HBSE Class 12 Sanskrit Question Paper 2024 Answer Key

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HBSE Class 12 Sanskrit Question Paper 2024 Answer Key

1. अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा प्रदत्तप्रश्नानाम् उत्तराणि यथानिर्देशं संस्कृतेन लिखत –
संसारस्य प्रायेण सर्वेष्वपि देशेषु ऋतुराजवसन्तस्य स्वागतोत्सवः क्रियते। भारतवर्षे तु विशेषेण नवान्नस्य आगमनकालोऽयम्। अत एव नवधान्यं गृहे दृष्ट्वा कृषकाः हृष्यन्ति सोत्साहं चोत्सवं कुर्वन्ति। इदमपि किल स्मर्यते यत् पुरा खलु हिरण्यकशिपुर्नाम देवरिपुरासीत्। सः हरिभक्तिपरायणं प्रह्लादनामानं स्वसुतं भस्मीकर्तुकामोऽभवत्। तस्य स्वसा होलिका तत्कर्मसम्पादनाय प्रवृत्ता। तत्र च होलिका वराकी भस्मीभूता, भगवत्प्रसादात् च अग्निज्वालाऽवलीढोऽपि प्रह्लादः सुरक्षितः आसीत्। तस्मादेव च लोकैः प्रतिवर्ष होलिकादाहो विधीयते।
प्रश्नाः
(अ) एकपदेन उत्तरत (केवलं प्रश्नद्वयम्) –
(क) कस्य स्वागतोत्सवः क्रियते ?
उत्तर – वसन्तस्य

(ख) भारतवर्षे तु विशेषेण कस्य आगमनकालोऽयम् ?
उत्तर – नवान्नस्य

(ग) नवधान्यं दृष्ट्वा के हृष्यन्ति ?
उत्तर – कृषकाः

(ब) पूर्णवाक्येन उत्तरत (केवलं प्रश्नद्वयम्) –
(क) पुरा खलु किं नाम देवरिपुरासीत् ?
उत्तर – पुरा खलु हिरण्यकशिपुर्नाम देवरिपुरासीत्।

(ख) कः हरिभक्तिपरायणं स्वसुतं भस्मीकर्तुकामोऽभवत् ?
उत्तर – हिरण्यकशिपुः हरिभक्तिपरायणं स्वसुतं भस्मीकर्तुकामोऽभवत्।

(ग) लोकैः प्रतिवर्षं किं विधीयते ?
उत्तर – लोकैः प्रतिवर्षं होलिकादाहः विधीयते।

(स) अस्य अनुच्छेदस्य कृते उपयुक्तं शीर्षकं संस्कृतेन लिखत।
उत्तर – वसन्तस्य होलिकायाः च उत्सवः

(द) यथानिर्देशम् उत्तरत (केवलं प्रश्नत्रयम्) –
(क) ‘निजपुत्रम्’ इत्यस्य पर्यायपदम् अस्ति –
(i) नवथान्यम्
(ii) स्वसुतम्
(iii) चोत्सवम्
(iv) सोत्साहम्
उत्तर – (ii) स्वसुतम्

(ख) ‘संसारस्य’ इति पदे विभक्तिः अस्ति –
(i) द्वितीया
(ii) सप्तमी
(iii) षष्ठी
(iv) पंचमी
उत्तर – (iii) षष्ठी

(ग) ‘तत्र च होलिका वराकी भस्मीभूता’ इत्यत्र ‘होलिका’ पदस्य विशेषणम् अस्ति –
(i) तत्र
(ii) च
(iii) वराकी
(iv) भस्मीभूता
उत्तर – (iii) वराकी

(घ) ‘सः हरिभक्तपरायणं प्रह्लादनामानं …………….. अभवत्’ इत्यस्मिन् वाक्ये ‘अभवत्’ क्रियायाः कर्तृपदम् अस्ति –
(i) हरिभक्तपरायणम्
(ii) सः
(iii) प्रह्लादनामानम्
(iv) स्वसुतम्
उत्तर – (ii) सः

2. विषयमेकमधिकृत्य षड्वाक्यानि संस्कृतभाषया लिखत –
(क) संस्कृतभाषायाः महत्त्वम्।
(ख) स्वच्छतायाः महत्त्वम्।
(ग) मम प्रियः कविः।
(घ) विद्यार्थिजीवने अनुशासनस्य महत्त्वम्।
उत्तर – विवेकानुसार खुद करे।

3. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत (केवलं प्रश्नत्रयम्) –
(क) कस्मिन् छन्दसि प्रत्येकं चरणे अष्टौ वर्णाः भवन्ति ?
उत्तर – अनुष्टुप् छन्दसि

(ख) वंशस्थछन्दसः उदाहरणं किम् ?
उत्तर – आयासशतलब्धस्य प्राणेभ्योऽपि गरीयसः।
गतिरेकैव वित्तस्य दानमन्या विपत्तयः।।

(ग) इन्द्रवज्राछन्दसि प्रत्येकं चरणे कति वर्णाः भवन्ति ?
उत्तर – एकादश (11)

(घ) उक्तावसन्ततिलका ……………. ?
उत्तर – तभजा जगौ गः

4. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया लिखत (केवलं प्रश्नत्रयम्) –
(क) अनुप्रासस्य अलङ्कारस्य उदाहरणं किम् ?
उत्तर – जहाँ व्यंजनों की बार-बार आवृत्ति के कारण चमत्कार उत्पन्न हो, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। उदाहरण: चारु चन्द्र की चचल किरणे, खेल रही हैं, जल थल में।

(ख) यमकालङ्कारस्य लक्षणं किम् ?
उत्तर – जिस वाक्य में एक ही शब्द की पुनरावृति होती है, लेकिन हर बार उसका अर्थ अलग-अलग होता है तो उसे यमक अलंकार कहते हैं। उदाहरण: काली घटा का घमण्ड घटा, यहां पहले ‘घटा’ का अर्थ है ‘बादल’, दूसरे ‘घटा’ का अर्थ है ‘अल्पता/कम होना’।

(ग) उपमालङ्कारस्य लक्षणं किम् ?
उत्तर – उपमा अलंकार में किसी व्यक्ति या वस्तु की किसी दूसरी वस्तु से तुलना की जाती है। इसमें ‘सा’, ‘सी’, ‘सम’, ‘तुल्य’, ‘जैसे’ जैसे शब्द समानता दिखाते हैं। जैसे: सागर सा गंभीर हृदय हो, गिरि सा ऊँचा हो जिसका मन।

(घ) तद्रूपकमभेदो य ……………. ?
उत्तर – उपमानोपमेययोः

5. अधोलिखितपद्यांशस्य हिन्दीभाषया सप्रसङ्गसरलार्थं लिखत –
अन्यदेवाहुर्विद्यया अन्यदाहुरविद्यया।
इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचक्षिरे।।
उत्तर : प्रसङ्ग – यह श्लोक हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संसारस्य रहस्यम्’ नामक पाठ से लिया गया है। यह मूलतः ईशावास्य उपनिषद् के दसवें मंत्र का अंश है। इसमें विद्या (ज्ञान) और अविद्या (कर्म) के भिन्न-भिन्न फलों तथा इनके महत्व का वर्णन किया गया है।
• सरलार्थ – धीर और विवेकशील ऋषियों से हमने यह सुना है कि विद्या (ज्ञान) के साधन से एक प्रकार का फल मिलता है, जो मनुष्य को अमृतत्व, आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर ले जाता है। और अविद्या (कर्म) से दूसरा फल प्राप्त होता है, जिससे मनुष्य पितृलोक तथा संसारगत उन्नति की ओर बढ़ता है। ज्ञानी पुरुषों ने हमें स्पष्ट रूप से बताया है कि विद्या और अविद्या दोनों के फल अलग-अलग होते हैं और दोनों का महत्व भी भिन्न है।

अथवा

समाप्तविद्येन मया महर्षि
र्विज्ञापितो ऽभूद्गुरुदक्षिणायै।
स मे चिरायास्खलितोपचारां
तां भक्तिमेवागणयत्पुरस्तात्।।
उत्तर : प्रसङ्ग – यह पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक “संसारस्य रहस्यम्” नामक पाठ से लिया गया है। इस प्रसंग में विद्यार्थी अपनी शिक्षा पूर्ण होने पर अपने गुरु के पास गुरुदक्षिणा अर्पित करने के लिए उपस्थित होता है। वह जानना चाहता है कि गुरु उससे किस प्रकार की दक्षिणा चाहते हैं।
• सरलार्थ – विद्या पूर्ण होने के बाद मैंने महर्षि गुरु से गुरुदक्षिणा के विषय में विनम्रतापूर्वक निवेदन किया। मेरी यह भावना थी कि गुरु कोई विशेष सेवा, दान या वस्तु मांगेंगे। परंतु गुरु ने मेरे लंबे समय से किए जा रहे निष्कपट, त्रुटिरहित और निष्ठापूर्ण सेवाभाव को ही अपनी गुरुदक्षिणा मान लिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि तुम्हारी सतत भक्ति ही मेरे लिए सबसे बड़ी दक्षिणा है।

6. अधोलिखितगद्यांशस्य हिन्दीभाषया सप्रसङ्गसरलार्थं लिखत –
अरण्यगर्भरूपालापैर्यूयं तोषिता वयं च। भगवति । जानामि त्वं पश्यन्ती वञ्चितेव। तस्मादितोऽन्यतो भूत्वा प्रेक्षामहे तावत् पलायमानं दीर्घायुषम्।
भवादृशा एव भवन्ति भाजनान्युपदेशानाम्। अपगतमले हि मनसि विशन्ति सुखेनोपदेशगुणाः। हरति अतिमलिनमपि दोषजातं गुरूपदेशः।
उत्तर : प्रसङ्ग – यह गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘संसारस्य रहस्यम्’ नामक पाठ से लिया गया है। इस प्रसंग में गुरु अपने शिष्यों से उपदेश देते हुए कहते हैं कि सच्चा उपदेश वही ग्रहण कर पाता है जिसका मन पवित्र, निर्मल और सद्गुणों से युक्त होता है। गुरु, शिष्यों को वास्तविक योग्यताओं के बारे में समझाते हैं।
• सरलार्थ – हे भगवति! तुम जंगल की गोद में रहने वाले मृदुल स्वर वाले पक्षियों के मधुर कलरव से संतुष्ट हो जाती हो और हम भी उन मधुर ध्वनियों से प्रसन्न होते हैं। मैं जानता हूँ कि तुम सब कुछ स्पष्ट रूप से देखती हुई भी मानो ठगी-सी जाती हो, इसलिए हम अभी यहाँ से हटकर कहीं और उस दीर्घायु, भागने वाले जीव को देखने की चेष्टा करेंगे।
तुम जैसे (शुद्ध हृदय वाले) ही लोग उपदेश ग्रहण करने के पात्र होते हैं, क्योंकि जिनके मन का मल (दोष) दूर हो चुका हो, उन निर्मल हृदयों में उपदेश के गुण सहज ही प्रवेश कर जाते हैं। गुरु का दिया हुआ उपदेश अत्यन्त मलिन (दोषपूर्ण) चित्त को भी सुधार कर उसके दोषों को हर लेता है।

7. अधोलिखितासु सूक्तिषु मात्र द्वयोः सूक्तयोः भावार्थं हिन्दीभाषया लिखत –
(क) न कर्म लिप्यते नरे।
उत्तर – न कर्म लिप्यते नरे का अर्थ है कि जो मनुष्य निष्काम भाव से, यानी बिना किसी फल की इच्छा किए अपने कर्म करता है, वह कर्म के बंधन में नहीं फंसता। ऐसे व्यक्ति पर कर्म का दोष या प्रभाव कभी नहीं लगता। यह उपदेश हमें बताता है कि मनुष्य को अपने कर्तव्य का पालन मन लगाकर, बिना प्रत्याशा के फल की चिंता किए करना चाहिए। इससे वह कर्मों के पाप या बंधनों से मुक्त रहता है।
(ख) मानवानाम् सर्वासु सृष्टिधारासु निकृष्टतमा सृष्टिः।
उत्तर – मानवानाम् सर्वासु सृष्टिधारासु निकृष्टतमा सृष्टिः का भावार्थ यह है कि इस संसार में जितने भी जीवधारी या सृष्टि के कर्ता हैं, उनमें मनुष्य जाति सबसे नीच या निकृष्ट है। क्योंकि मनुष्य अपने व्यवहार, कर्मों और सोच के कारण कई बार अधम गुण दिखाता है। यह वाक्य मानव जाति की निंदा या उनके दोषों की ओर इंगित करता है।

(ग) उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम्।
उत्तर – उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणम् का अर्थ है कि किसी ने जो भी धन, संपत्ति या संसाधन कमाए हैं, उनका सही संधारण और रक्षा केवल त्याग (आत्मत्याग या जरूरत के अनुसार छोड़ देने) के द्वारा ही संभव है। यदि व्यक्ति समझदारी से आवश्यकतानुसार धन का त्याग कर देता है तो धन का संरक्षण होता है, नहीं तो लोभमय व्यवहार में धन की हानि हो जाती है।

(घ) प्रोद्दीप्ते भवने च कूपखननं प्रत्युद्यमः कीदृशः।
उत्तर – प्रोद्दीप्ते भवने च कूपखननं प्रत्युद्यमः कीदृशः का अर्थ है कि यदि जल से भरे हुए एक भवन (घर) में कुआँ खोदना शुरू किया जाए, तो यह प्रयास व्यर्थ और हास्यास्पद होगा। क्योंकि पहले से पानी मौजूद है, उसके पास कुआँ खोदने का कोई तात्पर्य नहीं बनता। यहाँ यह सूक्ति व्यर्थ प्रयास और बुद्धिहीन प्रयास की उपमा देती है।

अथवा

कुर्वन्नेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतो ऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे।।
अन्वयः – इह (1) ………… कुर्वन् एव शतम् (2) …………. जिजीविषेत् एवं कर्म (3) …………….. नरे न लिप्यते। इतः (4) ………….. न अस्ति।
[मञ्जूषा – अन्यथा, त्वयि, समाः, कर्माणि]
उत्तर – (1) कर्माणि, (2) समाः, (3) त्वयि, (4) अन्यथा

8. अधोलिखितं श्लोकं पठित्वा प्रश्नानाम् उत्तराणि श्लोकात् चित्या संस्कृतभाषया पूर्णवाक्येन लिखत (केवलं प्रश्नत्रयम्) –
पापान्निवारयति योजयते हिताय,
गुह्यं निगूहति गुणान् प्रकटीकरोति।
आपद्गतं च न जहाति ददाति काले,
सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः।।
प्रश्नाः
(क) मित्रं कस्मान्निवारयति ?
उत्तर – मित्रं पापात् निवारयति।

(ख) मित्रस्य कान् प्रकटीकरोति ?
उत्तर – मित्रं गुणान् प्रकटीकरोति।

(ग) मित्रं कदा न जहाति ?
उत्तर – मित्रं आपद्गतं च न जहाति।

(घ) सन्मित्रलक्षणमिदं के प्रवदन्ति ?
उत्तर – सन्मित्रलक्षणमिदं सन्तः प्रवदन्ति।

9. अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा प्रश्नानाम् उत्तराणि गद्यांशात् चित्वा संस्कृतभाषया पूर्णवाक्येन लिखत (केवलं प्रश्नत्रयम्) –
मनुष्याणां हिंसावृत्तिस्तु निरवधिः। पशुहत्या तु तेषां आक्रीडनम्। केवलं विक्लान्तचित्तविनोदाय महारण्यम् उपगम्य ते यथेच्छं निर्दयं च पशुघातं कुर्वन्ति।
प्रश्नाः
(क) पशुहत्या केषाम् आक्रीडनम् ?
उत्तर – पशुहत्या मनुष्याणां आक्रीडनम्।

(ख) मनुष्याणां हिंसावृत्तिः कीदृशी ?
उत्तर – मनुष्याणां हिंसावृत्तिः निरवधिः।

(ग) विक्लान्तचित्तविनोदाय कुत्र उपगच्छन्ति ?
उत्तर – विक्लान्तचित्तविनोदाय ते महारण्यम् उपगच्छन्ति।

(घ) ते यथेच्छं निर्दयं च किम् कुर्वन्ति ?
उत्तर – ते यथेच्छं निर्दयं च पशुघातं कुर्वन्ति।

10. कोष्ठकाद् उपयुक्तशब्दं चित्वा रेखाङ्गितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत (केवलं प्रश्नचतुष्टयम्) –
(क) निक्रष्टुमर्थं चकमे कुबेरात्। (कस्मात् / केन)
उत्तर – कस्मात्

(ख) कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः। (केनैव / केचनैव)
उत्तर – केनैव

(ग) श्रीदासः तत्पत्रम् उद्घाटितवान्। (कः / कस्य)
उत्तर – कः

(घ) लवः मुखचन्द्रेण सीतया संवदत्येव। (कया / कस्याः)
उत्तर – कया

(ङ) दूरमतिक्रान्तः स चपलः दृश्यते। (कीदृक् / कीदृशः)
उत्तर – कीदृशः

11. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया एकपदेन लिखत (केवलं प्रश्नचतुष्टयम्) –
(क) प्राचीनतमः वेदः कः ?
उत्तर – ऋग्वेदः

(ख) ‘कादम्बरी’ कस्य रचना ?
उत्तर – बाणभट्ट:

(ग) वेदव्यासस्य रचना का ?
उत्तर – महाभारतम्

(घ) श्रीमद्भगवद्गीतायां कति अध्यायाः सन्ति ?
उत्तर – अष्टादश

(ङ) रामायणे कति श्लोकाः सन्ति ?
उत्तर – चतुर्विंशति सहस्राणि (24000)

12. अधोलिखितानां प्रश्नानाम् उत्तराणि संस्कृतभाषया एकपदेन लिखत (केवलं प्रश्नचतुष्टयम्) –
(क) शिवराजविजयस्य रचयिता कः ?
उत्तर – अम्बिकादत्तव्यासः

(ख) ‘बालकौतुकम्’ इति पाठः कस्मात् ग्रन्थात् उद्धृतः ?
उत्तर – उत्तररामचरितात्

(ग) आदिकविना वाल्मीकिना कः ग्रन्थः रचितः ?
उत्तर – रामायणम्

(घ) ‘बाणभट्टस्य’ का कथारचना वर्तते ?
उत्तर – कादम्बरी

(ङ) ‘अभिज्ञानशाकुन्तलम्’ इति रचनायाः रचयिता कः ?
उत्तर – कालिदास:

13. (क) स्वरसन्धेः अथवा गुणसन्धेः परिभाषां हिन्दीभाषया उदाहरणं च संस्कृतभाषया लिखत।
उत्तर : स्वर सन्धि – दो स्वरों के आपस में मिलने पर जो विकार (परिवर्तन) होता है, उसे स्वर सन्धि कहते हैं। अथवा जब स्वर के साथ स्वर वर्णों का मेल होता है, तब उस परिवर्तन को स्वर सन्धि कहते हैं। जैसे: हिम + आलय = हिमालय

अथवा

गुण संधि – जब संधि करते समय (अ,आ) के साथ (इ,ई) हो तो ‘ए’ बनता है, जब (अ,आ) के साथ (उ,ऊ) हो, तो ‘ओ’ बनता है, जब (अ,आ) के साथ (ऋ) हो तो ‘अर्’ बनता है तो यह गुण संधि कहलाती है। जैसे: देव + इन्द्र = देवेन्द्र

(ख) अव्ययीभावसमासस्य अथवा द्वन्द्वसमासस्य परिभाषां हिन्दीभाषया उदाहरणं च संस्कृतभाषया लिखत।
उत्तर : अव्ययीभाव समास – जिस समास में पहला पद अव्यय हो और वही पद पूरे समस्तपद के अर्थ को प्रधान रूप से व्यक्त करे, तथा समास बनने पर पूरा पद अव्यय-स्वरूप धारण कर ले, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। जैसे: यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार

अथवा

द्वन्द्व समास – वह समास है जिसमें दोनों पद समान रूप से प्रधान होते हैं और विग्रह करने पर उनके बीच ‘और’, ‘तथा’, ‘या’, ‘अथवा’ आदि समुच्चयबोधक शब्दों का लोप हो जाता है। जैसे: दिन रात = दिन और रात

(ग) करणकारकस्य अथवा अधिकरणकारकस्य परिभाषां हिन्दीभाषया उदाहरणं च संस्कृतभाषया लिखत।
उत्तर : करण कारक – जिस संज्ञा या सर्वनाम की सहायता से क्रिया पूरी होती है, वह करण कारक कहलाता है। इसके विभक्ति-चिह्न ‘से’ और ‘के द्वारा’ होते हैं। जैसे: बालक गेंद से खेल रहे हैं। (यहाँ ‘गेंद से’ खेलने का साधन है)

अथवा

अधिकरणकारक – संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं। यह क्रिया के होने का स्थान, समय या अवसर बताता है। इसके विभक्ति-चिह्न ‘में’, ‘पर’, ‘पे’ हैं। जैसे: पानी में मछली रहती है। (यहाँ ‘पानी’ मछली के रहने का आधार है)

14. अधोनिर्दिष्टेषु प्रश्नेषु प्रदत्तवैकल्पिकचतुर्थ्यः उत्तरेभ्यः एक शुद्धम् उत्तरं चित्वा लिखत –
(क) ‘आहुः + अविद्यया’ इत्यस्य पदस्य सन्धिपदं भवति –
(i) आहुर्विद्यया
(ii) आहुरविद्यया
(iii) आहुःविद्यया
(iv) आहुर्विद्या
उत्तर – (ii) आहुरविद्यया

(ख) ‘तांस्ते’ इत्यस्मिन् पदे कः सन्धिविच्छेदः ?
(i) तान् + ते
(ii) तांस् + ते
(iii) तांन् + ते
(iv) ताम् + ते
उत्तर – (i) तान् + ते

(ग) ‘गुरु + उपदेशः’ इत्यस्मिन् पदे किं सन्धिपदम् ?
(i) गुर् + उपदेशः
(ii) गुरूपदेशः
(iii) गुरोपदेशः
(iv) गुरवादेशः
उत्तर – (ii) गुरूपदेशः

(घ) ‘कुर्वन्’ इत्यस्मिन् पदे कः प्रत्ययः ?
(i) शानचू
(ii) वन्
(iii) शतृ
(iv) उर्वन्
उत्तर – (iii) शतृ

(ङ) ‘उक्त्वा’ इत्यस्मिन् पदे कः प्रत्ययः ?
(i) क्त्वा
(ii) तुमुन्
(iii) क्तवतु
(iv) उत्वा
उत्तर – (i) क्त्वा

(च) ‘अवेक्ष्य’ इत्यस्मिन् पदे कः प्रत्ययः ?
(i) क्त्वा
(ii) वेक्ष्य
(iii) ल्यप्
(iv) ईक्ष्य
उत्तर – (iii) ल्यप्

(छ) ‘उपात्तविद्यः’ इत्यस्मिन् पदे कः समासः ?
(i) बहुव्रीहिसमासः
(ii) अव्ययीभावसमासः
(iii) तत्पुरुषसमासः
(iv) द्वन्द्वसमासः
उत्तर – (iii) तत्पुरुषसमासः

(ज) ‘वरतन्तुशिष्यः’ इत्यस्य पदस्य कः विग्रहः ?
(i) वरतन्तुः शिष्यः
(ii) वरन्तुः शिष्यः
(iii) वरतन्तोः शिष्यः
(iv) शिष्यस्य वरतन्तुः
उत्तर – (iii) वरतन्तोः शिष्यः

(झ) ‘विनयेन शिशिरः अनयोः पदयोः समस्तपदं किम् ?
(i) विनयशिशिरः
(ii) विनयात्शिशिरः
(iii) विनयेनशिशिरः
(iv) विनयस्य शिशिरः
उत्तर – (i) विनयशिशिरः

(ञ) ‘एकवारमपि स्वराज्यं ……………. प्रति गमनाय इच्छां न प्रकटितवान्’ इत्यत्र समुचितं पदं पूरयत –
(i) केरलम्
(ii) केरलात्
(iii) केरलः
(iv) केरलस्य
उत्तर – (ii) केरलात्

(ट) ‘मरालस्य मानसं मानसं ………….. न रमते’ इत्यत्र समुचितं पदं पूरयत –
(i) कृते
(ii) अलम्
(iii) विना
(iv) बहिः
उत्तर – (iii) विना

(ठ) ‘धीराः’ इत्यस्य पदस्य पर्यायपदं किम् ?
(i) धैर्यमानिनः
(ii) धैर्यशालिनः
(iii) धैर्यपालिनः
(iv) नोचितम्
उत्तर – (ii) धैर्यशालिनः

(ड) ‘मृत्युम्’ इत्यस्य पदस्य विलोमपदं किम् ?
(i) जीवनम्
(ii) प्राणाः
(iii) श्वसनम्
(iv) ओदनम्
उत्तर – (i) जीवनम्

(ढ) ‘तमसा’ इत्यस्य पदस्य विलोमपदं किम् ?
(i) प्रकाशेन
(ii) प्रकाशः
(iii) प्रकाशाय
(iv) प्रकाशात्
उत्तर – (i) प्रकाशेन

(ण) ‘सकलगुणनिवासः’ इत्यस्य पदस्य विशेष्यपदं किम् ?
(i) ब्राह्मणः
(ii) विक्रमः
(iii) रत्नम्
(iv) समुद्रम्
उत्तर – (iii) रत्नम्

(त) ‘अतिमलिनम्’ इत्यस्य शब्दस्य विशेषणपदं किम् ?
(i) यौवनप्रभवातू
(ii) दोषजातम्
(iii) यौवनप्रभवस्य
(iv) दोषान्
उत्तर – (ii) दोषजातम्