HBSE Class 12 Music Question Paper 2024 Answer Key

Haryana Board (HBSE) Class 12 Music Question Paper 2024 with a fully solved answer key. Students can use this HBSE Class 12 Music Solved Paper to match their responses and understand the question pattern. This BSEH Music Answer Key 2024 is based on the latest syllabus and exam format to support accurate preparation and revision for the board exams.

HBSE Class 12 Music Question Paper 2024 Answer Key

1. धमार ताल को किस गायन शैली के साथ बजाया जाता है?
(A) ख्याल
(B) ठुमरी
(C) ध्रुपद
(D) धमार
उत्तर – (D) धमार

2. ‘संधिप्रकाश राग’ कब गाये बजाये जाते हैं?
(A) 4 से 7 बजे तक
(B) 7 से 10 बजे तक
(C) 10 से 1 बजे तक
(D) 1 से 4 बजे तक
उत्तर – (A) 4 से 7 बजे तक

3. थाट राग पद्धति के आविष्कारक कौन हैं?
(A) पं० विष्णु दिगम्बर
(B) पं० विष्णु नारायण
(C) पं० अहोबल
(D) पं० शारंगदेव
उत्तर – (B) पं० विष्णु नारायण (पं० विष्णु नारायण भातखंडे)

4. सात स्वरों का क्रमानुसार आरोह-अवरोह क्या कहलाता है?
(A) वर्ण
(B) गमक
(C) मूर्च्छना
(D) ग्राम
उत्तर – (C) मूर्च्छना

5. ध्रुपद की …………… वाणियाँ हैं।
उत्तर – चार

6. मींड, मुर्की, खटका इत्यादि ………….. के आधुनिक नाम हैं।
उत्तर – गमक

7. अभिकथन (A) : भैरव एक संधिप्रकाश राग है।
कारण (R) : भैरव प्रातः 4 बजे से 7 बजे के बीच गाया बजाया जाता है।
(A) अभिकथन (A) और कारण (R) दोनों सत्य हैं और कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या है।
(B) अभिकथन (A) और कारण (R) दोनों सत्य हैं, लेकिन कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या नहीं है।
(C) अभिकथन (A) सत्य है, लेकिन कारण (R) असत्य है।
(D) अभिकथन (A) असत्य है, लेकिन कारण (R) सत्य है।
उत्तर – (A) अभिकथन (A) और कारण (R) दोनों सत्य हैं और कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या है।

8. अभिकथन (A) : एकताल तबला के बंधे बोलों की ताल है।
कारण (R) : एकताल का प्रयोग ध्रुपद गायन के साथ किया जाता है।
(A) अभिकथन (A) और कारण (R) दोनों सत्य हैं और कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या है।
(B) अभिकथन (A) और कारण (R) दोनों सत्य हैं, लेकिन कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या नहीं है।
(C) अभिकथन (A) सत्य है, लेकिन कारण (R) असत्य है।
(D) अभिकथन (A) असत्य है, लेकिन कारण (R) सत्य है।
उत्तर – (B) अभिकथन (A) और कारण (R) दोनों सत्य हैं, लेकिन कारण (R), अभिकथन (A) की सही व्याख्या नहीं है।

9. कॉलम-1 और कॉलम-2 का मिलान करके सही विकल्प का चयन करें :

कॉलम-1कॉलम-2
क. वर्ण1. इक्कीस
ख. ग्राम2. चार
ग. मूर्छना3. पन्द्रह
घ. गमक4. तीन

(A) क-3, ख-1, ग-4, घ-2
(B) क-2, ख-3, ग-1, घ-4
(C) क-2, ख-4, ग-1, घ-3
(D) क-1, ख-3, ग-2, घ-4
उत्तर – (C) क-2, ख-4, ग-1, घ-3

10. कॉलम-1 और कॉलम-2 का मिलान करके सही विकल्प का चयन करें :

कॉलम-1कॉलम-2
क. थाट1. नहीं गाये जाते
ख. राग2. सीमित हैं
ग. थाटों की संख्या3. असीमित हैं
घ. रागों की संख्या4. गाये जाते हैं

(A) क-4, ख-2, ग-3, घ-1
(B) क-1, ख-4, ग-2, घ-3
(C) क-2, ख-1, ग-3, घ-4
(D) क-1, ख-2, ग-4, घ-3
उत्तर – (B) क-1, ख-4, ग-2, घ-3

11. लक्षण गीत में स्थाई एवं अन्तरा दो भाग होते हैं। (सही / गलत)
उत्तर – सही

12. भातखण्डे स्वरलिपि पद्धति दक्षिण भारत में प्रचलित है। (सही / गलत)
उत्तर – गलत (भातखण्डे स्वरलिपि पद्धति उत्तर भारत में प्रचलित है, दक्षिण भारत में कर्नाटक संगीत की पद्धति प्रचलित है)

13. गाने की क्रिया को क्या कहते हैं?
उत्तर – गायन

14. षडज ग्राम का आरंभिक स्वर कौन-सा है?
उत्तर – षडज (सा)

15. मूर्छनाओं की उत्पत्ति किससे होती है?
उत्तर – सात स्वरों के आरोह-अवरोह क्रम से

16. राग के विस्तार के लिए किसका प्रयोग करते हैं?
उत्तर – आलाप

17. जो स्वर रचना और पद्य रचना दोनों में निपुण हो, ऐसे संगीत विद्वान को क्या कहते हैं?
उत्तर – वाग्गेयकार

18. झपताल में जो ध्रुपद गाये जाते हैं, उन्हें क्या कहते हैं?
उत्तर – साद्रा

19. अपने पाठ्यक्रम की समान मात्राओं वाली तालों का नाम लिखिए।
उत्तर – एकताल और चौताल (दोनों 12 मात्राओं के)

20. एकताल में अधिकतर क्या गाये जाते हैं?
उत्तर – विलंबित ख्याल (धीमी लय का ख्याल)

21. भारतीय संगीत में स्वरलिपि का क्या महत्त्व है? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर – भारतीय संगीत में स्वरलिपि का महत्व संगीत को संरक्षित और संवर्धित करना है। यह संगीत के स्वर, ताल और लय को लिखित रूप में दर्ज करती है, जिससे इसे समान मानकीकरण मिलता है और संगीत की विरासत को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाया जा सकता है। स्वरलिपि संगीत के गणितीय और तार्किक स्वरूप को समझने में भी मदद करती है।

22. ध्रुपद किसे कहते हैं? इसके उद्भव पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए, इसकी वाणियों के नाम लिखें।
उत्तर – ध्रुपद भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्राचीन गायन शैली है, जिसकी जड़ें सामवेद के सामगान में हैं, जिसे लय और ताल के साथ गाया जाता था। सामगान से विकसित होकर यह प्रबंध और छंद शैलियों में विकसित हुआ, जिससे ध्रुपद का उद्भव हुआ। इसका उल्लेख प्राचीन और मध्यकालीन ग्रंथों जैसे ‘नाट्यशास्त्र’ में मिलता है। ध्रुपद गायन की चार पारंपरिक वाणियाँ हैं: खंडारी, नोहरी (या नोहर), गौरहारी और डागुर, जो इस शैली की विविधता और संरचना को दर्शाती हैं।

23. गायकों के दो गुणों एवं दो अवगुणों पर संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर : गुण – गायकों की आवाज़ मधुर और स्थिर होती है, जिससे वे सुर और लय में सही संतुलन बनाए रख सकते हैं। साथ ही, एक अच्छा गायक सुर और ताल को ध्यानपूर्वक सुनने वाला श्रोता भी होता है, जो संगीत को अधिक भावपूर्ण और सटीक प्रस्तुत करने में मदद करता है।
• अवगुण – कुछ गायकों में गलत उच्चारण की आदत होती है, जो गीत की स्पष्टता और समझ को प्रभावित करती है। इसके साथ ही, कुछ गायकों के बेसुरे स्वर होते हैं, जो संगीत की सौंदर्यात्मक गुणवत्ता और प्रभाव को कम कर देते हैं।

24. रागों के समय सिद्धान्त में अध्वदर्शक स्वर का क्या महत्त्व है? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर – रागों के समय सिद्धांत में अध्वदर्शक स्वर वह स्वर है जो यह निर्धारित करता है कि कोई राग दिन में या रात में गाया जाएगा। इसमें मध्यम (म) स्वर का विशेष महत्व है, क्योंकि यह तय करने में मदद करता है कि राग सुबह/दिन के समय का है या शाम/रात के समय का, जिससे राग का भाव और प्रभाव श्रोता पर सही रूप से प्रकट होता है।

25. झपताल का संक्षिप्त शास्त्रीय परिचय देते हुए इसे एकगुन व दुगुन लयकारियों में लिखें।
उत्तर – झपताल 10 मात्रा की एक प्रसिद्ध ताल है, जिसके विभाग 2-3-2-3 मात्राओं के हैं। इसमें पहली, तीसरी और आठवीं मात्रा पर ताली और छठी मात्रा पर खाली होती है। यह ताल ख्याल और तबला एकल में प्रयोग होती है और मध्य लय में बजाई जाती है।
एकगुन (सामान्य लय):
ठेका: धीं ना | धीं धीं ना | ती ना | धीं धीं ना | (खाली)
दुगुन (दोगुनी लय):
ठेका: धीं-धीं ना-ना | धीं-धीं धीं-धीं ना-ना | ती-ती ना-ना | धीं-धीं धीं-धीं ना-ना | (खाली)

26. राग बिहाग अथवा भूपाली का शास्त्रीय परिचय लिखते हुए इसके छोटे ख्याल की स्वरलिपि लिखें।
उत्तर –

राग बिहाग

राग बिहाग हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक अत्यंत मधुर और लोकप्रिय राग है, जो बिलावल ठाट से उत्पन्न होता है। इसकी जाति औडव-सम्पूर्ण है, अर्थात् आरोह में पाँच और अवरोह में सात स्वर होते हैं। इस राग में रे और ध स्वर आरोह में नहीं आते, जबकि अन्य स्वर शुद्ध होते हैं। कभी-कभी तीव्र माध्यम (तेज़ म) स्वर का भी प्रयोग विवादी स्वर के रूप में किया जाता है। राग बिहाग का वादी स्वर ग और संवादी स्वर निषाद (नि) है। इसका गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर माना जाता है।
यह राग मुख्यतः ख्याल, ताना और ध्रुपद शैली में गाया जाता है। इसका स्वरूप मधुर, गंभीर और आकर्षक है, जिसमें विशेष रूप से नि स्वर का खुला और आकर्षक प्रयोग राग की पहचान है। राग बिहाग के स्वर समूह में अक्सर प म ग म ग का क्रम प्रमुख रहता है।
विशेषताएँ:
ठाट: बिलावल
जाति: औडव-सम्पूर्ण
वादी स्वर: गंधार (ग)
संवादी स्वर: निषाद (नि)
आरोह: सा ग म प नि सा’
अवरोह: सा’ नि ध प म ग रे सा
गायन समय: रात्रि का द्वितीय प्रहर
वरजित स्वर: रे, ध (आरोह में)
राग बिहाग – छोटा ख्याल (स्वरलिपि)
ताल: त्रिताल
सा ग म प म ग प | म ग रे सा नि ध प |
म ग म ग | म ग रे सा ||

अथवा

भूपाली

राग भूपाली हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत का एक अत्यंत प्रसिद्ध और मधुर राग है, जो मुख्यतः भक्ति और शांति भाव व्यक्त करता है। यह राग कृत ठाट का है और संध्या या रात के प्रथम प्रहर में गाया जाता है। भूपाली राग की विशेषता यह है कि इसमें पंचमुक्त सप्तक (मध्यम और निषाद अनुपस्थित) होते हैं, अर्थात् स्वर होते हैं: सा, रे, ग, प, ध, सा’।
इस राग में स्वर सा, रे, ग, प, ध शुद्ध होते हैं और म (मध्यम) तथा नि (निषाद) का प्रयोग नहीं होता। राग भूपाली का वादी स्वर गंधार (ग) और संवादी स्वर पंचम (प) है। इसका स्वरूप सरल, मधुर और आकर्षक है। यह राग मुख्यतः ख्याल, भजन और ठुमरी शैलियों में गाया जाता है।
विशेषताएँ:
ठाट: कृत
जाति: पूर्ण (सप्तक)
वादी स्वर: ग (गंधार)
संवादी स्वर: प (पंचम)
आरोह: सा रे ग प ध सा’
अवरोह: सा’ ध प ग रे सा
गायन समय: संध्या/रात्रि का प्रथम प्रहर
छोटा ख्याल – स्वरलिपि (ताल: त्रिताल)
सा रे ग | प ध सा’ |
सा’ ध प | ग रे सा ||

27. पं० ओंकारनाथ ठाकुर अथवा पंडित जसराज का जीवन परिचय लिखते हुए, संगीत के प्रति उनके योगदान की चर्चा करें।
उत्तर –

पं० ओंकारनाथ ठाकुर

जीवन परिचय :
• जन्म और परिवार – पं० ओंकारनाथ ठाकुर का जन्म 24 जून 1897 को गुजरात के बड़ौदा के पास जहाज नामक गाँव में हुआ। वे ग्वालियर घराने से संबंधित थे और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा पं० विष्णु दिगंबर पलुस्कर के निर्देशन में प्राप्त की।
• प्रारंभिक जीवन और शिक्षा – उनके बचपन में ही पिता का देहांत हो गया। उनकी प्रतिभा को एक संगीत प्रेमी ने पहचान कर उन्हें मुंबई के विष्णु दिगंबर संगीत महाविद्यालय में शिक्षा के लिए भेजा।
• शिक्षक और प्रशासक – 20 वर्ष की आयु में उन्हें गंधर्व संगीत विद्यालय, लाहौर का प्राचार्य बनाया गया। बाद में वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संगीत संकाय के प्रथम डीन बने और संगीत शिक्षा को व्यवस्थित किया।
• विदेश में प्रदर्शन और सम्मान – उन्होंने अपनी गायकी से यूरोप के देशों जैसे जर्मनी, इटली, फ्रांस, इंग्लैंड, स्विट्जरलैंड और रूस में भारत का नाम रोशन किया।
• निधन – उनका निधन 29 दिसंबर 1967 को हुआ।

संगीत में योगदान :
• रचनात्मक योगदान – पं० ठाकुर ने संगीतशास्त्र पर आधारित महत्वपूर्ण ग्रंथ जैसे संगीतांजलि (छह खंडों में) और प्रणव भारती की रचना की।
• संगीत शिक्षा – उन्होंने संगीत निकेतन की स्थापना की और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में संगीत विभाग की स्थापना में अहम भूमिका निभाई।
• राष्ट्रीय योगदान – उन्होंने वंदे मातरम को यादगार धुन दी और इसे 15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि संसद भवन से प्रसारित किया।
• शास्त्रीय संगीत का प्रचार: अपने ओजस्वी और भावपूर्ण गायन से उन्होंने शास्त्रीय संगीत को जनता और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बनाया।

अथवा

पंडित जसराज

जीवन परिचय :
• जन्म और परिवार – पंडित जसराज का जन्म 28 जनवरी 1930 को हरियाणा के पीली मंदोरी में प्रख्यात शास्त्रीय गायक पंडित मोतीराम के घर हुआ।
• प्रारंभिक जीवन – चार साल की उम्र में पिता का निधन हो गया। उनका पालन-पोषण बड़े भाई पंडित मणिराम ने किया, जिन्होंने उन्हें संगीत की प्रारंभिक शिक्षा दी।
• संगीत यात्रा – उन्होंने तबला वादक के रूप में करियर शुरू किया, लेकिन 14 वर्ष की उम्र में गायन पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने आगरा के स्वामी वल्लभदास जी और साणंद के महाराणा जयवंत सिंह वाघेला से संगीत विशारद प्राप्त किया।
• निधन – उनका निधन 17 अगस्त 2020, अमेरिका में हुआ।

संगीत में योगदान :
• शैली और प्रभाव – पंडित जसराज की गायकी में भावनाओं की गहराई और सुरों की मधुरता थी। उन्होंने शास्त्रीय गायन को सरल और सुलभ बनाया।
• अभिव्यक्ति – उन्होंने खयाल, ठुमरी, भजन और भक्ति संगीत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई।
• मेवाती घराना – उन्होंने मेवाती घराने को विश्व स्तर पर लोकप्रिय बनाया और इसके प्रतिपादन को आगे बढ़ाया।
• शिक्षण – उन्होंने भारत, यूरोप, कनाडा और अमेरिका में कई छात्रों को संगीत सिखाया, जिनमें से कई प्रसिद्ध संगीतकार बने।
• अतिरिक्त योगदान – उन्होंने फिल्म साउंडट्रैक और एल्बम के लिए भी गायन किया और अंटार्कटिका पर प्रदर्शन करने वाले पहले भारतीय संगीतकार बने।
• सम्मान – अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ ने उनके सम्मान में एक लघु ग्रह ‘पंडितजसराज’ (2006 VP32) नामित किया।

28. आप कैसे कह सकते हैं कि मध्यकाल भारतीय संगीत का स्वर्ण युग था? चर्चा करें।
उत्तर – मध्यकाल को भारतीय संगीत का स्वर्ण युग इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस अवधि में संगीत का अभूतपूर्व और बहुआयामी विकास हुआ। भक्ति और सूफी आंदोलनों ने संगीत को आध्यात्मिक और भावनात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम बना दिया, जिसके परिणामस्वरूप कई नई रचनाएँ, वाद्य-विकास और संगीत-शैलियाँ उभरकर सामने आईं। इसी समय कई संगीत-ग्रंथों की रचना हुई और हिंदुस्तानी तथा कर्नाटक संगीत की संरचना भी अधिक स्पष्ट रूप में विकसित हुई।
विकास के प्रमुख कारण :
• धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव – भक्ति आंदोलन और इस्लामिक संस्कृति के संपर्क ने संगीत को नई दिशा प्रदान की। भजन, कीर्तन, कव्वाली और सूफी परंपरा ने संगीत को धर्म और अध्यात्म से गहरा संबंध दिया, जिससे संगीत पहले से अधिक संवेदनशील और लोकप्रिय हुआ।
• दरबारों का संरक्षण – मुगल तथा सल्तनती शासकों ने संगीतकारों और कलाकारों को शाही संरक्षण दिया। विशेषकर अकबर के शासनकाल में संगीत को असाधारण सम्मान और प्रोत्साहन मिला, जिसके कारण इस काल को “स्वर्ण युग” कहा जाता है।
• नए वाद्ययंत्र और शैलियाँ – अमीर खुसरो जैसे महान संगीतकारों ने सितार जैसे वाद्ययंत्रों के विकास में योगदान दिया और अनेक रागों का पुनर्गठन किया, जिससे संगीत अधिक समृद्ध और विविधतापूर्ण बना।
• महत्वपूर्ण संगीत-ग्रंथों की रचना – इस समय राग-तरंगिणी, संगीत पारिजात और राग तत्व विबोध जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना हुई। इन ग्रंथों ने संगीत के सिद्धांतों, राग-वर्गीकरण और ताल-व्यवस्था को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत किया।
• शास्त्रीय और लोक-संगीत का संतुलन – दरबारों में शास्त्रीय संगीत को संरक्षण मिला, जबकि लोक-संगीत अपनी परंपरा में आगे बढ़ता रहा। दोनों के मिलन से संगीत की एक जीवंत और बहुआयामी परंपरा विकसित हुई, जिसने मध्यकाल को वास्तव में भारतीय संगीत का स्वर्ण युग बना दिया।

अथवा

संगीत पारिजात ग्रंथ के लेखक कौन थे? यह ग्रंथ कब लिखा गया? यह ग्रंथ आज भी संगीत के विद्यार्थियों के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर – संगीत पारिजात के लेखक पंडित अहोबल थे, जिन्होंने यह ग्रंथ लगभग 1650 ईस्वी के आसपास रचा था। भारतीय संगीत के सिद्धांतों को वैज्ञानिक रूप में व्यवस्थित करने वाले प्रमुख ग्रंथों में इसका महत्वपूर्ण स्थान है, इसलिए यह आज भी संगीत-अध्ययन के क्षेत्र में अत्यंत मूल्यवान माना जाता है।
यह ग्रंथ आज भी इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें पहली बार वीणा के तार पर स्वरों के विभाजन की एक नई, वैज्ञानिक और सुव्यवस्थित पद्धति प्रस्तुत की गई, जिसमें बारह शुद्ध व विकृत स्वरों को स्पष्ट रूप से स्थापित किया गया। यह पद्धति आधुनिक संगीत के थाट-तंत्र, विशेषकर काफ़ी थाट, से अत्यधिक साम्य रखती है, इसलिए आधुनिक स्वर-व्यवस्था को समझने के लिए भी यह एक विश्वसनीय आधार प्रदान करती है।
इसके साथ ही संगीत पारिजात में 122 रागों का प्रामाणिक वर्णन, राग-वर्गीकरण, स्वर-विज्ञान और ताल-सिद्धांतों का विस्तृत विवेचन मिलता है, जो इसे संगीत-विद्यार्थियों के लिए एक उपयोगी तथा उन्नत संदर्भ-ग्रंथ बनाता है। इसका फ़ारसी अनुवाद 1724 ईस्वी में किया जाना इसकी विद्वतापूर्ण प्रतिष्ठा और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व को प्रमाणित करता है। यही कारण है कि यह ग्रंथ ऐतिहासिक होने के साथ-साथ आधुनिक संगीत-शिक्षा और शोध के लिए आज भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण माना जाता है।