HBSE Class 12 Public Administration Question Paper 2024 Answer Key

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HBSE Class 12 Public Administration Question Paper 2024 Answer Key

1. भारत में वास्तविक कार्यपालक है :
(A) प्रधानमंत्री
(B) उपराष्ट्रपति
(C) राष्ट्रपति
(D) राज्यपाल
उत्तर – (A) प्रधानमंत्री

2. लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी मंसूरी किसका उदाहरण है?
(A) केन्द्रीय प्रशिक्षण
(B) भर्ती
(C) पदोन्नति
(D) पद वर्गीकरण
उत्तर – (A) केन्द्रीय प्रशिक्षण

3. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का कार्यकाल होता है :
(A) 55 वर्ष
(B) 54 वर्ष
(C) 65 वर्ष
(D) 62 वर्ष
उत्तर – (C) 65 वर्ष (या 6 वर्ष, जो पहले हो)

4. भारत में अन्तर्राज्यीय परिषद् की स्थापना कब हुई?
(A) जून, 1992
(B) जून, 1990
(C) जुलाई, 1996
(D) अगस्त, 1997
उत्तर – (B) जून, 1990

5. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति करता है :
(A) प्रधानमंत्री
(B) लोकसभा अध्यक्ष
(C) राष्ट्रपति
(D) मुख्य न्यायाधीश
उत्तर – (C) राष्ट्रपति

6. बाहर से होने वाली भर्ती क्या कहलाती है?
(A) नकारात्मक भर्ती
(B) प्रत्यक्ष भर्ती
(C) सकारात्मक भर्ती
(D) अप्रत्यक्ष भर्ती
उत्तर – (B) प्रत्यक्ष भर्ती

7. सार्वजनिक लोक निगमों के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति की जाती है :
(A) निदेशक मंडल द्वारा
(B) सरकार द्वारा
(C) प्रधानमंत्री द्वारा
(D) राज्यपाल द्वारा
उत्तर – (B) सरकार द्वारा

8. पंचायती राज संस्थाओं के कितने स्तर स्थापित किए गए हैं?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच
उत्तर – (B) तीन (ग्राम स्तर, ब्लॉक स्तर, जिला स्तर)

9. सरकार के ………….. अंग होते हैं।
उत्तर – तीन (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका)

10. संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति ……………. करता है।
उत्तर – राष्ट्रपति

11. भारत का सर्वोच्च न्यायालय ……………. में स्थित है।
उत्तर – नई दिल्ली

12. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का कार्यकाल …………… वर्ष का होता है।
उत्तर – 6 वर्ष (या 65 वर्ष की आयु, जो पहले हो)

13. पंचायती राज व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य …………….. क्षेत्रों का विकास करना है।
उत्तर – ग्रामीण क्षेत्रों

14. पंचायती राज की किसी एक संस्था का नाम लिखिए।
उत्तर – ग्राम पंचायत / पंचायत समिति / जिला परिषद

15. पदोन्नति का उद्देश्य लिखिए।
उत्तर – कर्मचारियों को प्रोत्साहित करना एवं उच्च पदों पर योग्य व्यक्तियों की नियुक्ति करना।

16. भारत में केंद्रीय बजट को कौन तैयार करता है?
उत्तर – वित्त मंत्रालय

17. भारत में मुख्य कार्यपालक कौन होता है?
उत्तर – प्रधानमंत्री

18. अभिकथन (A) : प्रधानमंत्री कार्यालय केंद्र सरकार के प्रमुख के तौर पर प्रधानमंत्री को, उसकी जिम्मेदारियों के निर्वहन में सहायता प्रदान करता है।
कारण (R) : यह कार्यालय सामान्यतः कैबिनेट मामलों से संबद्ध है।
(A) (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (A) की सही व्याख्या (R) है।
(B) (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (A) की सही व्याख्या (R) नहीं है।
(C) (A) सही है, लेकिन (R) गलत है।
(D) (A) गलत है, लेकिन (R) सही है।
उत्तर – (C) (A) सही है, लेकिन (R) गलत है।

19. अभिकथन (A) : अध्यादेश प्रशासन पर कार्यपालिका के नियंत्रण का साधन है।
कारण (R) : शक्ति के अर्थों में प्रत्येक अध्यादेश संसद के अधिनियम के बराबर है।
(A) (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (A) की सही व्याख्या (R) है।
(B) (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (A) की सही व्याख्या (R) नहीं है।
(C) (A) सही है, लेकिन (R) गलत है।
(D) (A) गलत है, लेकिन (R) सही है।
उत्तर – (D) (A) गलत है, लेकिन (R) सही है।

20. अभिकथन (A) : वित्त विधेयक केवल संसद के निम्न सदन में ही उद्भूत होते हैं।
कारण (R) : संसद का निम्न सदन जनता द्वारा निर्वाचित निकाय है।
(A) (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (A) की सही व्याख्या (R) है।
(B) (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (A) की सही व्याख्या (R) नहीं है।
(C) (A) सही है, लेकिन (R) गलत है।
(D) (A) गलत है, लेकिन (R) सही है।
उत्तर – (A) (A) और (R) दोनों सही हैं तथा (A) की सही व्याख्या (R) है।

21. विभाग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – विभाग किसी बड़े संगठन या प्रशासनिक व्यवस्था का एक विशिष्ट हिस्सा या प्रभाग होता है, जिसे किसी खास कार्य को व्यवस्थित रूप से पूरा करने के लिए बनाया जाता है।

22. भारतीय संघ में कुल कितने राज्य तथा संघीय क्षेत्र हैं?
उत्तर – भारतीय संघ में कुल 28 राज्य और 8 संघीय क्षेत्र हैं।

23. प्रशिक्षण के कोई दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर – (i) कर्मचारियों की कार्य-कुशलता और कार्यक्षमता बढ़ाना।
(ii) कर्मचारियों में नए कौशल और ज्ञान का विकास करना।

24. भर्ती से आप क्या समझते हैं?
उत्तर – भर्ती वह प्रक्रिया है जिसमें किसी संगठन में रिक्त पदों के लिए संभावित उम्मीदवारों की पहचान की जाती है, उन्हें आकर्षित किया जाता है, आवश्यक परीक्षण या साक्षात्कार लिए जाते हैं और अंततः योग्य उम्मीदवारों को नियुक्त किया जाता है।

25. लोक निगम के दो गुण लिखिए।
उत्तर – (i) लोक निगम लचीला प्रबंध प्रदान करता है, जिससे निर्णय जल्दी और कुशलता से लिए जा सकते हैं।
(ii) लोक निगम व्यावसायिक ढंग से कार्य करता है, जिससे सेवाओं और उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर रहती है।

26. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की पदच्युत और नियुक्ति विधि का वर्णन करें।
उत्तर – नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। उसे पद से हटाना बहुत कठिन होता है, क्योंकि न्यायाधीशों की तरह ही उसे केवल संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित प्रस्ताव के बाद ही राष्ट्रपति द्वारा पदच्युत किया जा सकता है।

27. प्रत्यक्ष भर्ती के दो अवगुण लिखिए।
उत्तर – (i) इसमें विज्ञापन और चयन प्रक्रिया पर अधिक समय व संसाधन लगते हैं।
(ii) संगठन सीमित उम्मीदवारों तक पहुँच पाता है, जिससे योग्य उम्मीदवारों का चयन कठिन हो जाता है।

28. विभाग के दो आधारों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर – (i) कार्य या उद्देश्य का आधार – इस आधार पर विभाग किसी विशेष कार्य या लक्ष्य के अनुसार बनाए जाते हैं, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य या पुलिस विभाग।
(ii) प्रक्रिया का आधार – इस आधार पर विभाग काम करने की प्रक्रिया या तरीके के अनुसार बनाए जाते हैं, जैसे लेखा विभाग या कानूनी विभाग।

29. कार्यपालिका का सामान्य अर्थ क्या है?
उत्तर –कार्यपालिका का सामान्य अर्थ यह है कि यह सरकार का वह प्रमुख अंग होता है जो बनाए गए कानूनों और नीतियों को लागू करता है और राज्य के दैनिक प्रशासनिक कार्यों को संचालित करता है। कार्यपालिका शासन को व्यवहार में लाने वाला अंग है, जो जनता को सेवाएं प्रदान करने और व्यवस्था बनाए रखने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

30. संघ लोक सेवा आयोग के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के कार्य :
(i) भर्ती परीक्षाओं का आयोजन – UPSC संघ की विभिन्न सेवाओं में नियुक्ति के लिए सिविल सेवा, इंजीनियरिंग सेवा, चिकित्सा सेवा आदि प्रमुख प्रतियोगी परीक्षाएँ आयोजित करता है और योग्य उम्मीदवारों का चयन करता है।
(ii) सीधी भर्ती का संचालन – आयोग साक्षात्कार या चयन-समिति के माध्यम से उच्च पदों पर अधिकारियों की सीधी भर्ती करता है, जिससे चयन प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष रहती है।
(iii) नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण पर सलाह – UPSC केंद्र सरकार को प्रत्यक्ष भर्ती, पदोन्नति, स्थानांतरण तथा सेवा-शर्तों से संबंधित सभी मामलों में विशेषज्ञ सलाह प्रदान करता है।
(iv) अनुशासनात्मक मामलों पर मार्गदर्शन – केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत अधिकारियों के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाइयों, दंड, अपील और पेंशन संबंधी मामलों पर आयोग सरकार को आवश्यक परामर्श देता है।

31. पदोन्नति की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – पदोन्नति की प्रमुख विशेषताएँ :
(i) पद और जिम्मेदारियों में वृद्धि – पदोन्नति मिलने पर कर्मचारी को अधिक महत्वपूर्ण कार्य, अधिक अधिकार और निर्णय लेने की जिम्मेदारियाँ मिलती हैं, जिससे संगठन में उसकी भूमिका पहले से अधिक प्रभावी हो जाती है।
(ii) वेतन और अन्य लाभों में बढ़ोतरी – पदोन्नति के साथ वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाएँ बढ़ जाती हैं, जिससे कर्मचारी का आर्थिक स्तर सुधरता है और उसे आगे बेहतर काम करने की प्रेरणा मिलती है।
(iii) उच्च पद की मान-प्रतिष्ठा – पदोन्नति से कर्मचारी की संगठन में स्थिति ऊँची होती है, सम्मान बढ़ता है और उसकी पेशेवर छवि मजबूत होती है, जिससे सामाजिक व संस्थागत प्रतिष्ठा दोनों बढ़ती हैं।
(iv) योग्यता एवं अनुभव की पहचान – पदोन्नति कर्मचारी की मेहनत, क्षमता, अनुभव और निष्ठा की आधिकारिक मान्यता होती है। यह उसे अपने प्रदर्शन को और बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करती है।

32. प्रशिक्षण की कोई चार विधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – प्रशिक्षण की चार विधियाँ :
(i) कार्यस्थल पर प्रशिक्षण – इस विधि में कर्मचारी वास्तविक कार्यस्थल पर काम करते हुए सीखते हैं। वे अनुभवी कर्मचारियों के मार्गदर्शन में कोचिंग, अंडरस्टडी और पद-परिवर्तन जैसे तरीकों से व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करते हैं।
(ii) कक्षा प्रशिक्षण – इसमें प्रशिक्षण कक्षा जैसी व्यवस्था में दिया जाता है, जहाँ व्याख्यान, सेमिनार, केस स्टडी और रोल-प्ले जैसी गतिविधियों के माध्यम से सैद्धांतिक तथा प्रारंभिक व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया जाता है।
(iii) ई-लर्निंग प्रशिक्षण – इस विधि में कर्मचारी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से वीडियो लेक्चर, क्विज़, नोट्स और इंटरएक्टिव मॉड्यूल से अपनी सुविधा के अनुसार सीखते हैं। यह समय और स्थान की लचीलापन प्रदान करता है।
(iv) अनुकरण प्रशिक्षण – इसमें वास्तविक कार्य जैसी कृत्रिम परिस्थितियाँ और उपकरण तैयार किए जाते हैं, जिससे कर्मचारी बिना किसी जोखिम के सुरक्षित वातावरण में कौशल का अभ्यास कर सकें, जैसे- मशीन सिमुलेशन या भूमिका-अभिनय।

33. लोक निगमों की हानियों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर – लोक निगमों की हानियाँ :
(i) सरकारी हस्तक्षेप – लोक निगमों में सरकार और राजनीतिक नेताओं का हस्तक्षेप उनकी स्वायत्तता को कम कर देता है। कई बार व्यावसायिक निर्णय राजनीतिक लाभ के अनुसार लिए जाते हैं, जिससे निगम अपनी पेशेवर दिशा खो देते हैं और सही समय पर सही निर्णय नहीं ले पाते।
(ii) अकुशल संचालन और निम्न गुणवत्ता – प्रतिस्पर्धी माहौल न होने के कारण लोक निगमों में ढिलाई और सुस्ती आ सकती है। कर्मचारियों को नौकरी की सुरक्षा होने से कार्य करने की प्रेरणा कम होती है, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित होती है और उपभोक्ता संतुष्टि कम हो जाती है।
(iii) निर्णय लेने में धीमापन – लोक निगम बड़े और बहु-स्तरीय संगठन होते हैं, जिनमें फाइलों का लंबा चलन, अनेक स्वीकृतियों की आवश्यकता और जटिल प्रक्रियाएँ निर्णय लेने को धीमा बना देती हैं। इससे परियोजनाएँ समय पर पूरी नहीं हो पातीं और कार्य निष्पादन में देरी होती है।
(iv) वित्तीय अनियमितता और भ्रष्टाचार की संभावना – कुछ लोक निगमों में वित्तीय प्रबंधन कमजोर होता है, जिससे खर्चों पर नियंत्रण कम रहता है। पारदर्शिता की कमी से भ्रष्टाचार, रिश्वत और संसाधनों के दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाती है, जो निगम की छवि और आर्थिक स्थिति दोनों को नुकसान पहुँचाता है।

34. संसद बजट पर किस प्रकार नियन्त्रण करती है?
उत्तर – संसद बजट पर व्यापक नियंत्रण रखती है, क्योंकि बजट तभी लागू होता है जब संसद उसे स्वीकृति दे। सबसे पहले सरकार लोकसभा में बजट प्रस्तुत करती है, जिसके बाद सांसद उसकी नीतियों और प्रावधानों पर सामान्य चर्चा करते हैं। इसके बाद अनुदान माँगों पर विभागवार विस्तृत विचार होता है, जहाँ संसद विभिन्न मंत्रालयों द्वारा माँगी गई राशि को कम, अधिक या अस्वीकार भी कर सकती है। वित्तीय व्यवस्था से संबंधित धन विधेयक (Finance Bill) संसद की मंजूरी के बिना कानून नहीं बन सकता, इसलिए सरकार मनमाने ढंग से धन व्यय नहीं कर सकती। अंत में, पब्लिक अकाउंट कमेटी (PAC) और अन्य संसदीय समितियाँ सरकारी खर्चों की जाँच करती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि जनता का धन नियमों और पारदर्शिता के साथ उपयोग हुआ है। इस प्रकार चर्चा, संशोधन, मतदान और लेखा-परीक्षण के माध्यम से संसद बजट पर पूर्ण नियंत्रण रखती है।

35. भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएँ बताइए।
उत्तर – भारतीय संविधान की संघीय विशेषताएँ :
(i) शक्तियों का विभाजन – केंद्र और राज्यों के बीच विधायी, कार्यकारी और वित्तीय शक्तियों का स्पष्ट बँटवारा संघीय व्यवस्था की सबसे प्रमुख विशेषता है।
(ii) दोहरी सरकार – भारत में शासन दो स्तरों पर चलता है: केंद्र और राज्य सरकारें। दोनों अपने निर्धारित क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से कार्य करती हैं।
(iii) लिखित संविधान – भारत का संविधान लिखित रूप में है, जिसमें संघीय ढाँचे और शक्तियों के वितरण का स्पष्ट विवरण दिया गया है।
(iv) संविधान की सर्वोच्चता – संविधान देश का सर्वोच्च कानून है और केंद्र तथा राज्य दोनों इसी के अधीन कार्य करते हैं।
(v) कठोर संविधान – संविधान में संशोधन की प्रक्रिया, विशेषकर संघीय विषयों के लिए, कठोर रखी गई है ताकि संघीय ढांचे की स्थिरता सुनिश्चित हो सके।
(vi) स्वतंत्र एवं एकीकृत न्यायपालिका – सर्वोच्च न्यायालय केंद्र और राज्यों के बीच विवादों का समाधान करता है और संघीय ढाँचे की रक्षा करता है।
(vii) द्विसदनीय विधायिका – संसद में लोकसभा और राज्यसभा दो सदन हैं, जिनमें राज्यसभा राज्यों के हितों का प्रतिनिधित्व करती है, जो संघीय भावना को मजबूत करता है।

36. भारतीय राष्ट्रपति की शक्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – भारतीय राष्ट्रपति की शक्तियाँ :
(i) विधायी शक्तियाँ –
• संसद के सत्र बुलाना, स्थगित करना और आवश्यक होने पर लोकसभा को भंग करना।
• संसद द्वारा पारित विधेयकों पर सहमति देना, असहमति जताना या पुनर्विचार के लिए वापस भेजना।
• संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाना।
• दोनों सदनों के बीच उत्पन्न गतिरोध की स्थिति में मध्यस्थता करना।
• साधारण चुनावों के बाद प्रथम सत्र में संसद को संबोधित करना।
• राज्यसभा में 12 सदस्यों को मनोनीत करना।
• कुछ विशेष विधेयकों (विशेषकर धन विधेयक) को संसद में प्रस्तुत करने की सिफारिश करना या अनुमति देना।
(ii) कार्यकारी शक्तियाँ –
• प्रधानमंत्री तथा प्रधानमंत्री की सलाह पर मंत्रिपरिषद की नियुक्ति करना।
• भारत के महान्यायवादी, राज्यों के राज्यपालों, तथा सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति करना।
• अन्य देशों के राजदूतों की नियुक्ति करना और विदेशी प्रतिनिधियों के प्रस्तावों को स्वीकार करना।
• सभी अंतरराष्ट्रीय संधियाँ और समझौते राष्ट्रपति के नाम पर किए जाना।
• भारत सरकार के सभी कार्यकारी कार्य राष्ट्रपति के नाम से जारी होना।
(iii) न्यायिक शक्तियाँ –
• किसी भी सजा को माफ करने, कम करने, बदलने या समाप्त करने की शक्ति, जिसमें मृत्युदंड भी शामिल है।
• सजा को कुछ समय के लिए निलंबित करने की शक्ति।
(iv) सैन्य शक्तियाँ –
• राष्ट्रपति भारतीय सशस्त्र बलों के सर्वोच्च सेनापति होते हैं।
• युद्ध घोषित करने या शांति स्थापित करने के संबंध में अंतिम औपचारिक सलाह दे सकते हैं।
(v) आपातकालीन शक्तियाँ –
• राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352), राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) तथा वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360) घोषित करना।
• आपातकाल की अवधि में आवश्यकतानुसार मौलिक अधिकारों को निलंबित करना।

अथवा

प्रधानमंत्री के कार्यों एवं शक्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – प्रधानमंत्री के प्रमुख कार्य और शक्तियाँ :
(i) सरकार का प्रमुख –
• देश के शासन और प्रशासन के सर्वोच्च प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं।
• सरकारी नीतियों, योजनाओं और राष्ट्रीय विकास कार्यक्रमों को निर्धारित करते हैं।
(ii) मंत्रिपरिषद का नेतृत्व –
• मंत्रिपरिषद के अध्यक्ष होते हैं और उसकी बैठकों की अध्यक्षता करते हैं।
• मंत्रियों के बीच समन्वय स्थापित करते हैं और विभागीय विवादों को हल करते हैं।
• मंत्रियों को पोर्टफोलियो आवंटित करते हैं तथा आवश्यक होने पर फेरबदल कर सकते हैं।
(iii) राष्ट्रपति और मंत्रिपरिषद के बीच कड़ी –
• मंत्रिपरिषद के सभी निर्णयों की जानकारी राष्ट्रपति को प्रदान करते हैं।
• राष्ट्रपति को आवश्यक सलाह देते हैं, जैसे संसद का सत्र बुलाने या भंग करने की सलाह।
(iv) संसद में नेतृत्व –
• लोकसभा में सरकार के नेता के रूप में कार्य करते हैं।
• संसद में सरकारी नीतियों, कार्यक्रमों और निर्णयों की घोषणा कर सकते हैं।
(v) प्रशासनिक और नियुक्ति संबंधी शक्तियाँ –
• राष्ट्रपति को उच्च-स्तरीय अधिकारियों जैसे राज्यपाल, महान्यायवादी, UPSC अध्यक्ष एवं सदस्यों तथा राजदूतों की नियुक्ति हेतु सलाह देते हैं।
• नीति आयोग, परमाणु कमान प्राधिकरण जैसे महत्त्वपूर्ण निकायों के प्रमुख होते हैं।
(vi) विदेशी मामले –
• अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं।
• विदेशी संबंधों, समझौतों और कूटनीतिक नीतियों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

37. पंचायती राज के दोषों को दूर करने के उपायों का वर्णन करें।
उत्तर – पंचायती राज के दोषों को दूर करने के उपाय :
(i) वित्तीय सशक्तिकरण और स्वायत्तता – पंचायती राज संस्थाओं की सबसे बड़ी कमजोरी उनका सीमित वित्त है, इसलिए उन्हें अपने स्थानीय कर लगाने और शुल्क वसूलने का अधिकार बढ़ाना चाहिए, ताकि वे अपनी आय स्वयं उत्पन्न कर सकें। संपत्ति कर, जल-शुल्क, तथा उपयोगकर्त्ता शुल्क जैसे राजस्व स्रोत प्रभावी बनेंगे तो विकास कार्यों में राज्य पर निर्भरता कम होगी। इसके साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों को पर्याप्त अनुदान एवं योजनागत सहायता सुनिश्चित करनी चाहिए। राज्य वित्त आयोग की सक्रिय भूमिका जरूरी है ताकि पंचायतों की वास्तविक वित्तीय आवश्यकता का आकलन हो सके और उसके अनुरूप संसाधन आवंटन हो।
(ii) शक्तियों और कार्यों का वास्तविक हस्तांतरण – 73वें संविधान संशोधन के अनुसार ग्यारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध 29 विषयों का पूरा हस्तांतरण पंचायतों को मिलना चाहिए। कई राज्यों में अभी भी कार्य कागज़ों पर हैं, पर वास्तविक प्रशासनिक अधिकार विभागों के हाथ में रहते हैं। इसलिए पंचायतों को शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क-निर्माण, स्थानीय विकास जैसी योजनाओं में निर्णय-लेने और बजट जारी करने की प्रशासनिक शक्ति दी जानी चाहिए, जिससे स्थानीय समस्याओं का स्थानीय स्तर पर ही समाधान हो सके।
(iii) ग्राम सभाओं को सशक्त बनाना – ग्राम सभा लोकतंत्र की जड़ है, लेकिन कई स्थानों पर इसकी बैठकें औपचारिक रूप से ही होती हैं। ग्राम सभाओं की नियमित बैठकें अनिवार्य हों और लोगों को इसमें भाग लेने के लिए जागरूक किया जाए। ग्राम सभा यदि सक्रिय होगी, तो पंचायतों में पारदर्शिता, भ्रष्टाचार-नियंत्रण, और उत्तरदायित्व स्वतः बढ़ेगा। सामाजिक लेखा-परीक्षा भी ग्राम सभा के माध्यम से अधिक प्रभावी हो सकती है।
(iv) प्रशासनिक सुधार और क्षमता निर्माण – स्थानीय प्रतिनिधियों को शासन, लेखांकन, बजट, योजना-निर्माण, तथा डिजिटल प्रक्रियाओं का प्रशिक्षण देना अत्यंत आवश्यक है, ताकि वे तकनीकी रूप से सक्षम हों। डिजिटल शासन या ई-गवर्नेंस (जैसे ऑनलाइन भुगतान, डिजिलॉकर, ई-ऑफिस आदि) लागू होने से पंचायतों के कार्यों में दक्षता और पारदर्शिता बढ़ती है। भ्रष्टाचार रोकने के लिए स्वतंत्र ऑडिट संस्था द्वारा नियमित जांच और खातों की सार्वजनिक उपलब्धता भी अनिवार्य है।
(v) समावेशिता और सामाजिक भागीदारी – महिलाओं और कमजोर वर्गों का वास्तविक सशक्तिकरण पंचायतों को मजबूत बनाता है। ‘सरपंच पति’ जैसी अनुचित प्रवृत्ति को रोकने के लिए कड़े कानूनी उपाय और महिला प्रतिनिधियों का विशेष प्रशिक्षण आवश्यक है। साथ ही, अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़े वर्गों के आरक्षण को प्रभावी ढंग से लागू कर उनकी सक्रिय भागीदारी बढ़ाई जाए, ताकि पंचायतें सचमुच जनप्रतिनिधि संस्थाएँ बन सकें।
(vi) योजना-निर्माण और कार्यान्वयन में सुधार – विकेंद्रीकृत योजना-प्रणाली के अंतर्गत पंचायतों को अपने क्षेत्र की वास्तविक आवश्यकताओं के अनुरूप विकास योजनाओं को तैयार करने और लागू करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। गाँवों में मास्टर प्लान या स्थानिक योजना (Spatial Planning) बनाकर कृषि, सड़कें, जल-व्यवस्था, बाजार, आवास आदि का सुव्यवस्थित विकास किया जा सकता है। इसके प्रभावी क्रियान्वयन से योजनाओं में तालमेल और स्थायी विकास सुनिश्चित होगा।

अथवा

ग्राम पंचायत के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर – ग्राम पंचायत के कार्य :
(i) बुनियादी सुविधाओं का निर्माण, सुधार और रख रखाव – ग्राम पंचायत गाँव में सड़कें, गलियाँ, नालियाँ, स्ट्रीट लाइट, बस-स्टैंड, सार्वजनिक जल-टंकियाँ और हैंडपंप जैसी सुविधाओं की देखरेख करती है। यह बिजली व्यवस्था में खराब हुई स्ट्रीट लाइट बदलना, तारों का रख-रखाव, और सार्वजनिक स्थानों की मरम्मत जैसे कार्य भी करती है। सार्वजनिक पार्क, खेल मैदान, सामुदायिक भवन, पंचायत भवन और आँगनवाड़ी भवन का निर्माण व रख-रखाव भी इसी की मुख्य जिम्मेदारी है।
(ii) स्वास्थ्य, स्वच्छता, पर्यावरण एवं जल संरक्षण के कार्य – ग्राम पंचायत कचरा प्रबंधन, नालियों की सफाई, सार्वजनिक स्थानों की स्वच्छता, मच्छर-नियंत्रण, टीकाकरण कार्यक्रम और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराती है। यह वृक्षारोपण, तालाबों की सफाई, वर्षा जल-संग्रहण, और चारागाहों की सुरक्षा जैसे कदम उठाकर पर्यावरण संरक्षण और जल संरक्षण को बढ़ावा देती है।
(iii) कृषि, पशुपालन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन – यह सिंचाई व्यवस्था, नहरों और तालाबों की मरम्मत, किसान प्रशिक्षण, पशु-चिकित्सा शिविर, दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के कार्यक्रम, तथा ग्रामीण हाट-बाजार की व्यवस्था संभालती है। कृषि पथ, खेत-रोड, और मंडी तक संपर्क मार्ग बनाना भी पंचायत का दायित्व है।
(iv) शिक्षा, सामाजिक विकास और सार्वजनिक उपयोग की संरचनाएँ – ग्राम पंचायत प्राथमिक विद्यालयों की देखरेख, स्कूल भवनों की मरम्मत, पानी-शौचालय जैसी सुविधाओं को सुनिश्चित करती है। यह आँगनवाड़ी केंद्र के संचालन, महिला साक्षरता, खेल-कूद आयोजन, तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का समर्थन करती है। गाँव में खेल मैदान, पार्क और सभागार उपलब्ध कराना भी इसी के कार्यों में शामिल है।
(v) सामाजिक न्याय, कानून व्यवस्था और विवाद निपटान – ग्राम पंचायत दहेज, बाल विवाह, नशाखोरी और सामाजिक कुरीतियों को रोकने के लिए जागरूकता फैलाती है। यह छोटे स्थानीय झगड़ों का निपटान कर सामाजिक सामंजस्य बनाए रखती है और पुलिस-प्रशासन को कानून व्यवस्था बनाए रखने में सहयोग देती है।
(vi) सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन, कर वसूली और वित्तीय प्रबंधन – मनरेगा, आवास योजना, स्वच्छ भारत मिशन, जल जीवन मिशन, उज्ज्वला, जनधन आदि योजनाओं का लाभ पंचायत ही जनता तक पहुँचाती है। यह स्थानीय कर (संपत्ति कर, पानी शुल्क), फंड प्रबंधन, बजट निर्माण व ग्राम सभा में पारदर्शिता सुनिश्चित करती है। पंचायत भवन, सामुदायिक भवन और सार्वजनिक संरचनाओं का स्वामित्व, रख-रखाव और उपयोग नियम भी पंचायत ही तय करती है।

38. उच्च न्यायालय के संगठन तथा क्षेत्राधिकार या शक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर – उच्च न्यायालय का संगठन :
(i) मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीश – प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा आवश्यकता के अनुसार अन्य न्यायाधीश होते हैं। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा, उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, राज्यपाल तथा संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने के बाद की जाती है।
(ii) न्यायाधीशों की योग्यता – उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए व्यक्ति भारत का नागरिक होना चाहिए तथा उसे कम से कम दस वर्ष तक किसी उच्च न्यायालय में अधिवक्ता या दस वर्ष तक न्यायिक सेवा में कार्यरत रहना चाहिए।
(iii) कार्यकाल और पदावधि – उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक पद पर रहते हैं। उन्हें केवल राष्ट्रपति ही संसद द्वारा निर्धारित महाभियोग जैसी प्रक्रिया के माध्यम से पद से हटा सकता है। इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुरक्षित रहती है।
(iv) न्यायालय की संरचना और पीठें – उच्च न्यायालय में एकल पीठ, खंडपीठ और आवश्यकता पड़ने पर पूर्ण पीठ (फुल बेंच) बनायी जाती है। कई उच्च न्यायालयों की खंडपीठें राज्य के अन्य शहरों में भी कार्य करती हैं, ताकि लोगों को न्याय दूर तक न जाना पड़े।
(v) अधीनस्थ न्यायालयों पर नियंत्रण – उच्च न्यायालय अपने राज्य के जिला एवं उप-न्यायालयों पर प्रशासनिक और न्यायिक नियंत्रण रखता है। न्यायाधीशों की नियुक्ति, स्थानांतरण, निरीक्षण तथा अनुशासनात्मक कार्यवाही भी उच्च न्यायालय की देखरेख में होती है।

उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार तथा शक्तियाँ :
(i) मूल क्षेत्राधिकार – कुछ विशेष मामलों, जैसे वसीयत, परिवारिक विवाद, बड़े नागरिक दावों तथा संवैधानिक महत्व के मामलों में उच्च न्यायालय सीधे याचिकाएँ सुन सकता है। कुछ राज्यों में यह विवाह, तलाक और संपत्ति के मामलों में भी प्रत्यक्ष अधिकार रखता है।
(ii) अपीलीय क्षेत्राधिकार – उच्च न्यायालय जिला एवं सत्र न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध नागरिक तथा दण्डात्मक मामलों की अपील सुनता है। गंभीर अपराधों में दी गई सज़ा के विरुद्ध अंतिम अपील का निपटान उच्च न्यायालय ही करता है।
(iii) लेख क्षेत्राधिकार (रिट जारी करने की शक्ति) – अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय हैबियस कॉर्पस, मण्डामुस, सर्टिओरारी, प्रोहीबिशन और क्वो-वॉरंटो जैसी संवैधानिक रिट जारी कर सकता है। यह शक्ति नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा तथा शासन पर नियंत्रण रखने का महत्वपूर्ण साधन है।
(iv) पर्यवेक्षणीय अधिकार – अनुच्छेद 227 के अनुसार उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालयों व अधिकरणों की कार्यप्रणाली की निगरानी करता है। वह आवश्यक दिशा-निर्देश जारी कर न्यायिक प्रक्रिया को सही रूप में संचालित कराता है।
(v) न्यायिक पुनरावलोकन (ज्यूडिशियल रिव्यू) – उच्च न्यायालय राज्य सरकार द्वारा बनाए गए किसी भी कानून, आदेश या प्रशासनिक निर्णय की संवैधानिकता की जाँच कर सकता है। यदि वह संविधान के विपरीत पाया जाए, तो उसे निरस्त भी कर सकता है।
(vi) प्रशासनिक एवं सलाहकारी शक्तियाँ – उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों के नियम, प्रक्रियाएँ और सेवा-शर्तें निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साथ ही राज्य सरकार को विधिक विषयों पर परामर्श भी दे सकता है।

अथवा

सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों एवं कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर – सर्वोच्च न्यायालय की प्रमुख शक्तियाँ और कार्य :
(i) अपीलीय क्षेत्राधिकार – सर्वोच्च न्यायालय देश की सर्वोच्च अपील अदालत है। यह विभिन्न उच्च न्यायालयों और न्यायाधिकरणों के निर्णयों के विरुद्ध अंतिम अपील सुनता है। यह नागरिक (सिविल) और दण्डात्मक (क्रिमिनल) दोनों प्रकार के मामलों में अंतिम न्यायिक प्राधिकारी है।
(ii) मूल क्षेत्राधिकार – अनुच्छेद 131 के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय केंद्र और राज्यों के बीच तथा राज्यों के परस्पर विवादों की सीधी सुनवाई करता है। संघवादी ढाँचे को संतुलित बनाए रखने में यह शक्ति अत्यंत महत्वपूर्ण है।
(iii) सलाहकारी क्षेत्राधिकार – अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति किसी विधिक या संवैधानिक महत्व के प्रश्न को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय अपनी सलाह देकर राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण निर्णयों को स्पष्ट आधार प्रदान करता है।
(iv) अभिलेख न्यायालय और अवमानना दंड – सर्वोच्च न्यायालय “अभिलेख न्यायालय” है, अर्थात इसके निर्णय पूरे देश में मान्य मिसाल के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। साथ ही इसे अपनी अवमानना के लिए दंडित करने का अधिकार भी है, जिससे न्यायपालिका की प्रतिष्ठा और अधिकार सुरक्षित रहते हैं।
(v) न्यायिक समीक्षा – सर्वोच्च न्यायालय संसद या राज्य विधानमंडलों द्वारा बनाए गए कानूनों और सरकारी आदेशों की संवैधानिकता की जाँच करता है। संविधान-विरुद्ध पाए जाने पर वह ऐसे कानूनों को असंवैधानिक और अमान्य घोषित कर देता है। यह शक्ति संविधान की सर्वोच्चता बनाए रखने की आधारशिला है।
(vi) मौलिक अधिकारों की सुरक्षा – सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का संरक्षक है। अनुच्छेद 32 के तहत कोई भी नागरिक अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर सीधे सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है। यह हैबियस कॉर्पस, मण्डामुस, प्रतिषेध, उत्प्रेषण और अधिकार पृच्छा जैसी रिट जारी कर अधिकारों की रक्षा करता है।
(vii) संविधान की व्याख्या – सर्वोच्च न्यायालय संविधान की व्याख्या का अंतिम और सर्वोच्च प्राधिकारी है। संविधान के प्रावधानों, शक्तियों के विभाजन, संघ-राज्य संबंधों और मूल अधिकारों से जुड़े विवादों को यह अंतिम रूप से स्पष्ट करता है।