HBSE Class 12 Political Science Question Paper 2024 Answer Key

Haryana Board (HBSE) Class 12 Political Science Question Paper 2024 with a fully solved answer key. Students can use this HBSE Class 12 Political Science Solved Paper to match their responses and understand the question pattern. This BSEH Political Science Answer Key 2024 is based on the latest syllabus and exam format to support accurate preparation and revision for the board exams.

HBSE Class 12 Political Science Question Paper 2024 Answer Key

1. भारत के लिए अभूतपूर्व हिंसा और विस्थापन त्रासदी का वर्ष था :
(A) सन् 1948
(B) सन् 1947
(C) सन् 1945
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (B) सन् 1947

2. भारतीय जनसंघ की स्थापना निम्नलिखित वर्ष में हुई थी :
(A) सन् 1950
(B) सन् 1951
(C) सन् 1952
(D) सन् 1949
उत्तर – (B) सन् 1951

3. भारत में पहली पंचवर्षीय योजना कब लागू हुई थी?
(A) सन् 1951
(B) सन् 1952
(C) सन् 1953
(D) सन् 1954
उत्तर – (A) सन् 1951

4. पाँचवें आम चुनाव के बाद भारत के प्रधानमंत्री कौन बने?
(A) इन्दिरा गाँधी
(B) अटल बिहारी वाजपेयी
(C) राजीव गाँधी
(D) चन्द्रशेखर
उत्तर – (A) इन्दिरा गाँधी

5. राजीव-लोंगोवाल समझौता कब हुआ था?
(A) सन् 1970
(B) सन् 1978
(C) सन् 1985
(D) सन् 1987
उत्तर – (C) सन् 1985

6. दक्षिण एशिया के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?
(A) दक्षिण एशिया में सिर्फ एक तरह की राजनीतिक प्रणाली चलती है।
(B) बांग्लादेश और भारत ने नदी जल की हिस्सेदारी के बारे में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
(C) ‘साफ्टा’ पर हस्ताक्षर इस्लामाबाद के 12वें सार्क सम्मेलन में हुआ।
(D) दक्षिण एशिया की राजनीति में चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उत्तर – (A) दक्षिण एशिया में सिर्फ एक तरह की राजनीतिक प्रणाली चलती है।

7. वैश्वीकरण के बारे में कौन-सा कथन सही है?
(A) वैश्वीकरण का सम्बन्ध सिर्फ वस्तुओं की आवाजाही से है।
(B) वैश्वीकरण में मूल्यों का संघर्ष नहीं होता।
(C) वैश्वीकरण के अंग के रूप में सेवाओं का महत्त्व गौण है।
(D) वैश्वीकरण का सम्बन्ध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।
उत्तर – (D) वैश्वीकरण का सम्बन्ध विश्वव्यापी पारस्परिक जुड़ाव से है।

8. पर्यावरण के प्रति बढ़ते सरोकारों का क्या कारण है?
(A) विकसित देश प्रकृति की रक्षा को लेकर चिंतित हैं।
(B) पर्यावरण की सुरक्षा मूलवासी लोगों और प्राकृतिक पर्यावासों के लिए जरूरी है।
(C) मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान खतरे की हद तक पहुँच गया है।
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (C) मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण को व्यापक नुकसान हुआ है और यह नुकसान खतरे की हद तक पहुँच गया है।

9. मंडल आयोग की सिफारिशों को प्रधानमंत्री श्री …………… ने लागू किया था।
उत्तर – वी.पी. सिंह

10. सन् 1962 में भारत और चीन के बीच अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों और ……………. को लेकर सीमावर्ती लड़ाई हुई थी।
उत्तर – अक्साई चिन

11. संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् में ……………. स्थायी और …………… अस्थायी सदस्य है।
उत्तर – 5 स्थायी और 10 अस्थायी

सही मिलान कीजिए :

12. रेल हड़ताल(1) सम्पत्ति का निजी स्वामित्व
13. शॉक थेरेपी(2) 2002
14. बर्लिन की दीवार का गिरना(3) जॉर्ज फर्नान्डिज
15. यूरोप में ‘यूरो’ की शुरुआत(4) 1989

उत्तर – 12-(3), 13-(1), 14-(4), 15-(2)

16. आपातकाल के दौरान हुए किस संवैधानिक संशोधन को ‘लघु संविधान’ तक कहा गया है?
उत्तर – 42वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम (1976)

17. ‘जय जवान जय किसान’ नारे का सम्बन्ध किस नेता से है?
उत्तर – लाल बहादुर शास्त्री

18. ’21वीं सदी के दृष्टिकोण पत्र’ पर किन देशों ने हस्ताक्षर किए?
उत्तर – भारत और रूस

19. भारत की विदेश नीति का एक सिद्धान्त बताएँ।
उत्तर – गुटनिरपेक्षता / शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व / पंचशील

20. अभिकथन (A) : संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को कायम रखना है।
कारण (R) : अनेक कारणों के चलते संयुक्त राष्ट्र संघ अपने इस उद्देश्य में सफल नहीं रहा है।
(A) अभिकथन (A) एवं कारण (R) दोनों सही हैं और कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या करता है।
(B) अभिकथन (A) एवं कारण (R) दोनों सही हैं, किन्तु कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
(C) अभिकथन (A) सही है, किन्तु कारण (R) गलत है।
(D) अभिकथन (A) गलत है, किन्तु कारण (R) सही है।
उत्तर – (B) अभिकथन (A) एवं कारण (R) दोनों सही हैं, किन्तु कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।

21. आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अन्तर क्या थे?
उत्तर – (i) पूर्वी क्षेत्रों में सांस्कृतिक एवं आर्थिक असंतुलन की समस्या अधिक गंभीर थी, जबकि पश्चिमी क्षेत्रों में विकास और औद्योगिक ढाँचा मजबूत करना बड़ी चुनौती थी।
(ii) पूर्वी क्षेत्रों में भाषाई असमानता और उससे जुड़ी समस्याएँ प्रमुख थीं, जबकि पश्चिमी क्षेत्रों में धार्मिक तथा जातिगत तनाव अधिक थे, जिन्हें नियंत्रित करना राष्ट्र-निर्माण के लिए आवश्यक था।

22. अगर पहले चुनाव के बाद भारतीय जनसंघ अथवा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी होती, तो किन मामलों में इस सरकार ने अलग नीति अपनाई होती? इन दलों द्वारा अपनाई गई नीतियों के बीच दो अन्तरों का उल्लेख करें।
उत्तर – (i) भारतीय जनसंघ राष्ट्रीयता और केंद्रीकरण पर अधिक जोर देता, जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी आर्थिक व्यवस्था में समाजवादी ढाँचे और राज्य-नियंत्रित संसाधनों को प्राथमिकता देती।
(ii) जनसंघ सांस्कृतिक और शैक्षिक नीतियों में भारतीय परंपरा और राष्ट्रवादी मूल्यों पर आधारित दृष्टिकोण अपनाता, जबकि कम्युनिस्ट पार्टी श्रमिक अधिकारों, वर्ग-संघर्ष और भूमि के पुनर्वितरण जैसी नीतियों को आगे बढ़ाती।

अथवा

भारत में दल प्रणाली की दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर – भारत में दल प्रणाली की विशेषताएँ :
(i) भारत में बहुदलीय दल प्रणाली है, जिसमें राष्ट्रीय स्तर पर बड़े दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दल भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
(ii) भारत में गठबंधन राजनीति की प्रवृत्ति मजबूत है, जहाँ सरकारें प्रायः कई दलों के सहयोग से बनती और चलती हैं।

23. नेहरू विदेश नीति के संचालन को स्वतन्त्रता का एक अनिवार्य संकेतक क्यों मानते थे? अपने उत्तर में दो कारण बताएँ और उनके पक्ष में उदाहरण भी दें।
उत्तर – नेहरू विदेश नीति को स्वतंत्रता का अनिवार्य संकेतक इसलिए मानते थे क्योंकि इससे भारत अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों को स्वतंत्र रूप से निर्धारित कर सकता था।
(i) राष्ट्रीय संप्रभुता का दावा – स्वतंत्र विदेश नीति से भारत यह दिखा सका कि वह किसी शक्ति-गुट के दबाव में नहीं है और अपने निर्णय स्वयं लेता है। उदाहरण: शीत युद्ध में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) अपनाना।
(ii) राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा – इससे भारत को अपने आर्थिक-राजनैतिक हितों को प्राथमिकता देने की स्वतंत्रता मिली। उदाहरण: नेहरू द्वारा उपनिवेशवाद और रंगभेद का विरोध कर भारत के स्वतंत्र मूल्यों को विश्व मंच पर स्थापित करना।

अथवा

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के दो कारण लिखें।
उत्तर – भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के कारण :
(i) कश्मीर विवाद – भारत और पाकिस्तान दोनों जम्मू-कश्मीर को अपना हिस्सा मानते हैं, जिससे यह मुद्दा लगातार संघर्ष और अविश्वास का कारण बना रहा है। इसी विवाद ने दोनों देशों के बीच युद्धों और लंबे समय तक चले तनाव को जन्म दिया।
(ii) आतंकवाद और सीमा पार घुसपैठ – भारत का आरोप है कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी समूह सीमा पार से भारत में हमले करते हैं, जिससे सुरक्षा खतरे बढ़ते हैं। पाकिस्तान इन आरोपों से इनकार करता है, लेकिन ऐसी घटनाएँ दोनों देशों के संबंधों को लगातार तनावपूर्ण बनाए रखती हैं।

24. सन् 1970 के दशक में इंदिरा गाँधी की सरकार किन कारणों से लोकप्रिय हुई थी?
उत्तर – इंदिरा गाँधी की सरकार के लोकप्रियता के कारण :
(i) ‘गरीबी हटाओ’ का लोकप्रिय नारा
(ii) बैंकों का राष्ट्रीयकरण
(iii) प्रिवी पर्स की समाप्ति
(iv) भूमि सुधार कानून और भूमि सीमा अधिनियम

अथवा

श्री लालबहादुर शास्त्री जी पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर – श्री लालबहादुर शास्त्री जी भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे, जो अपनी सादगी, ईमानदारी और दृढ़ नेतृत्व के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने “जय जवान, जय किसान” का नारा देकर देश में आत्मविश्वास और एकता की भावना को मजबूत किया। 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उनके शांत लेकिन दृढ़ नेतृत्व ने देश को एकजुट रखा। वे ताशकंद समझौते के तुरंत बाद 1966 में निधन तक देश की सेवा करते रहे और आज भी आदर्श एवं नैतिक नेतृत्व के प्रतीक माने जाते हैं।

25. ऐसे दो मसलों के नाम बताएँ जिन पर भारत और बांग्लादेश के बीच आपसी सहयोग है।
उत्तर – (i) गंगा नदी के जल-बँटवारे पर सहयोग – दोनों देश गंगा नदी के पानी के न्यायपूर्ण बँटवारे, बाढ़ नियंत्रण और जल-प्रबंधन के लिए मिलकर समझौते और तकनीकी सहयोग करते हैं। फ़रक्का समझौता इसका प्रमुख उदाहरण है।
(ii) सीमा प्रबंधन और सीमा पार व्यापार – लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सुरक्षा बनाए रखने, अवैध गतिविधियों को नियंत्रित करने और व्यापार बढ़ाने के लिए दोनों देश संयुक्त पेट्रोलिंग, सीमा हाट और व्यापारिक मार्गों के माध्यम से सहयोग करते हैं।

26. श्रीलंका के जातीय संघर्ष में किनकी भूमिका प्रमुख है?
उत्तर – श्रीलंका के जातीय संघर्ष में सिंहल बहुसंख्यक समुदाय और तमिल अल्पसंख्यक समुदाय की भूमिका प्रमुख रही। सिंहल-बहुल सरकार द्वारा भाषा, शिक्षा और रोजगार में किए गए भेदभाव से असन्तुष्ट तमिल समुदाय ने समान अधिकारों और स्वायत्तता की माँग की, जिसके कारण दोनों समुदायों के बीच तनाव बढ़ता गया और संघर्ष गहराता गया।

अथवा

दक्षिण एशिया के देश एक-दूसरे पर अविश्वास करते हैं। इससे अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर यह क्षेत्र एकजुट होकर अपना प्रभाव नहीं जमा पाता। इस कथन की पुष्टि में कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर – (i) सार्क (SAARC) की निष्फलता – भारत और पाकिस्तान सहित कई दक्षिण एशियाई देशों के आपसी अविश्वास के कारण सार्क प्रभावी नहीं हो पाया और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर क्षेत्र एकजुट होकर अपनी भूमिका नहीं निभा सका।
(ii) SAFTA पर संदेह – दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) के तहत शुल्क घटाने के बावजूद कई देशों को भारत के बढ़ते प्रभाव पर संदेह रहा, जिससे क्षेत्रीय आर्थिक एकता कमजोर हुई और संयुक्त अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव नहीं बन पाया।

27. रियो सम्मेलन के क्या परिणाम हुए?
उत्तर – रियो सम्मेलन 1992 का मुख्य परिणाम यह रहा कि पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ठोस कदम उठाए गए। सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC), जैव-विविधता संरक्षण पर कन्वेंशन और वन प्रबंधन से जुड़े सिद्धांतों को मंजूरी दी गई। साथ ही, ‘एजेंडा 21’ नामक व्यापक वैश्विक कार्ययोजना तैयार की गई, जिसमें दुनिया भर के देशों को सतत विकास के दिशा-निर्देश और उपाय प्रदान किए गए।

अथवा

पृथ्वी को बचाने के लिए जरूरी है कि विभिन्न देश सुलह और सहकार की नीति अपनाएँ। पर्यावरण के सवाल पर उत्तरी और दक्षिणी देशों के बीच जारी वार्ताओं की रोशनी में इस कथन की पुष्टि करें।
उत्तर – यह कथन सही सिद्ध होता है कि पृथ्वी को बचाने के लिए देशों को सुलह और सहकार की नीति अपनानी आवश्यक है, जैसा कि उत्तरी (विकसित) और दक्षिणी (विकासशील) देशों के बीच हुई पर्यावरणीय वार्ताओं से स्पष्ट है। उत्तरी देश ऐतिहासिक रूप से अधिक प्रदूषण के लिए जिम्मेदार रहे हैं, जबकि दक्षिणी देशों की प्राथमिक आवश्यकता आर्थिक विकास है। इसी कारण वे विकसित देशों से जलवायु वित्त, तकनीकी सहायता और स्वच्छ प्रौद्योगिकी की मांग करते हैं। “समान किंतु विभेदित दायित्व” का सिद्धांत भी इसी सहयोग की आवश्यकता को दर्शाता है। वैश्विक पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान अकेले कोई देश नहीं कर सकता; इसलिए पारस्परिक समझ, साझा जिम्मेदारी और आपसी सहयोग ही पृथ्वी को पर्यावरणीय संकट से बचाने का एकमात्र प्रभावी मार्ग है।

28. वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का क्या योगदान है?
उत्तर – वैश्वीकरण में प्रौद्योगिकी का योगदान संचार, परिवहन और व्यापार को तेज, सस्ता और अधिक प्रभावी बनाकर हुआ है। इंटरनेट, मोबाइल और डिजिटल तकनीक ने दुनिया के देशों, बाजारों और लोगों को तुरंत जोड़ दिया, जिससे सूचना और विचारों का वैश्विक स्तर पर आदान-प्रदान आसान हो गया। उन्नत परिवहन तकनीकों ने माल और सेवाओं की अंतरराष्ट्रीय आवाजाही को तेज़ बनाया। इसके साथ-साथ प्रौद्योगिकी ने ऑनलाइन व्यापार, ई-बैंकिंग और डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देकर वैश्विक अर्थव्यवस्था को परस्पर जुड़ा हुआ बना दिया, और उत्पादन की तकनीकों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विस्तार को भी आसान किया।

अथवा

विश्वव्यापी ‘पारस्परिक जुड़ाव’ क्या है? इसके कौन-कौन-से घटक हैं?
उत्तर – विश्वव्यापी ‘पारस्परिक जुड़ाव’ का अर्थ है कि दुनिया के देश, समाज और अर्थव्यस्थाएँ वस्तुओं, सेवाओं, सूचनाओं, पूँजी और तकनीक के तेज़ और निरंतर आदान-प्रदान के कारण एक-दूसरे पर अधिक निर्भर और आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं। यह जुड़ाव वैश्वीकरण की प्रमुख विशेषता है।
इसके मुख्य घटक आर्थिक जुड़ाव (व्यापार, निवेश, पूँजी प्रवाह), राजनीतिक जुड़ाव (अंतरराष्ट्रीय संस्थाएँ और समझौते), सांस्कृतिक जुड़ाव (मीडिया, विचारों और जीवनशैली का प्रसार) और प्रौद्योगिकीय जुड़ाव (इंटरनेट, संचार और परिवहन) हैं, जो देशों को वैश्विक स्तर पर एक-दूसरे से जोड़ते हैं।

29. भारत विभाजन के तीन बुरे परिणाम बताएँ।
उत्तर – भारत विभाजन के तीन बुरे परिणाम :
(i) बड़े पैमाने पर हिंसा और मानवीय त्रासदी – विभाजन के दौरान व्यापक सांप्रदायिक हिंसा, अत्याचार और हत्याओं का दौर चला। लाखों लोगों की जान गई और डेढ़ करोड़ से अधिक लोग विस्थापित हुए। लोगों को अपनी ज़मीन और घर छोड़कर रातोंरात दूसरी जगह जाना पड़ा, जिससे मानवीय त्रासदी और सामाजिक उथल-पुथल पैदा हुई।
(ii) आर्थिक तबाही – विभाजन ने दोनों देशों की अर्थव्यवस्था को गंभीर नुकसान पहुँचाया। व्यापार, उद्योग और कृषि प्रभावित हुए और कई शहरों व क्षेत्रों का धार्मिक आधार पर बंट जाना आर्थिक गतिविधियों में बाधा बन गया। इसके कारण लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और विकास की गति धीमी हो गई।
(iii) राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता – विभाजन ने भारत और पाकिस्तान के बीच राजनीतिक और कूटनीतिक तनाव बढ़ा दिया। पंजाब और बंगाल जैसे प्रांतों का धार्मिक आधार पर विभाजन एक बड़ा सामाजिक आघात था। इसके अलावा, कश्मीर विवाद जैसे मुद्दों ने लंबे समय तक राजनीतिक और क्षेत्रीय अस्थिरता बनाए रखी।

30. पहली पंचवर्षीय योजना का किस चीज पर सबसे ज्यादा जोर था? दूसरी पंचवर्षीय योजना पहली से किन अर्थों में अलग थी?
उत्तर – पहली पंचवर्षीय योजना (1951-56) का मुख्य उद्देश्य गरीबी हटाना और कृषि क्षेत्र का सुधार था। विभाजन के कारण कृषि क्षेत्र को गंभीर नुकसान पहुँचा था, इसलिए इस पर तुरंत ध्यान देना आवश्यक था। योजना में बाँध और सिंचाई परियोजनाओं जैसे भाखड़ा-नांगल के लिए बड़ी धनराशि आवंटित की गई। साथ ही, भूमि सुधार पर जोर दिया गया, क्योंकि भूमि वितरण में असमानता कृषि के विकास में सबसे बड़ी बाधा मानी गई।
दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-61) में प्राथमिकता भारी उद्योग और औद्योगिकीकरण पर थी। पहली योजना का मूलमंत्र धीरज और कृषि विकास था, जबकि दूसरी योजना तेज़ औद्योगिक और संरचनात्मक परिवर्तन पर जोर देती थी। पहली योजना ग्रामीण और कृषि विकास पर केंद्रित थी, जबकि दूसरी योजना औद्योगिक आधार और दीर्घकालिक आर्थिक मजबूती पर केंद्रित थी।

अथवा

नियोजित विकास की तीन उपलब्धियाँ लिखें।
उत्तर – नियोजित विकास की तीन प्रमुख उपलब्धियाँ :
(i) कृषि में आत्मनिर्भरता – पंचवर्षीय योजनाओं ने कृषि क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया। सिंचाई परियोजनाओं, उन्नत बीज और आधुनिक कृषि तकनीकों के माध्यम से उत्पादन बढ़ाया गया। इससे हरित क्रांति को बढ़ावा मिला और भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सका।
(ii) औद्योगिक विकास – योजनाओं के तहत सार्वजनिक क्षेत्र में भारी उद्योगों, जैसे इस्पात संयंत्र, तेल रिफाइनरी और रक्षा उत्पादन इकाइयों की स्थापना हुई। इससे देश के औद्योगिक आधार को मजबूती मिली, रोजगार के अवसर बढ़े और आर्थिक विकास की दिशा मजबूत हुई।
(iii) सामाजिक और बुनियादी सुधार – सिंचाई, बिजली, सड़क और संचार जैसे बुनियादी ढांचे का सुधार किया गया, जिससे ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों का विकास हुआ। इसके साथ ही योजनाओं ने शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और पिछड़े वर्गों के सशक्तिकरण पर भी जोर दिया, जिससे गरीबी में कमी आई और सामाजिक न्याय सुनिश्चित हुआ।

31. 1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करते हुए, सरकार ने इसके क्या कारण बताए थे?
उत्तर – 1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के सरकार द्वारा बताए गए कारण :
(i) आंतरिक अशांति और कानून व्यवस्था – सरकार ने कहा कि देश में आंतरिक अशांति फैल रही थी और कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ रही थी, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा और सामान्य प्रशासन पर खतरा था।
(ii) राजनीतिक अस्थिरता – विपक्षी दलों की गतिविधियों, विरोध प्रदर्शनों और हड़तालों के कारण सरकार का कार्यकुशल संचालन प्रभावित हो रहा था और देश में शांति बनाए रखना कठिन हो गया था।
(iii) इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला और राजनीतिक संकट – 1975 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी के 1971 के चुनाव को भ्रष्टाचार के आधार पर अवैध घोषित किया, जिससे राजनीतिक संकट गहरा गया।
(iv) आर्थिक और सामाजिक समस्याएँ – उस समय महंगाई, बेरोजगारी और सामाजिक असंतोष बढ़ रहे थे, जिससे सरकार ने देश में स्थिरता बनाए रखने के लिए आपातकाल की घोषणा आवश्यक समझा।

अथवा

वचनबद्ध न्यायपालिका से क्या अभिप्राय है? भारत में इसका उदय कैसे हुआ?
उत्तर – वचनबद्ध न्यायपालिका वह न्यायिक व्यवस्था है जो संविधान और कानून के अनुसार न चलकर सरकार या सत्तारूढ़ दल के प्रति निष्ठावान होकर काम करती है। ऐसी न्यायपालिका स्वतंत्र निर्णय लेने में असमर्थ होती है और अधिकतर मामलों में सरकार के पक्ष में निर्णय देती है, जिससे न्यायपालिका की स्वायत्तता और निष्पक्षता प्रभावित होती है।
भारत में वचनबद्ध न्यायपालिका का उदय मुख्य रूप से 1975-77 के आपातकाल के दौरान हुआ। इस समय सरकार ने न्यायपालिका पर राजनीतिक दबाव डाला और व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं पर अंकुश लगाया। कई मामलों में न्यायालयों ने सरकारी नीतियों का समर्थन किया, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रश्न उठे। इस अनुभव ने स्पष्ट किया कि लोकतंत्र और संविधान की मजबूती के लिए न्यायपालिका का स्वतंत्र और निष्पक्ष रहना आवश्यक है।

32. आपातकाल के दौर में भाजपा एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में उभरी। इस दौर में इस पार्टी के विकास क्रम पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर – आपातकाल (1975–77) के दौरान भाजपा स्वयं अस्तित्व में नहीं थी और उस समय जनसंघ के रूप में सक्रिय थी। इंदिरा गांधी द्वारा लागू आपातकाल के विरोध में जनसंघ ने अन्य विपक्षी दलों के साथ मिलकर जनता पार्टी का गठन किया और आपातकाल के खिलाफ संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस आंदोलन और जनता पार्टी की सरकार की स्थापना ने जनसंघ के नेताओं को राष्ट्रीय राजनीतिक अनुभव और संगठनात्मक ताकत दी। इसके बाद, 1980 में जनसंघ के अधिकांश नेता भाजपा के गठन में शामिल हुए, जिससे भाजपा के संगठन और पहचान की नींव मजबूत हुई। इस तरह, आपातकाल ने भाजपा के राजनीतिक उदय और विकास में एक निर्णायक भूमिका निभाई।

अथवा

गठबंधन सरकार का अर्थ व गठबंधन सरकार के भारतीय राजनीति पर पड़ने वाले कोई तीन प्रभाव लिखें।
उत्तर – गठबंधन सरकार तब बनती है जब चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता। ऐसे में दो या दो से अधिक दल मिलकर साझा कार्यक्रम के आधार पर सरकार बनाते हैं, जिससे उन्हें बहुमत और शासन के लिए आवश्यक समर्थन मिलता है।
भारतीय राजनीति पर प्रभाव:
(i) संघवाद को बढ़ावा – यह क्षेत्रीय दलों को राष्ट्रीय राजनीति में प्रतिनिधित्व देती है और केंद्र और राज्यों के बीच सहकारी संघवाद को मजबूत करती है।
(ii) राजनीतिक स्थिरता में कमी – विभिन्न दलों के मतभेद और समर्थन वापस लेने की संभावना से सरकार अक्सर कमजोर और अस्थिर रहती है।
(iii) निर्णय लेने में देरी – सभी सहयोगी दलों की सहमति लेने की आवश्यकता के कारण महत्वपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है।

33. भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए?
उत्तर – भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के परिणाम :
(i) वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव – सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका एकमात्र महाशक्ति बन गया। इससे भारत को वैश्विक कूटनीति, सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। भारत ने अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिए अमेरिका, रूस और अन्य शक्तियों के साथ संतुलित संबंध बनाए।
(ii) अर्थव्यवस्था और व्यापार पर प्रभाव – सोवियत संघ भारत का प्रमुख आर्थिक और व्यापारिक सहयोगी था। इसके विघटन के बाद भारत को नए व्यापारिक साझेदार खोजने पड़े और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए उदारीकरण और वैश्वीकरण अपनाना पड़ा।
(iii) सैन्य और रणनीतिक सहयोग में कमी – सोवियत संघ भारत का मुख्य हथियार और सैन्य उपकरण आपूर्तिकर्ता था। इसके बाद भारत को नए स्रोतों से रक्षा उपकरण और तकनीक प्राप्त करनी पड़ी और रूस, अमेरिका, इज़राइल और फ्रांस जैसे देशों के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाया।

34. ‘आशियान विजन 2020’ की मुख्य बातें क्या हैं?
उत्तर – आसियान विजन 2020 की मुख्य बातें :
(i) शांति और स्थिरता – इस विजन का उद्देश्य आसियान क्षेत्र में शांति, स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देना है। इसमें देशों के बीच संघर्षों को संवाद और बातचीत के माध्यम से हल करना और कानून के शासन को मजबूत करना शामिल है, ताकि क्षेत्र में स्थायी शांति बनी रहे।
(ii) आर्थिक विकास – यह योजना क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग और निवेश को प्रोत्साहित करती है। इसका लक्ष्य आर्थिक एकता को मजबूत करना, व्यापार और निवेश को बढ़ाना और सदस्य देशों के आर्थिक विकास में संतुलन बनाए रखना है।
(iii) सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति – विजन 2020 शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय और जीवन स्तर में सुधार लाने पर जोर देता है। इसके अलावा, यह सदस्य देशों के बीच सांस्कृतिक समझ और सहयोग को बढ़ावा देता है, जिससे सामाजिक और मानव संसाधन विकास को मजबूत किया जा सके।
(iv) पर्यावरण और वैश्विक भूमिका – इस विजन में प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग और पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करना भी शामिल है। इसके साथ ही, आसियान की अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सशक्त और बहुपक्षीय भूमिका स्थापित करने पर भी जोर दिया गया है।

अथवा

भारत और चीन के बीच विवाद के मामलों की पहचान करें और बताएँ कि बेहतर सहयोग के लिए इन्हें कैसे निपटाया जा सकता है? अपने सुझाव भी दीजिए।
उत्तर – भारत और चीन विवाद के मुख्य मामले :
(i) अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश को लेकर सीमा विवाद
(ii) LAC पर बार-बार तनाव और सैनिक गतिरोध
(iii) चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा
(iv) हिमालय में सामरिक प्रतिस्पर्धा
(v) तिब्बत मुद्दा और शरणार्थियों की उपस्थिति
• बेहतर सहयोग के सुझाव :
(i) नियमित उच्च-स्तरीय कूटनीतिक संवाद
(ii) सीमा पर विश्वास-निर्माण उपाय और बफर ज़ोन
(iii) स्पष्ट पेट्रोलिंग प्रोटोकॉल और सैन्य समन्वय
(iv) संतुलित आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग
(v) सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा

35. परम्परागत और अपारम्परिक सुरक्षा में क्या अन्तर है? गठबन्धनों का निर्माण करना और बनाये रखना इसमें से किस कोटि में आता है?
उत्तर – परंपरागत सुरक्षा उस व्यवस्था को कहते हैं जिसमें राज्य अपनी सीमाओं, संप्रभुता और बाहरी खतरों से रक्षा के लिए सैन्य बलों, हथियारों और युद्ध-तैयारी पर निर्भर रहता है। इसमें युद्ध, आक्रमण, सीमा-विवाद और सैन्य रणनीतियाँ मुख्य चिंताएँ होती हैं। सेना, नौसेना और वायुसेना जैसे पारंपरिक रक्षा साधन इसी श्रेणी में आते हैं।
अपारम्परिक सुरक्षा गैर-सैन्य खतरों से संबंधित होती है, जो मानव जीवन, समाज और आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करते हैं। इसमें आतंकवाद, महामारी, जलवायु परिवर्तन, आर्थिक संकट और मानवाधिकार संबंधी चुनौतियाँ शामिल होती हैं। कोविड-19 और वैश्विक पर्यावरणीय परिवर्तन जैसी समस्याएँ अपारंपरागत सुरक्षा के उदाहरण हैं।
गठबंधनों का निर्माण परंपरागत सुरक्षा की श्रेणी में आता है, क्योंकि सैन्य शक्ति बढ़ाने, सामूहिक रक्षा करने और साझा बाहरी खतरों का मुकाबला करने के उद्देश्य से देश आपस में गठबंधन बनाते हैं। नाटो (NATO) जैसे सैन्य गठबंधन इसका स्पष्ट उदाहरण हैं।

अथवा

‘शक्ति सन्तुलन’ क्या है? कोई देश इसे कैसे कायम करता है?
उत्तर – शक्ति संतुलन वह अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था है जिसमें शक्ति विभिन्न देशों या समूहों के बीच इस प्रकार विभाजित रहती है कि कोई एक देश अत्यधिक शक्तिशाली होकर दूसरों पर अपना प्रभुत्व स्थापित न कर सके। यह व्यवस्था अंतरराष्ट्रीय शांति, स्थिरता और शक्ति-संतुलित संबंधों को बनाए रखने में सहायक होती है।
कोई देश शक्ति संतुलन कायम करने के लिए अपनी सैन्य क्षमता, रक्षा-तंत्र और आर्थिक शक्ति को निरंतर मजबूत करता है, साथ ही सामरिक, राजनीतिक और सैन्य गठबंधन बनाकर अपनी सामूहिक सुरक्षा को बढ़ाता है। कूटनीतिक नीतियों का प्रभावी उपयोग, पड़ोसी देशों के साथ संतुलित संबंध, तथा संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों में सक्रिय भागीदारी भी शक्ति संतुलन को बनाए रखने के महत्वपूर्ण साधन हैं। कई बार किसी एक देश द्वारा शक्ति बढ़ाने पर अन्य देश भी अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सैन्य तैयारी बढ़ाते हैं या नए गठबंधन स्थापित करते हैं, जिससे वैश्विक प्रणाली में शक्ति का संतुलन बना रहता है।

36. ‘विश्व की सांझी विरासत’ का क्या अर्थ है? इसका दोहन और प्रदूषण कैसे होता है?
उत्तर – ‘विश्व की सांझी विरासत’ उस प्राकृतिक या सांस्कृतिक संपदा को कहा जाता है जो किसी एक देश की नहीं, बल्कि पूरे मानव-समाज की साझा धरोहर होती है। इनमें महासागर, ध्रुवीय क्षेत्र, अंतरिक्ष, जैव विविधता, विरासत स्थल, प्राकृतिक संसाधन और वैश्विक पर्यावरण जैसे तत्व शामिल होते हैं, जिन्हें सुरक्षित रखना पूरी मानवता की सामूहिक जिम्मेदारी मानी जाती है।
इन संसाधनों का दोहन तब होता है जब देश या कंपनियाँ अपने आर्थिक हितों के लिए समुद्री खनन, अत्यधिक मत्स्य-शिकार, जंगलों की कटाई, अंतरिक्ष मलबे का बढ़ता संचय या बर्फीले क्षेत्रों का अंधाधुंध उपयोग करती हैं।
प्रदूषण भी इसी प्रक्रिया से बढ़ता है, क्योंकि औद्योगिक कचरा समुद्रों में डाला जाता है, वायु और जल प्रदूषण सीमाओं को पार कर दूसरे देशों को प्रभावित करता है और वैश्विक तापमान बढ़ाने वाले उत्सर्जन धरती की जलवायु को अस्थिर कर देते हैं। इस प्रकार सांझी विरासत का संरक्षण न केवल पर्यावरणीय आवश्यकता है बल्कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर आधारित एक नैतिक कर्तव्य भी है।

अथवा

विभिन्न देशों के सामने सबसे गंभीर चुनौती वैश्विक पर्यावरण को आगे कोई नुकसान पहुँचाए बगैर आर्थिक विकास करने की है। यह कैसे हो सकता है? कुछ उदाहरण के साथ समझाएँ।
उत्तर – पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना आर्थिक विकास के लिए देशों को सतत विकास की दिशा में बढ़ना आवश्यक है, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का विस्तार, ऊर्जा दक्षता में सुधार, स्वच्छ औद्योगिक तकनीकों का उपयोग, परिवहन क्षेत्र में उत्सर्जन घटाने, तथा जल और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को मजबूत करना शामिल है। सतत विकास ऐसी विकास प्रक्रिया है जिसमें वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताएँ पूरी होती हैं, पर भविष्य की पीढ़ियों के संसाधनों को क्षति नहीं पहुँचती। इसके लिए उद्योगों को हरित प्रौद्योगिकियाँ अपनाने पर कर प्रोत्साहन, पर्यावरणीय मानकों को कठोर बनाना, वनों का संरक्षण, संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग और अंतरराष्ट्रीय समझौतों जैसे पृथ्वी शिखर सम्मेलन व क्योटो प्रोटोकॉल का पालन आवश्यक है। डेनमार्क द्वारा सौर व पवन ऊर्जा में भारी निवेश, जर्मनी की “एनेर्जीवेंड” नीति के तहत परमाणु ऊर्जा से हटकर नवीकरणीय ऊर्जा अपनाना, तथा भारत का राष्ट्रीय सौर मिशन और स्वच्छ ऊर्जा कार्यक्रम ऐसे सफल उदाहरण हैं, जहाँ आर्थिक विकास को पर्यावरण संरक्षण के साथ संतुलित किया गया है।

37. किसी राष्ट्र का राजनीतिक नेतृत्व किस तरह उस राष्ट्र की विदेश नीति पर असर डालता है? भारत की विदेश नीति का उदाहरण देते हुए, इस प्रश्न पर विचार कीजिए।
उत्तर – किसी राष्ट्र की विदेश नीति केवल अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का परिणाम नहीं होती, बल्कि राजनीतिक नेतृत्व की विचारधारा, प्राथमिकताएँ और विश्व-दृष्टिकोण से गहराई से प्रभावित होती है। भारत की विदेश नीति में विभिन्न प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल के दौरान हुए बदलाव साफ़ दिखाते हैं कि नेतृत्व की शैली, निर्णय क्षमता और वैश्विक समझ विदेश नीति को नई दिशा देने में सक्षम होती है।
• भारत के उदाहरण सहित राजनीतिक नेतृत्व का विदेश नीति पर प्रभाव :
(i) नेतृत्व की विचारधारा विदेश नीति की मूल दिशा तय करती है – नेहरू की आदर्शवादी सोच ने भारत को गुटनिरपेक्ष आंदोलन का संस्थापक बनाया, जिससे भारत ने शीत युद्ध की राजनीति में किसी भी शक्ति-गुट का हिस्सा बने बिना स्वतंत्र पहचान और रणनीतिक स्वायत्तता कायम रखी।
(ii) राष्ट्रीय सुरक्षा पर नेता का दृष्टिकोण विदेश नीति को प्रभावित करता है – लालबहादुर शास्त्री ने व्यावहारिक और दृढ़ रुख अपनाया। 1965 के युद्ध और संकटों के दौरान सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं करेगा।
(iii) सामरिक प्राथमिकताओं के आधार पर विदेश नीति का पुनर्गठन – इंदिरा गांधी के समय विदेश नीति शक्ति-राजनीति और सुरक्षा हितों पर केंद्रित हुई। 1971 में सोवियत संघ के साथ मैत्री संधि और बांग्लादेश मुक्ति संघर्ष में निर्णायक भूमिका इसका प्रमुख उदाहरण है।
(iv) आर्थिक दृष्टिकोण विदेश नीति को नई दिशा देता है – 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद नेतृत्व ने विदेश नीति को वैश्विक व्यापार, पूँजी निवेश, तकनीकी सहयोग और आर्थिक कूटनीति की ओर मोड़ा। यह परिवर्तन राजीव गांधी और उसके बाद के प्रधानमंत्रियों की आधुनिक और तकनीक-उन्मुख सोच से प्रेरित था।
(v) समकालीन नेतृत्व रणनीतिक साझेदारियों और क्षेत्रीय जुड़ाव को महत्व देता है – वर्तमान नेतृत्व (नरेंद्र मोदी) ने ‘नेबरहुड फर्स्ट’, ‘एक्ट ईस्ट’ नीति, क्वाड सहयोग, इंडो-पैसिफिक दृष्टिकोण और अमेरिका-जापान-यूरोप जैसे देशों से घनिष्ठ संबंधों को मजबूत कर भारत की वैश्विक भूमिका को अधिक सक्रिय, व्यापक और प्रभावशाली बनाया है।

अथवा

भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों की व्याख्या करें।
उत्तर – भारत-पाकिस्तान सम्बन्ध आरंभ से ही जटिल, संवेदनशील और उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं। विभाजन के समय उत्पन्न राजनीतिक अविश्वास, कश्मीर विवाद, सीमा तनाव, और आतंकवाद जैसी प्रमुख समस्याओं ने दोनों देशों के बीच स्थायी शांति को हमेशा चुनौती दी है। 1947 से अब तक कई युद्ध, कूटनीतिक ठहराव, वार्ताएँ और शांति प्रयास हुए, जिनसे संबंध कभी सुधरे तो कभी फिर तनावपूर्ण हो गए।
• मुख्य मुद्दे और घटक :
(i) कश्मीर विवाद – 1947 के विभाजन के बाद से कश्मीर भारत-पाक तनाव का सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। इसी विवाद के कारण 1947-48, 1965 और 1999 (कारगिल) में संघर्ष हुए। भारत इसे अपना अभिन्न हिस्सा मानता है जबकि पाकिस्तान इसके भविष्य को अलग ढंग से देखता है, जिससे विवाद लगातार बना रहता है।
(ii) युद्ध और सैन्य तनाव – 1947, 1965 और 1971 के तीन युद्ध तथा कारगिल संघर्ष के साथ-साथ नियंत्रण रेखा पर लगातार होने वाले तनावों ने द्विपक्षीय संबंधों को अस्थिर बनाए रखा। सैन्य अविश्वास दोनों देशों की विदेश नीति को हमेशा प्रभावित करता रहा है।
(iii) आतंकवाद की चुनौती – 1990 के दशक के बाद पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी गतिविधियाँ भारत-पाक संबंधों की सबसे बड़ी बाधा बनीं। 2001 का भारतीय संसद हमला और 2008 का मुंबई हमला भारत की शांति प्रक्रिया को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाली घटनाएँ रहीं।
(iv) शांति प्रयास और समझौते – ताशकंद समझौता (1966), शिमला समझौता (1972) और 1999 की लाहौर बस यात्रा जैसे प्रयासों ने संवाद और विश्वास बहाली की दिशा में कदम बढ़ाए, लेकिन राजनीतिक माहौल और सुरक्षा चिंताओं के कारण ये प्रयास स्थायी परिणाम नहीं दे सके।
(v) सांस्कृतिक और मानवीय जुड़ाव – धार्मिक यात्राएँ, क्रिकेट, फिल्में, सांस्कृतिक कार्यक्रम और हाल में बना करतारपुर कॉरिडोर लोगों को जोड़ने का माध्यम रहे हैं। हालांकि राजनीतिक तनाव और सुरक्षा मुद्दों के कारण ये जन-संबंध भी पूरी तरह विकसित नहीं हो पाए।

38. पंजाब समझौते के मुख्य प्रावधान क्या थे? क्या ये प्रावधान पंजाब और उसके पड़ोसी राज्यों के बीच तनाव बढ़ाने के कारण बन सकते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर – पंजाब समझौता (जिसे राजीव-लोंगोवाल समझौता भी कहा जाता है) 1985 में भारत सरकार और पंजाब के नरमपंथी अकाली दल के बीच की गई एक महत्वपूर्ण राजनीतिक समझौता थी, जिसका उद्देश्य पंजाब में उग्रवाद और अशांति को कम करना था। इस समझौते के तहत कई मुख्य प्रावधान किए गए, जो पंजाब और उसके पड़ोसी राज्यों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए बनाए गए थे।
• पंजाब समझौते के मुख्य प्रावधान :
(i) चंडीगढ़ का हस्तांतरण – चंडीगढ़, जो कि पंजाब और हरियाणा का सांझा केंद्र शासित प्रदेश है, उसे पंजाब को सौंपने का निर्णय लिया गया। यह प्रावधान पंजाब के लोगों की एक मुख्य मांग थी, क्योंकि वे चंडीगढ़ को पंजाब की राजधानी मानते थे।
(ii) सीमा विवाद के लिए आयोग का गठन – पंजाब और हरियाणा के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक विशेष आयोग का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य विवादित क्षेत्रों को लेकर मतभेद खत्म करना था।
(iii) नदी जल बंटवारा – रावी और ब्यास नदियों के जल संसाधनों के बंटवारे के लिए पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच एक न्यायाधिकरण स्थापित किया गया, ताकि पानी के उचित आवंटन को सुनिश्चित किया जा सके।
(iv) सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम को वापस लेना – पंजाब में सुरक्षा को बढ़ाने के लिए लागू यह अधिनियम वापस लिया गया, जिससे सामान्य कानून व्यवस्था बहाल हो सके।
(v) राजनीतिक कैदियों की रिहाई और मुआवजा – शांति प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने के लिए राजनीतिक कैदियों को रिहा करने और हिंसा से प्रभावित लोगों को मुआवजा देने का प्रावधान रखा गया।
• समझौते से उत्पन्न तनाव और चुनौतियाँ :
(i) कार्यान्वयन में देरी – चंडीगढ़ के पंजाब को हस्तांतरण और नदी जल बंटवारे के प्रावधानों को लागू करने में देरी हुई, जिससे दोनों राज्यों में असंतोष बढ़ा और तनाव उत्पन्न हुआ।
(ii) जल बंटवारे पर विवाद – पंजाब को जल संसाधनों से अपेक्षित हिस्से को लेकर हरियाणा और राजस्थान के साथ मतभेद रहे, जिससे विवाद उभरा।
(iii) सीमा विवाद का अधूरा समाधान – आयोग द्वारा सीमा विवाद सुलझाने में पूरी सफलता नहीं मिली, जिससे भविष्य में और समस्याएँ आने की संभावना बनी।
(iv) राजनीतिक मतभेद – इस समझौते को लेकर पंजाब में अलग-अलग राजनीतिक दलों के बीच मतभेद हुए, खासकर अकाली दल में विभाजन देखा गया।

अथवा

क्षेत्रीयवाद से क्या अभिप्राय है? क्षेत्रीयवाद के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – क्षेत्रीयवाद का अर्थ है किसी विशेष क्षेत्र के प्रति गहरा लगाव और पक्षपात। यह एक ऐसी राजनीतिक और सांस्कृतिक भावना है जिसमें लोग अपने क्षेत्र को अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक महत्व देते हैं। क्षेत्रीयवाद में लोग अपने क्षेत्र के हित, विकास, संसाधन और पहचान को सर्वोपरि मानते हैं और जब क्षेत्रीय हित और राष्ट्रीय हित टकराते हैं, तो अक्सर क्षेत्रीय हितों को प्राथमिकता दी जाती है। इसका प्रभाव केवल राजनीतिक स्तर पर ही नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी देखने को मिलता है।
• क्षेत्रीयवाद के कारण :
(i) आर्थिक असमानता – जब किसी क्षेत्र में उद्योग, रोजगार, बुनियादी सुविधाएँ और विकास की गति अन्य क्षेत्रों की तुलना में कम होती है, तो लोग भेदभाव महसूस करते हैं। पिछड़े क्षेत्रों के लोग अपने क्षेत्र के विकास, संसाधनों और अवसरों की मांग करते हैं। यह आर्थिक असमानता क्षेत्रीय भावना और क्षेत्रवाद को बढ़ावा देती है।
(ii) भौगोलिक भिन्नता – अलग-अलग भौगोलिक परिस्थितियाँ, जैसे पहाड़ी क्षेत्र, मैदानी क्षेत्र या उपजाऊ भूमि, स्थानीय जीवनशैली और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती हैं। इन भिन्नताओं के कारण प्रत्येक क्षेत्र के अपने हित, समस्याएँ और प्राथमिकताएँ होती हैं, जो क्षेत्रीय भावनाओं को मजबूत करती हैं।
(iii) भाषाई और सांस्कृतिक एकता – किसी क्षेत्र की विशिष्ट भाषा, संस्कृति, परंपरा, त्यौहार और पहचान लोगों को एकजुट करती है। लोग अपनी सांस्कृतिक और भाषाई पहचान को सुरक्षित रखने और महत्व देने के लिए क्षेत्रीय भावनाओं को बढ़ावा देते हैं। उदाहरण के लिए, भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन भी इसी भावना का परिणाम था।
(iv) राजनीतिक स्वार्थ – राजनीतिक नेता अक्सर लोगों की क्षेत्रीय भावनाओं का लाभ उठाकर सत्ता या समर्थन पाने के लिए क्षेत्रवाद को बढ़ावा देते हैं। वे क्षेत्रीय असमानताओं और स्थानीय समस्याओं को उजागर करके अपने पक्ष में मतदाता समर्थन जुटाते हैं।
(v) ऐतिहासिक कारण – भारत के विभिन्न हिस्सों में ऐतिहासिक रूप से अलग शासन, सभ्यताएँ, सामाजिक संगठन और संसाधन वितरण ने भी क्षेत्रीय पहचान को मजबूत किया। औपनिवेशिक काल की नीतियों और स्वतंत्रता के बाद राज्य पुनर्गठन आंदोलनों ने भी क्षेत्रवाद को जन्म दिया।

39. भारत के नागरिक के रूप में सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के पक्ष का समर्थन आप कैसे करेंगे? अपने प्रस्ताव का औचित्य सिद्ध करें।
उत्तर – एक भारतीय नागरिक के रूप में, सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के पक्ष में समर्थन निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है, जिसका औचित्य भारत की लोकतांत्रिक पहचान, आर्थिक और सैन्य शक्ति, संयुक्त राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता और वैश्विक मंच पर उसकी विविध भूमिका है।
• प्रस्ताव का औचित्य :
(i) विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र – भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इसकी स्थायी सदस्यता से वैश्विक मंच पर लोकतांत्रिक मूल्यों, न्याय और समानता को बढ़ावा मिलेगा। इससे अंतरराष्ट्रीय निर्णयों में लोकतांत्रिक दृष्टिकोण को बल मिलेगा और दुनिया में भारत की जिम्मेदार भूमिका मजबूत होगी।
(ii) आर्थिक और सैन्य शक्ति – भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और सशक्त सैन्य क्षमता इसे वैश्विक शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने में सक्षम बनाती है। इसकी आर्थिक ताकत और सैन्य क्षमता अंतरराष्ट्रीय निर्णयों और सुरक्षा चुनौतियों में भारत की प्रभावशीलता को बढ़ाती है।
(iii) संयुक्त राष्ट्र में सक्रिय भागीदारी – भारत ने शांति स्थापना अभियानों, विकास परियोजनाओं और अंतरराष्ट्रीय सहयोग में लगातार महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसकी सदस्यता इसे वैश्विक निर्णयों में और प्रभावी भागीदारी का अवसर देगी।
(iv) विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व – भारत विकासशील देशों की आवाज़ के रूप में कार्य करता है। इसकी स्थायी सदस्यता से वैश्विक दक्षिण का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा और अंतरराष्ट्रीय निर्णयों में न्यायपूर्ण दृष्टिकोण सुनिश्चित होगा।
(v) बहुसांस्कृतिक और बहुभाषी पहचान – भारत की विविध संस्कृति, भाषाएँ और परंपराएँ विभिन्न देशों और संस्कृतियों के बीच बेहतर संवाद स्थापित करने में मदद करती हैं।
(vi) वैश्विक शांति और स्थिरता में योगदान – भारत दक्षिण एशिया और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसकी स्थायी सदस्यता से अंतरराष्ट्रीय संकटों का समाधान तेजी और जिम्मेदारीपूर्ण ढंग से किया जा सकेगा।

अथवा

संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन एवम् उसमें निहित अंगों की विस्तारपूर्वक चर्चा करें।
उत्तर – संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) एक विश्वव्यापी अंतरराष्ट्रीय संगठन है, जिसे शांति, सुरक्षा, विकास, मानवाधिकार और देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिए स्थापित किया गया। इसमें दुनिया के अधिकांश देश शामिल हैं और इसका संगठनात्मक ढांचा विभिन्न अंगों के माध्यम से कार्य करता है। यह संगठन वैश्विक मुद्दों पर सभी देशों को एक मंच प्रदान करता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समन्वित कार्रवाई सुनिश्चित करता है।
• मुख्य अंग :
(i) महासभा – महासभा सभी सदस्य देशों का मुख्य मंच है। इसमें प्रत्येक देश को एक वोट का अधिकार प्राप्त है। महासभा संगठन की नीतियों, बजट और महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करती है और प्रस्ताव पारित करती है। पास किए गए प्रस्ताव नैतिक और राजनयिक रूप से महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन बाध्यकारी नहीं होते। महासभा अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने और विश्व समुदाय में समानता सुनिश्चित करने का कार्य करती है।
(ii) सुरक्षा परिषद – सुरक्षा परिषद का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना है। इसमें कुल 15 सदस्य होते हैं, जिनमें 5 स्थायी सदस्य (रूस, चीन, अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन) और 10 अस्थायी सदस्य (दो वर्ष की अवधि के लिए) शामिल हैं। परिषद निर्णायक और बाध्यकारी निर्णय ले सकती है, जैसे युद्ध का आदेश देना, प्रतिबंध लगाना या शांतिपूर्ण समाधान के उपाय सुझाना। यह परिषद वैश्विक सुरक्षा संकटों में त्वरित कार्रवाई करने में सक्षम है।
(iii) आर्थिक और सामाजिक परिषद – यह परिषद वैश्विक आर्थिक, सामाजिक और मानवीय मुद्दों पर कार्य करती है। यह विभिन्न एजेंसियों और समितियों का नेतृत्व करती है तथा विकास योजनाओं के कार्यान्वयन और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को सुनिश्चित करती है। परिषद का उद्देश्य दुनिया में सामाजिक और आर्थिक समानता स्थापित करना और विकासशील देशों की सहायता करना है।
(iv) अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय – अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय देशों के बीच विवादों का कानूनी समाधान करता है और अंतरराष्ट्रीय संधियों की व्याख्या करता है। इसका मुख्यालय नीदरलैंड्स के हेग में स्थित है। यह न्यायालय अंतरराष्ट्रीय कानून के पालन को सुनिश्चित करता है और देशों के बीच शांति बनाए रखने में योगदान देता है।
(v) सचिवालय – सचिवालय संगठन का प्रशासनिक अंग है। इसका नेतृत्व महासचिव करते हैं। सचिवालय संगठन के दैनिक कार्यों, कार्यक्रमों और नीतियों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करता है। यह सदस्य देशों के बीच संपर्क और समन्वय स्थापित करने का कार्य भी करता है।
(vi) न्यासी परिषद – इसकी स्थापना स्वतंत्रता प्राप्त देशों और क्षेत्रों के प्रशासन और विकास के लिए की गई थी। वर्तमान में यह परिषद निष्क्रिय है। इसका कार्य उन क्षेत्रों में शासन और प्रशासन की निगरानी करना था जो स्वतंत्र नहीं हुए थे।

40. वैश्वीकरण ने भारत को कैसे प्रभावित किया है और भारत कैसे वैश्वीकरण को प्रभावित कर रहा है?
उत्तर – वैश्वीकरण ने भारत को गहराई से प्रभावित किया है और भारत ने भी वैश्वीकरण की दिशा और गति को अपनी विशिष्ट भूमिका से प्रभावित किया है। इसके कारण भारत की अर्थव्यवस्था, समाज और संस्कृति पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव दोनों पड़े हैं।
• भारत पर वैश्वीकरण का प्रभाव:
(i) आर्थिक प्रभाव – वैश्वीकरण के कारण भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि हुई और आईटी, सेवा तथा विनिर्माण क्षेत्रों का तेजी से विकास हुआ। इससे रोजगार के नए अवसर सृजित हुए और भारतीय कंपनियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ी। हालांकि, छोटे घरेलू उद्योग और पारंपरिक व्यवसाय वैश्विक प्रतिस्पर्धा के दबाव में कमजोर पड़ गए और आर्थिक असमानता बढ़ी। इसके साथ ही, आधुनिक तकनीक और वैश्विक बाजार के साथ जुड़ाव ने भारत की आर्थिक संरचना को और अधिक प्रतिस्पर्धी और गतिशील बनाया।
(ii) सामाजिक प्रभाव – वैश्वीकरण ने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार लाया और उपभोक्ताओं के लिए अधिक उत्पाद और सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की। जीवनशैली में बदलाव आया और तकनीकी एवं डिजिटल सुविधाओं का विस्तार हुआ। इसके बावजूद, ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में असमानता बढ़ी और पारंपरिक मूल्यों पर दबाव पड़ा। वैश्वीकरण ने युवाओं के लिए वैश्विक अवसरों के साथ-साथ चुनौतीपूर्ण प्रतिस्पर्धा भी उत्पन्न की।
(iii) सांस्कृतिक प्रभाव – भारतीय संस्कृति, योग, पारंपरिक कलाएँ, फिल्में और संगीत वैश्विक स्तर पर फैल गए और यह देश की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करता है। साथ ही, पश्चिमी जीवनशैली, मीडिया और विदेशी उत्पादों का प्रभाव कुछ क्षेत्रों में भारतीय संस्कृति और परंपराओं पर दबाव डालता है। इससे समाज में पारंपरिक और आधुनिक मूल्यों के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती उत्पन्न हुई।
• भारत का वैश्वीकरण पर प्रभाव :
(i) आर्थिक प्रभाव – भारत बड़े बाजार और मजबूत निर्यात टोकरी के कारण विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक बन गया है। भारतीय कंपनियों जैसे टाटा, इंफोसिस और विप्रो ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार किया और वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की भूमिका को मजबूत किया। इसके अलावा, भारत वैश्विक व्यापार और निवेश नीतियों पर भी प्रभाव डाल रहा है।
(ii) सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव – भारत की कुशल और शिक्षित श्रम शक्ति विश्व स्तर पर काम कर रही है। भारतीय फिल्में (बॉलीवुड), संगीत (इंडी-पॉप और पारंपरिक मिश्रण) और योग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हुए हैं, जिससे भारत की सांस्कृतिक पहचान और वैश्विक प्रभाव बढ़ा है। भारत अपनी विविध संस्कृति और बहुसांस्कृतिक समाज के माध्यम से वैश्विक मंच पर संवाद और सहयोग को भी प्रोत्साहित कर रहा है।

अथवा

वैश्वीकरण का अर्थ तथा इसके सकारात्मक व नकारात्मक पक्षों का वर्णन करें।
उत्तर – वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से दुनिया के विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाएँ, समाज, राजनीति और संस्कृतियाँ आपस में गहराई से जुड़ती हैं। इसमें माल, सेवाओं, पूंजी, जानकारी और विचारों का राष्ट्रीय सीमाओं के पार स्वतंत्र प्रवाह शामिल होता है। यह वैश्विक सहयोग, अंतरराष्ट्रीय व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है।
• वैश्वीकरण के सकारात्मक पक्ष :
(i) आर्थिक विकास – देशों के बीच व्यापार और निवेश बढ़ने से उद्योग, उत्पादन और सेवाओं का विस्तार होता है। इससे देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा बढ़ती है।
(ii) रोजगार के अवसर – विदेशी कंपनियों और बहुराष्ट्रीय संस्थाओं के निवेश से नए रोजगार के अवसर उत्पन्न होते हैं, जिससे युवाओं के लिए नए विकल्प और करियर के अवसर मिलते हैं।
(iii) तकनीकी और नवाचार में प्रगति – नई तकनीक और आधुनिक विचारों का आदान-प्रदान होता है, जिससे उत्पादन क्षमता, गुणवत्ता और दक्षता में सुधार होता है।
(iv) सांस्कृतिक आदान प्रदान – विभिन्न देशों और संस्कृतियों के मेल-जोल से वैश्विक समझ और आपसी सहयोग बढ़ता है। भारतीय संस्कृति, योग, कला और फिल्में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलती हैं।
(v) उपभोक्ताओं के लिए लाभ – वैश्विक बाजार में उपलब्ध विविध उत्पादों और सेवाओं के कारण उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प और बेहतर गुणवत्ता मिलती है।
• वैश्वीकरण के नकारात्मक पक्ष :
(i) आर्थिक असमानता – वैश्वीकरण अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ा सकता है, जिससे समाज में असमानता और विकास में असंतुलन उत्पन्न होता है।
(ii) स्थानीय उद्योगों पर दबाव – बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कड़ी प्रतिस्पर्धा छोटे और पारंपरिक उद्योगों के लिए चुनौती बनती है और वे कमजोर हो सकते हैं।
(iii) सांस्कृतिक समरूपता – पश्चिमी जीवनशैली और वैश्विक मीडिया का प्रभाव स्थानीय संस्कृति और परंपराओं पर दबाव डाल सकता है, जिससे सांस्कृतिक विविधता कम हो सकती है।
(iv) श्रम शोषण – लागत कम करने के लिए कंपनियाँ ऐसे देशों में उत्पादन करती हैं जहाँ श्रमिकों को कम वेतन मिलता है और सुरक्षा मानक कमजोर होते हैं।
(v) राष्ट्रीय निर्णयों पर प्रभाव – बहुराष्ट्रीय कंपनियों और वैश्विक दबावों के कारण सरकारों की निर्णय लेने की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है, जिससे राष्ट्रीय नीतियों पर नियंत्रण कम हो सकता है।