) 15
उत्तर – (B) 11

18. 1998 में विश्व भर में कितने करोड़ लोग ‘इंटरनेट’ का इस्तेमाल करते थे?
(A) पाँच
(B) छ:
(C) सात
(D) आठ
उत्तर – (A) पाँच

19. निम्न में से कौन-सी ‘नदी’ सबसे लम्बी है?
(A) युमना
(B) गोदावरी
(C) गंगा
(D) कृष्णा
उत्तर – (C) गंगा

20. ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम में कितने सेक्टरों को टारगेट किया गया है?
(A) दस
(B) पन्द्रह
(C) बीस
(D) पच्चीस
उत्तर – (D) पच्चीस

21. ‘जनसंख्या’ संवृद्धि दर से क्या तात्पर्य है?
उत्तर – जनसंख्या संवृद्धि दर से तात्पर्य एक विशिष्ट अवधि में जनसंख्या आकार में होने वाले औसत परिवर्तन की वार्षिक दर से है, जिसे सामान्यतः प्रतिशत में मापा जाता है। यह दर जन्म दर और मृत्यु दर के अंतर के आधार पर निर्धारित होती है, तथा आप्रवासन (किसी क्षेत्र में लोगों का आना) और उत्प्रवास (किसी क्षेत्र से लोगों का जाना) भी इस दर को प्रभावित करते हैं।

22. ‘जनसंख्या’ वृद्धि के नियन्त्रण के लिये लाभकारी कृत्रिम अवरोध जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए प्रमुख कृत्रिम अवरोध में गर्भनिरोधक गोलियाँ, कॉपर-T (IUD), गर्भनिरोधक इंजेक्शन, डायाफ्राम तथा गर्भनिरोधक क्रीम/जेली शामिल हैं। इसके अतिरिक्त नसबंदी (पुरुष व महिला), सुरक्षित गर्भपात (MTP), विवाह में देरी, छोटा परिवार अपनाने को प्रोत्साहित करना तथा जनसंख्या नियंत्रण के लिए सामाजिक जागरूकता फैलाना भी प्रभावी उपाय हैं।

23. ‘स्थाई विशेषकों’ में क्या-क्या शामिल है?
उत्तर – स्थाई विशेषक वे सामाजिक गुण हैं जो व्यक्ति को जन्म के साथ ही प्राप्त हो जाते हैं और जिन्हें अपनी इच्छा से न तो चुना जा सकता है और न ही बदला जा सकता है। इनमें जाति, धर्म, लिंग, परिवार/वंश और भाषा जैसी जन्मजात पहचानें आती हैं। ये विशेषक समाज में व्यक्ति की स्थिति, भूमिकाओं और अवसरों को गहराई से प्रभावित करते हैं।

24. सबसे नीची समझी जाने वाली ‘जातियों’ के उत्थान के लिये गाँधीजी ने क्या प्रयास किया?
उत्तर – गाँधीजी ने अस्पृश्यता और सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध व्यापक अभियान चलाया, दलितों को सम्मान देने के लिए उन्हें ‘हरिजन’ कहा और मंदिरों व सार्वजनिक स्थलों पर उनके प्रवेश हेतु आंदोलन किए। उन्होंने शिक्षा, स्वच्छता और आत्मसम्मान पर जोर दिया, पूना समझौते से उनके राजनीतिक अधिकारों को मजबूत किया तथा ‘हरिजन सेवक संघ’ की स्थापना कर उनके सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए संगठित प्रयास किए।

25. ‘साक्षात्कार’ पद्धति का एक लाभ व एक हानि लिखिए।
उत्तर – साक्षात्कार पद्धति का एक लाभ यह है कि इसमें शोधकर्ता सीधे व्यक्ति से बातचीत करके गहरी, स्पष्ट और विश्वसनीय जानकारी प्राप्त कर सकता है।
एक हानि यह है कि उत्तर व्यक्ति की भावनाओं, सामाजिक दबाव या शोधकर्ता के प्रभाव से प्रभावित हो सकते हैं, जिससे निष्पक्षता कम हो सकती है।

26. ‘उपनिवेशवाद’ किसे माना जाता है?
उत्तर – उपनिवेशवाद एक प्रक्रिया है जिसमें एक शक्तिशाली देश किसी दूसरे देश या क्षेत्र पर राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक नियंत्रण स्थापित करके उसके प्राकृतिक संसाधनों और श्रम का शोषण करता है। इसमें प्रायः अपने लोगों को वहाँ बसाना, स्थानीय शासन और संस्कृति पर प्रभुत्व जमाना तथा समाज-व्यवस्था को अपने हितों के अनुसार ढालना शामिल होता है। इसका मुख्य उद्देश्य अधिकाधिक लाभ, शक्ति और विस्तार प्राप्त करना होता है।

27. ‘राजनीतिक दल’ को परिभाषित कीजिए।
उत्तर – राजनीतिक दल ऐसे संगठित लोगों का समूह होता है जो समान विचारधारा रखते हैं, देश की समस्याओं पर एक मत होते हैं और चुनावों में भाग लेकर राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। राजनीतिक दल जनता के हितों की नीतियाँ बनाते हैं, सरकार के गठन और संचालन में भाग लेते हैं तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता को शासन-प्रक्रिया से जोड़ने का कार्य करते हैं।

28. ‘पंचायतों’ की आय के चार मुख्य स्रोत बताइए।
उत्तर – (i) घर, भूमि और पशुओं पर लगाए जाने वाले स्थानीय कर व शुल्क
(ii) राज्य सरकार से मिलने वाली अनुदान राशि और सहायता
(iii) पंचायत द्वारा लगाए गए बाजार, मेला, तालाब, नल-कूप आदि के उपयोग शुल्क
(iv) केंद्र व राज्य सरकार की ग्रामीण विकास योजनाओं से मिलने वाली धनराशि और सहायता

29. ‘भूमि की हदबन्दी अधिनियम’ क्या है?
उत्तर – भूमि की हदबंदी अधिनियम एक कानून है जो किसी व्यक्ति या परिवार के पास रखी जा सकने वाली भूमि की अधिकतम सीमा निर्धारित करता है। इसका उद्देश्य बड़ी जमींदारियों को समाप्त करना, जमीन का समान वितरण सुनिश्चित करना और भूमिहीन किसानों को भूमि उपलब्ध कराना है। अधिनियम के तहत अतिरिक्त भूमि सरकार को सौंप दी जाती है, जिसे फिर छोटे किसानों या भूमिहीनों में बाँट दिया जाता है।

30. ‘अकाल’ पड़ने के प्रमुख कारकों का उल्लेख करें। इसका एक प्रमुख दुष्प्रभाव बताइए।
उत्तर – अकाल पड़ने के प्रमुख कारक लंबे समय तक वर्षा का अभाव, वर्षा का अनियमित होना, नदियों-तालाबों का सूख जाना और भूजल का अत्यधिक दोहन हैं, जिनसे फसलें नष्ट हो जाती हैं और पानी की भारी कमी हो जाती है। वनों की कटाई और मिट्टी की उर्वरता में कमी भी इस समस्या को और बढ़ाती है क्योंकि भूमि अपनी उत्पादकता खोने लगती है। कई बार खाद्यान्न का गलत वितरण, गरीबी और सरकारी स्तर पर कुप्रबंधन जैसी मानव-जनित स्थितियाँ भी भोजन की कमी को गंभीर बनाकर अकाल को जन्म दे देती हैं।
अकाल का प्रमुख दुष्प्रभाव यह है कि बड़े पैमाने पर भूखमरी और कुपोषण फैल जाता है, जिससे लोगों की स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ती है और मृत्यु दर बढ़ने लगती है।

31. ‘संयुक्त परिवार’ क्या है?
उत्तर – संयुक्त परिवार वह परिवार होता है जिसमें दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची, भाई-बहन और अन्य रिश्तेदार एक ही घर में मिलकर रहते हैं, जहाँ सबकी आय, खर्च और जिम्मेदारियाँ साझा होती हैं। इस प्रकार के परिवार में संपत्ति, भोजन, पालन-पोषण और निर्णय सामूहिक रूप से किए जाते हैं, जिससे सदस्य एक-दूसरे के साथ सहयोग, सुरक्षा और भावनात्मक जुड़ाव महसूस करते हैं। संयुक्त परिवार सामाजिक मूल्यों, परंपराओं और अनुशासन को बनाए रखते हुए बच्चों को सामूहिक जीवन का अनुभव भी कराता है। ऐसे परिवार में हर सदस्य एक दूसरे का सहारा बनता है और कठिन परिस्थितियों में भी सहकारी भावना बनी रहती है, जिससे परिवार की एकता और स्थिरता मजबूत होती है। संयुक्त परिवार बच्चों को संस्कार, व्यवहार, आपसी सम्मान और जिम्मेदारी निभाने की वास्तविक शिक्षा भी प्रदान करता है।

32. ‘सार्वजनिक स्थल’ कौन से हैं? उनका उपयोग किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर – सार्वजनिक स्थल वे स्थान होते हैं जो सरकार या समुदाय द्वारा सभी नागरिकों के लिए साझा उपयोग के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं, जैसे पार्क, सड़कें, बाजार, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, पुस्तकालय, अस्पताल, विद्यालय और सामुदायिक भवन। इन स्थलों का उपयोग लोग घूमने-फिरने, आने-जाने, खरीदारी करने, मनोरंजन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ प्राप्त करने और विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए करते हैं। सार्वजनिक स्थल समाज में व्यवस्था, सुविधा और समान अवसर प्रदान करते हैं, क्योंकि इनका लाभ हर व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के ले सकता है, और ये सामुदायिक जीवन को सुचारु तथा सक्रिय बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

33. कोई समूह ‘संस्कृतिकरण’ से कैसे प्रभावित होता है? इसके लिये श्रीनिवास ने क्या तर्क दिया है?
उत्तर – संस्कृतिकरण से कोई समूह अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उच्च जाति या प्रतिष्ठित समूह की जीवनशैली, रीति-रिवाज, भाषा, पहनावा और धार्मिक प्रथाओं को अपनाता है, जिससे उसकी सामाजिक पहचान अधिक सम्मानित दिखाई देने लगती है। एम.एन. श्रीनिवास के अनुसार यह प्रक्रिया जाति-पदानुक्रम में समूह को ऊपर ले जाने का साधन है, जिसमें निम्न जातियाँ सामाजिक प्रतिष्ठा पाने के लिए उच्च जातियों के व्यवहार, मान्यताओं और सांस्कृतिक परंपराओं को अपनाकर स्वयं को उनके समान स्थापित करने का प्रयास करती हैं।

34. 1982 में हुई बंबई टेक्स्टाइल मिल की हड़ताल की चर्चा कीजिए।
उत्तर – 1982 की बंबई टेक्स्टाइल मिल हड़ताल, जिसका नेतृत्व ट्रेड यूनियन नेता दत्ता सामंत ने किया, मुंबई के औद्योगिक इतिहास का सबसे बड़ा मज़दूर आंदोलन था, जिसमें 65 मिलों के ढाई लाख से अधिक मजदूर वेतन वृद्धि, बोनस और बेहतर कार्य-परिस्थितियों की माँग को लेकर शामिल हुए थे। यह हड़ताल लगभग दो वर्ष चली, जिससे कपड़ा उद्योग का उत्पादन ठप हो गया और शहर की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा। संघर्ष लंबा खिंचने पर कई मिलें स्थायी रूप से बंद हो गईं, जिसके कारण हज़ारों मजदूर बेरोज़गार होकर गंभीर आर्थिक संकट से जूझने लगे, और इससे स्पष्ट हुआ कि पारंपरिक कपड़ा उद्योग तेजी से पतन की ओर बढ़ रहा था।

35. ‘भूमंडलीकरण’ और ‘रोजगार’ के बीच क्या सम्बन्ध है?
उत्तर – भूमंडलीकरण और रोजगार के बीच संबंध यह है कि भूमंडलीकरण ने देश की अर्थव्यवस्था को विश्व बाज़ार से जोड़कर रोजगार के नए अवसर तो बढ़ाए, पर साथ ही रोजगार के स्वरूप में बड़े परिवर्तन भी लाए। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आने से सेवा क्षेत्र, आईटी, संचार और उत्पादन क्षेत्रों में नए व कुशल रोजगार बढ़े, जिससे उच्च कौशल वाले लोगों को लाभ मिला। लेकिन दूसरी ओर, बढ़ती प्रतिस्पर्धा और तकनीक के अधिक उपयोग से पारंपरिक उद्योगों में स्थायी नौकरियाँ घटने लगीं और असंगठित तथा ठेकेदारी आधारित काम बढ़ गया, जिससे कई मजदूरों को कम वेतन और अस्थिर रोजगार की स्थिति का सामना करना पड़ा।

36. SOURCE BASED : ‘जातीय’ भेदभाव को दूर करने और उससे हुई क्षति की पूर्ति करने के लिये राज्य की ओर से ‘आरक्षण’ की व्यवस्था की गई। आरक्षणों के अतिरिक्त और भी बहुत से कानून जो जातीय भेदभाव विशेष रूप से ‘अस्पृश्यता’ को रोकने अथवा खत्म करने अथवा उसके लिये दण्ड देने के लिये ‘जातीय निर्योग्यता’ अधिनियम जिसमें व्यवस्था थी कि केवल जाति और धर्म परिवर्तन के कारण नागरिकों के अधिकारों को कम नहीं किया जायेगा। ऐसा ही हाल का कानून था 93वाँ संविधान संशोधन अधिनियम जो बाद में कानून बना। इसमें से कुछ कानून शिक्षा से सम्बन्धित थे। इनमें से एक संशोधन उच्चतर शिक्षा की संस्थाओं में अन्य पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण लागू करने के लिये था। जबकि दूसरा अधिनियम सरकारी स्कूलों में दलितों के भर्ती करने की इजाज़त के लिये बनाया गया था। इन महत्त्वपूर्ण कानून बनाये जाने जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण भारतीय ‘संविधान’ का पारित होना है। उपरोक्त कानून समय-समय पर पारित होते रहे हैं, जैसे- 1850, 2005, 23 जनवरी 2006, 1850 व 2006, 93वाँ संविधान संशोधन व 1950 आदि।
प्रश्न :
(i) ‘आरक्षण’ की आवश्यकता क्यों पड़ी?
उत्तर – आरक्षण की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि सदियों से चले आ रहे जातीय भेदभाव और अस्पृश्यता के कारण दलितों व पिछड़े वर्गों को शिक्षा, रोजगार और सामाजिक जीवन में समान अवसर नहीं मिल पाए। इन वर्गों को बराबरी और न्याय दिलाने तथा उनके साथ हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए आरक्षण व्यवस्था लागू की गई।

(ii) भारतीय ‘संविधान’ कब पारित किया गया?
उत्तर – भारतीय संविधान 26 नवम्बर 1949 को पारित किया गया था और 26 जनवरी 1950 से लागू हुआ।

(iii) 1850 का अधिनियम बनाने का उद्देश्य क्या था?
उत्तर – 1850 के ‘जातीय निर्योग्यता निवारण अधिनियम’ का उद्देश्य यह था कि केवल जाति या धर्म परिवर्तन के आधार पर किसी व्यक्ति के अधिकारों को कम न किया जाए और न ही उसे किसी पद या अवसर से वंचित किया जाए।

(iv) 93वाँ संशोधन कानून कब बना?
उत्तर – 93वाँ संविधान संशोधन वर्ष 2005 में पारित हुआ और 2006 को कानून के रूप में लागू किया गया।

(v) 1850 के ‘जातीय निर्योग्यता निवारण’ अधिनियम में क्या व्यवस्था की गई है?
उत्तर – इस अधिनियम में व्यवस्था की गई कि किसी भी नागरिक को जाति या धर्म परिवर्तन के कारण उसके नागरिक अधिकारों, पदों या अवसरों से वंचित नहीं किया जाएगा।

(vi) ‘शिक्षा’ से सम्बन्धित कानून अथवा संशोधन कौन-से थे?
उत्तर – शिक्षा से संबंधित कानूनों में उच्चतर शिक्षा संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लिए आरक्षण लागू करने वाला 93वाँ संविधान संशोधन शामिल था, तथा दूसरा कानून सरकारी स्कूलों में दलितों की भर्ती को अनुमति देने से संबंधित था।

37. ‘सामुदायिक पहचान’ का महत्त्व बताइए।
उत्तर – सामुदायिक पहचान का महत्त्व :
(i) सामाजिक एकता – सामुदायिक पहचान लोगों को एक-दूसरे से जोड़कर समाज में मजबूत एकता और अपनापन पैदा करती है, जिससे आपसी सहयोग और समझ बढ़ती है। यह समाज को स्थिर और संगठित बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
(ii) सांस्कृतिक संरक्षण – यह किसी समूह की भाषा, परंपराओं, रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक मूल्यों को सुरक्षित रखने में मदद करती है, जिससे उनकी विशिष्ट पहचान बनी रहती है। इसी के कारण अगली पीढ़ियाँ अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ी रहती हैं।
(iii) आत्म-सम्मान – अपने समुदाय का हिस्सा होना व्यक्तियों में गर्व, आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास बढ़ाता है, क्योंकि वे अपनी पहचान को सम्मान से देखते हैं। यह भावना उनके सामाजिक व्यवहार और मानसिक विकास को भी सकारात्मक बनाती है।
(iv) सामाजिक सहयोग – समान सामुदायिक पहचान वाले लोग कठिन परिस्थितियों में एक-दूसरे का सहारा बनते हैं, जिससे समूह में सहयोग और भरोसा मजबूत होता है। यह सहयोग सामाजिक समस्याओं को मिलकर हल करने में भी मदद करता है।
(v) राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव – सामुदायिक पहचान किसी समूह को अपने अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए संगठित शक्ति प्रदान करती है, जिससे वे नीतियों और निर्णयों पर प्रभाव डाल पाते हैं। इसी कारण कई समुदाय अपने आर्थिक संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए एकजुट होकर प्रयास करते हैं।
(vi) सुरक्षा की भावना – समुदाय से जुड़ाव व्यक्तियों को मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे वे स्वयं को सुरक्षित और स्वीकार्य महसूस करते हैं। यह सुरक्षा उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करने में आत्मविश्वासी बनाती है।

अथवा

भारतीय संदर्भ में ‘क्षेत्रवाद’ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर – भारतीय संदर्भ में क्षेत्रवाद उस भावना को कहा जाता है जिसमें किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र के लोग अपनी सांस्कृतिक, भाषाई, जातीय या सामाजिक पहचान के प्रति गहरा जुड़ाव महसूस करते हुए उस क्षेत्र के अधिकारों, संसाधनों, विकास और स्वशासन की मांग करते हैं। भारत एक अत्यंत विविधताओं वाला देश है जहाँ हर क्षेत्र की भाषा, परंपराएँ, इतिहास और आर्थिक परिस्थितियाँ अलग-अलग हैं, इसलिए जब किसी क्षेत्र के लोगों को लगता है कि उनकी पहचान या विकास को उचित महत्व नहीं दिया जा रहा, तो यह क्षेत्रीय चेतना उभरकर क्षेत्रवाद का रूप ले लेती है। कई बार क्षेत्रवाद स्थानीय भाषा, संस्कृति और आर्थिक हितों की रक्षा का सकारात्मक माध्यम बन जाता है, जिससे राज्य पुनर्गठन, सांस्कृतिक आंदोलनों और स्वायत्तता की मांगों को बल मिलता है, लेकिन अत्यधिक क्षेत्रवाद राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, आर्थिक असमानता, भाषा विवाद और राज्यों के बीच तनाव जैसी समस्याएँ भी उत्पन्न कर सकता है, जो राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती बनती हैं। भारत में क्षेत्रवाद को संतुलित रखने के लिए केंद्र और राज्य के बीच शक्तियों का विभाजन, भाषाई राज्यों का गठन, क्षेत्रीय पार्टियों की भागीदारी और स्थानीय हितों का सम्मान जैसी व्यवस्थाएँ की गई हैं, ताकि क्षेत्रीय विविधता भी बनी रहे और राष्ट्रीय एकता भी मजबूत रूप से कायम रह सके।

38. चिपको आन्दोलन की विस्तृत चर्चा कीजिए।
उत्तर – चिपको आन्दोलन 1970 के दशक में उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) में शुरू हुआ एक प्रसिद्ध वन संरक्षण आन्दोलन था, जिसका उद्देश्य जंगलों की अंधाधुंध कटाई को रोकना और स्थानीय लोगों के पर्यावरणीय अधिकारों की रक्षा करना था। यह आन्दोलन 1973 में चमोली जिले के रेणी गाँव से शुरू हुआ, जहाँ गाँव की महिलाओं ने ठेकेदारों द्वारा पेड़ों को काटने से बचाने के लिए पेड़ों को गले लगा लिया, इसी कारण इसे “चिपको” आन्दोलन कहा गया। इस आन्दोलन का नेतृत्व सुन्दर लाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट और अन्य स्थानीय कार्यकर्ताओं ने किया, पर इसकी सबसे बड़ी ताकत वे महिलाएँ थीं जो जंगलों पर अपनी आजीविका, पानी, लकड़ी और चारे के लिए निर्भर थीं। चिपको आन्दोलन ने पूरे देश में जंगलों के महत्व, पर्यावरणीय संतुलन, पानी के स्रोतों की सुरक्षा और पहाड़ी जीवन पर वनों की जरूरत जैसे मुद्दों पर व्यापक जागरूकता पैदा की। इसके प्रभाव से 1980 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हिमालयी क्षेत्रों में 15 वर्षों तक वनों की कटाई पर रोक लगा दी, जो इस आन्दोलन की बड़ी उपलब्धि थी। इस आन्दोलन ने लोगों की पर्यावरण संरक्षण में भागीदारी को बढ़ाया, महिलाओं की भूमिका को मजबूत किया और देशभर में पर्यावरण और सतत विकास से जुड़े जनान्दोलनों को नई दिशा दी।

अथवा

नये सामाजिक आन्दोलन पुराने सामाजिक आन्दोलनों से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर – पुराने सामाजिक आंदोलन 19वीं और 20वीं सदी के प्रारम्भिक दौर में उभरे, जिनका मुख्य ध्यान आर्थिक, राजनीतिक और वर्ग-संघर्ष से जुड़े मुद्दों पर था। इन आंदोलनों का उद्देश्य मजदूर वर्ग तथा सामाजिक रूप से वंचित समूहों की स्थिति सुधारना और मौजूदा सत्ता संरचना में बदलाव लाना था। इनका नेतृत्व प्रायः श्रमिक संघों, राजनीतिक दलों और औपचारिक संगठनों द्वारा किया जाता था, और ये हड़ताल, धरना, रैलियाँ और प्रदर्शन जैसे पारंपरिक विरोध-तरीकों पर निर्भर रहते थे। इन आंदोलनों की विशेषता यह थी कि इनके स्पष्ट लक्ष्य, ठोस माँगें और संगठित नेतृत्व मौजूद होता था।
इसके विपरीत, नए सामाजिक आंदोलन 20वीं सदी के उत्तरार्ध में उभरे और वे राजनीतिक-आर्थिक मुद्दों से आगे बढ़कर सांस्कृतिक, सामाजिक और पहचान-आधारित विषयों पर केंद्रित थे। इन आंदोलनों का स्वरूप अधिक विकेन्द्रीकृत, विविध और लचीला होता है, जहाँ मुख्य फोकस मानवाधिकार, पर्यावरण संरक्षण, लैंगिक समानता, जातीय पहचान, जीवनशैली और उपभोक्ता अधिकार जैसे मुद्दों पर रहता है। इनका नेतृत्व औपचारिक संस्थाओं के बजाय जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं, नागरिक समूहों, युवाओं और व्यक्तिगत पहल करने वालों द्वारा किया जाता है। नए आंदोलन सोशल मीडिया, सांस्कृतिक प्रतिरोध, जन-जागरूकता अभियानों और प्रत्यक्ष कार्रवाई जैसे आधुनिक तरीकों का उपयोग करते हैं, और इनका प्रभाव अक्सर स्थानीय से बढ़कर वैश्विक स्तर तक फैल सकता है।