Haryana Board (HBSE) Class 12 Economics Question Paper 2024 Answer Key. BSEH (Board of School Education Haryana) Class 12 Economics Answer Key 2024. HBSE (Haryana Board of School Education) Class 12 Economics Solved Question Paper 2024. BSEH Class 12 Economics Paper 2024 Solution. Download PDF and check accurate answers carefully prepared through my personal understanding, subject knowledge, and dedication to help students based on the syllabus and exam pattern.
HBSE Class 12 Economics Question Paper 2024 Answer Key
SECTION – A
(Micro Economics : व्यष्टि अर्थशास्त्र)
1. निम्न में से कौन-सा व्यष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन है?
(A) राष्ट्रीय आय
(B) वस्तु कीमत का निर्धारण
(C) भारत में कृषि की समस्या
(D) समग्र माँग
उत्तर – (B) वस्तु कीमत का निर्धारण
2. सीमांत उपयोगिता हो सकती है :
(A) धनात्मक
(B) ऋणात्मक
(C) शून्य
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर – (D) उपरोक्त सभी
3. सही समीकरण चुनें :
(A) AR = (MR)/Q
(B) TR = (AR)/Q
(C) MR = (∆TR)/(∆Q)
(D) AR = TR × Q
उत्तर – (C) MR = (∆TR)/(∆Q)
4. सम-विच्छेद बिन्दु पर फर्म की लाभ-हानि होती है :
(A) शून्य
(B) धनात्मक
(C) ऋणात्मक
(D) कोई नहीं
उत्तर – (A) शून्य
5. संतुलन बिन्दु वह बिन्दु है जिस पर माँग व पूर्ति की शक्तियाँ होती हैं :
(A) आगे-पीछे हो जाती है
(B) बराबर नहीं होती
(C) बराबर होती है
(D) कार्य नहीं करती
उत्तर – (C) बराबर होती है
6. स्वतंत्र अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रियाओं पर …………….. का नियंत्रण होता है। (सरकार / बाजार शक्तियों)
उत्तर – बाजार शक्तियों
7. यदि पूर्ति की लोच एक से अधिक है, तो पूर्ति ……………. होती है। (बेलोचदार / लोचदार)
उत्तर – लोचदार
8. जब MR धनात्मक होता है, तो TR …………… होता है। (घटती दर से बढ़ रहा / बढ़ती दर से बढ़ रहा)
उत्तर – बढ़ती दर से बढ़ रहा
9. अभिकथन (A) : बजट रेखा के बाहर कोई भी बिन्दु अप्राप्य संयोगों को प्रकट करता है।
तर्क (R) : संतुलन की स्थिति में तटस्थता वक्र तथा कीमत रेखा एक-दूसरे को स्पर्श करते हैं।
(A) अभिकथन (A) तथा तर्क (R) दोनों सत्य हैं तथा तर्क (R), अभिकथन (A) का सही स्पष्टीकरण है।
(B) अभिकथन (A) तथा तर्क (R) दोनों सत्य हैं तथा तर्क (R), अभिकथन (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
(C) अभिकथन (A) सत्य है, परन्तु तर्क (R) असत्य है।
(D) अभिकथन (A) असत्य है, परन्तु तर्क (R) सत्य है।
उत्तर – (B) अभिकथन (A) तथा तर्क (R) दोनों सत्य हैं तथा तर्क (R), अभिकथन (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
10. अभिकथन (A) : पूर्ति तथा पूर्ति की मात्रा समरूप धारणाएँ हैं।
तर्क (R) : बाजार पूर्ति अनुसूचि से अभिप्राय समस्त उद्योग की पूर्ति अनुसूचि से है।
(A) अभिकथन (A) तथा तर्क (R) दोनों सत्य हैं तथा तर्क (R), अभिकथन (A) का सही स्पष्टीकरण है।
(B) अभिकथन (A) तथा तर्क (R) दोनों सत्य हैं तथा तर्क (R), अभिकथन (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
(C) अभिकथन (A) सत्य है, परन्तु तर्क (R) असत्य है।
(D) अभिकथन (A) असत्य है, परन्तु तर्क (R) सत्य है।
उत्तर – (D) अभिकथन (A) असत्य है, परन्तु तर्क (R) सत्य है।
11. सीमांत आगम से क्या अभिप्राय है? सीमांत आगम ज्ञात करने का सूत्र लिखें।
उत्तर – सीमांत आगम से अभिप्राय उस अतिरिक्त आय से है, जो किसी उत्पाद की एक अतिरिक्त इकाई बेचने पर प्राप्त होती है। सरल शब्दों में, यह कुल आगम में होने वाले परिवर्तन को दर्शाता है, जब बिक्री की मात्रा में एक इकाई की वृद्धि होती है।
सीमांत आगम का सूत्र: MR = ∆TR/∆Q
जहाँ,
∆TR = कुल आगम में परिवर्तन
∆Q = बिक्री की मात्रा में परिवर्तन
अथवा
कारक के प्रतिफल व पैमाने के प्रतिफल में तीन अंतर लिखें।
उत्तर –
| कारक के प्रतिफल | पैमाने के प्रतिफल |
| 1. अल्पकाल में लागू होते हैं। | 1. पैमाने के प्रतिफल दीर्घकाल में लागू होते हैं। |
| 2. कारक के प्रतिफल में केवल एक कारक बदलता है और अन्य स्थिर रहते हैं। | 2. पैमाने के प्रतिफल में सभी उत्पादन कारक समान अनुपात में बदलते हैं। |
| 3. कारक के प्रतिफल में उत्पादन का स्तर बदलता है, लेकिन पैमाना स्थिर रहता है। | 3. पैमाने के प्रतिफल में उत्पादन का पैमाना बदल जाता है। |
12. माँग के स्थिर रहने पर पूर्ति में होने वाले परिवर्तन का संतुलन कीमत पर पड़ने वाले प्रभाव को सचित्र समझाएँ।
उत्तर – माँग के स्थिर रहने पर, जब आपूर्ति बढ़ती है, तो संतुलन कीमत गिर जाती है और संतुलन मात्रा बढ़ जाती है, जबकि आपूर्ति कम होने पर संतुलन कीमत बढ़ जाती है और संतुलन मात्रा घट जाती है।

13. आर्थिक समस्या क्या है? इसके उत्पन्न होने के कारण बताएँ।
उत्तर – आर्थिक समस्या वह मूलभूत समस्या है, जो सीमित संसाधनों और असीमित मानवीय इच्छाओं के कारण उत्पन्न होती है। इसलिए अर्थशास्त्र में यह तय करना पड़ता है कि क्या उत्पादन किया जाए, कैसे किया जाए और किसके लिए किया जाए।
• आर्थिक समस्या उत्पन्न होने के मुख्य कारण :
(i) असीमित इच्छाएँ – मनुष्य की इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होतीं; एक इच्छा पूरी होने पर दूसरी जन्म ले लेती है।
(ii) सीमित संसाधन – भूमि, श्रम, पूँजी आदि संसाधन सीमित हैं, जिनसे सभी इच्छाओं की पूर्ति संभव नहीं।
(iii) संसाधनों का वैकल्पिक उपयोग – एक ही संसाधन के कई उपयोग हो सकते हैं, जैसे भूमि का उपयोग खेती या निर्माण कार्य में। इसलिए चयन आवश्यक हो जाता है।
अथवा
व्यष्टि अर्थशास्त्र की विषय सामग्री का वर्णन करें।
उत्तर – व्यष्टि अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र की वह शाखा है जिसमें समाज की छोटी-छोटी इकाइयों जैसे उपभोक्ता, परिवार, फर्म और उद्योग की आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है। इसमें यह देखा जाता है कि उपभोक्ता, उत्पादक और उद्योग अपने सीमित साधनों का उपयोग कैसे करते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य व वितरण किस प्रकार होता है।
• व्यष्टि अर्थशास्त्र की विषय-वस्तु / विषय सामग्री:
(i) माँग और उपभोक्ता व्यवहार – यह अध्ययन करता है कि उपभोक्ता अपनी आय को विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं पर कैसे खर्च करता है तथा माँग और कीमत के बीच क्या संबंध है।
(ii) उत्पादन और लागत – इसमें उत्पादक द्वारा सीमित संसाधनों से वस्तुएँ व सेवाएँ उत्पन्न करने तथा उत्पादन लागत का विश्लेषण किया जाता है।
(iii) मूल्य निर्धारण – विभिन्न बाजार परिस्थितियों (संपूर्ण प्रतियोगिता, एकाधिकार आदि) में वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें कैसे तय होती हैं, इसका अध्ययन।
(iv) कारक मूल्य निर्धारण – श्रम, पूँजी, भूमि और उद्यम जैसे उत्पादन कारकों के प्रतिफल (वेतन, ब्याज, किराया और लाभ) का निर्धारण।
14. तालिका पूरी करें :
| उत्पादन (इ०) | कुल लागत ₹ | औसत स्थिर लागत | औसत परिवर्तनशील लागत |
| 0 | 75 | ||
| 1 | 95 | ||
| 2 | 110 | ||
| 3 | 155 |
उत्तर – स्थिर लागत (FC) = 75 (जब उत्पादन शून्य)
परिवर्तनीय लागत (VC) = TC – FC
औसत स्थिर लागत (AFC) = FC ÷ उत्पादन
औसत परिवर्तनीय लागत (AVC) = VC ÷ उत्पादन
| उत्पादन (इ०) | कुल लागत ₹ | औसत स्थिर लागत (AFC) | औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) |
| 0 | 75 | –– | –– |
| 1 | 95 | 75 ÷ 1 = 75 | (95–75) ÷ 1 = 20 |
| 2 | 110 | 75 ÷ 2 = 37.5 | (110–75) ÷ 2 = 17.5 |
| 3 | 155 | 75 ÷ 3 = 25 | (155–75) ÷ 3 = 26.67 |
15. पूर्ति में वृद्धि के कारण लिखें।
उत्तर – पूर्ति में वृद्धि का अर्थ है किसी वस्तु या सेवा की वह अतिरिक्त मात्रा, जिसे उत्पादक पूर्व की तुलना में समान मूल्य पर बाजार में उपलब्ध कराने के लिए तैयार रहते हैं। यह वृद्धि विभिन्न आर्थिक, तकनीकी और प्राकृतिक कारणों से होती है।
• पूर्ति में वृद्धि के मुख्य कारण :
(i) उत्पादन लागत में कमी – यदि श्रम, कच्चा माल, बिजली, परिवहन आदि की लागत घट जाती है तो वस्तु का उत्पादन सस्ता हो जाता है। उत्पादक अधिक मात्रा में उत्पादन करके बाजार में आपूर्ति बढ़ाते हैं।
(ii) तकनीकी उन्नति – नए और आधुनिक मशीनों तथा तकनीक के उपयोग से उत्पादन दक्षता बढ़ जाती है। इससे समान संसाधनों से अधिक उत्पादन संभव होता है और पूर्ति में वृद्धि होती है।
(iii) उत्पादकों की संख्या में वृद्धि – जब किसी वस्तु का उत्पादन लाभदायक हो जाता है तो नए उत्पादक बाजार में प्रवेश करते हैं। इससे वस्तु की कुल आपूर्ति बढ़ जाती है।
(iv) सरकारी नीतियाँ – यदि सरकार करों में छूट दे, सब्सिडी प्रदान करे या उद्योगों को प्रोत्साहन दे, तो उत्पादक अधिक उत्पादन करते हैं, जिससे पूर्ति बढ़ती है।
16. माँग का नियम क्या है? माँग वक्र के ऋणात्मक होने के कारण बताएँ।
उत्तर – माँग का नियम अर्थशास्त्र का एक मूलभूत सिद्धांत है। इसके अनुसार, अन्य परिस्थितियाँ स्थिर रहने पर, किसी वस्तु की कीमत और उसकी माँग के बीच प्रतिलोम (उल्टा) संबंध होता है। यदि किसी वस्तु की कीमत घटती है, तो उपभोक्ता उसी आय में अधिक मात्रा में वस्तु खरीद सकते हैं, इसलिए माँग बढ़ जाती है। यदि किसी वस्तु की कीमत बढ़ती है, तो उपभोक्ता कम मात्रा में वस्तु खरीद पाएँगे, इसलिए माँग घट जाती है।
• माँग वक्र का ऋणात्मक ढाल : माँग वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर ढलान लिए होता है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं :
(i) प्रतिस्थापन प्रभाव – जब किसी वस्तु की कीमत घटती है तो वह वस्तु अन्य वस्तुओं की तुलना में सस्ती हो जाती है। उपभोक्ता महँगी वस्तुओं को छोड़कर सस्ती वस्तु की ओर आकर्षित होता है और उसकी माँग बढ़ जाती है।
(ii) आय प्रभाव – किसी वस्तु की कीमत घटने पर उपभोक्ता की वास्तविक आय (Real Income) बढ़ जाती है। अर्थात, उपभोक्ता अपनी निश्चित आय से अब अधिक मात्रा में वस्तु खरीद सकता है। इससे वस्तु की माँग बढ़ जाती है।
(iii) नए उपभोक्ताओं का प्रवेश – कीमत कम होने पर वह वस्तु पहले से अधिक उपभोक्ताओं की पहुँच में आ जाती है। कम आय वाले लोग भी अब उसे खरीदने लगते हैं। इससे कुल माँग बढ़ती है।
(iv) बहु-उपयोगी वस्तुओं का प्रभाव – कुछ वस्तुएँ अनेक कार्यों में उपयोग की जाती हैं, जैसे दूध (पीने, मिठाई बनाने, दही जमाने), बिजली (रोशनी, गर्मी, मशीन चलाने)। जब इनकी कीमत घटती है तो उपभोक्ता इन्हें अधिक कार्यों में प्रयोग करने लगते हैं। फलस्वरूप माँग बढ़ जाती है।
(v) घटती सीमांत उपयोगिता का नियम – जैसे-जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु की अधिक इकाइयाँ उपयोग करता है, प्रत्येक अतिरिक्त इकाई से मिलने वाला संतोष (सीमांत उपयोगिता) घटता जाता है। वह तभी अधिक इकाइयाँ खरीदेगा जब कीमत कम होगी। इसलिए माँग वक्र नीचे की ओर ढलता है।
अथवा
माँग की कीमत लोच से क्या अभिप्राय है? वस्तु की कीमत ₹ 4 प्रति इकाई से बढ़कर ₹ 5 प्रति इकाई हो जाने पर इसकी माँग 20 इकाइयों से घटकर 10 इकाइयाँ रह जाती हैं। कुल व्यय विधि द्वारा माँग की कीमत लोच की गणना करें।
उत्तर – माँग की कीमत लोच (Price Elasticity of Demand) से तात्पर्य है कि किसी वस्तु की माँग, उसकी कीमत में होने वाले परिवर्तन के प्रति कितनी संवेदनशील है। यदि कीमत बदलने पर माँग में अधिक प्रतिशत परिवर्तन होता है, तो माँग लोचदार (Elastic) होती है। यदि माँग में कम प्रतिशत परिवर्तन होता है, तो माँग अलोचदार (Inelastic) होती है।
• कुल व्यय विधि : इस विधि में हम देखते हैं कि कीमत बदलने पर कुल व्यय (कीमत × माँग) किस प्रकार बदलता है।
यदि कीमत बढ़ने पर कुल व्यय घटता है तो माँग लोचदार (Ed > 1) होती है।
यदि कीमत बढ़ने पर कुल व्यय बढ़ता है तो माँग अलोचदार (Ed < 1) होती है।
यदि कीमत बदलने पर कुल व्यय स्थिर रहता है तो माँग इकाई लोचदार (Ed = 1) होती है।
प्रारंभिक कीमत (P1) = ₹ 4
अंतिम कीमत (P2) = ₹ 5
प्रारंभिक माँग (Q1) = 20 इकाइयाँ
अंतिम माँग (Q2) = 10 इकाइयाँ
कुल व्यय = कीमत × माँग
प्रारंभिक कुल व्यय (TE1) = 4 × 20 = ₹ 80
अंतिम कुल व्यय (TE2) = 5 × 10 = ₹ 50
यहाँ कीमत ₹ 4 से ₹ 5 बढ़ी, लेकिन कुल व्यय ₹ 80 से घटकर ₹ 50 हो गया। कुल व्यय घटने का अर्थ है कि माँग अत्यधिक संवेदनशील है। माँग की कीमत लोच यहाँ 1 से अधिक (Ed > 1) है। अतः माँग लोचदार है।
17. पूर्ति में कमी, पूर्ति में वृद्धि, पूर्ति का संकुचन तथा पूर्ति के विस्तार को समझाइए।
उत्तर – पूर्ति में कमी, पूर्ति में वृद्धि, पूर्ति का संकुचन तथा पूर्ति का विस्तार ये चारों अवधारणाएँ वस्तुओं की आपूर्ति में होने वाले विभिन्न परिवर्तनों को व्यक्त करती हैं।
• पूर्ति में कमी – जब वस्तु की कीमत बदले बिना, अन्य कारकों (जैसे उत्पादन लागत बढ़ना, करों में वृद्धि, तकनीकी समस्याएँ) के कारण आपूर्ति घट जाती है, तो इसे पूर्ति में कमी कहते हैं। यह आपूर्ति वक्र के बाएँ खिसकने से प्रदर्शित होता है।
• पूर्ति में वृद्धि – जब कीमत बदले बिना, अन्य कारकों (जैसे तकनीकी उन्नति, लागत घट जाना, करों में छूट) के कारण आपूर्ति बढ़ जाती है, तो इसे पूर्ति में वृद्धि कहते हैं। यह आपूर्ति वक्र के दाएँ खिसकने से दिखता है।
• पूर्ति का संकुचन – जब केवल वस्तु की कीमत घटने पर उसी आपूर्ति वक्र पर आपूर्ति मात्रा कम हो जाती है, तो इसे पूर्ति का संकुचन कहते हैं। यह वक्र पर ऊपर से नीचे की ओर गति द्वारा दिखता है।
• पूर्ति का विस्तार – जब केवल कीमत बढ़ने पर उसी आपूर्ति वक्र पर आपूर्ति मात्रा बढ़ जाती है, तो इसे पूर्ति का विस्तार कहते हैं। यह वक्र पर नीचे से ऊपर की ओर गति द्वारा प्रदर्शित होता है।
अथवा
पूर्ण प्रतियोगिता बाजार से क्या अभिप्राय है? इसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर – पूर्ण प्रतियोगिता बाजार मतलब ऐसा बाजार जहां बहुत सारे खरीदार और विक्रेता होते हैं, और सभी विक्रेता एक जैसे समान (सजातीय उत्पाद) बेचते हैं। इस बाजार में कोई भी विक्रेता या खरीदार मूल्य या बाजार की स्थितियों को प्रभावित नहीं कर सकता है। कीमत बाजार द्वारा तय होती है, और सभी फर्में इस प्रचलित कीमत पर अपने उत्पाद बेचती हैं।
• पूर्ण प्रतियोगिता बाजार की विशेषताएँ :
(i) बड़ी संख्या में खरीदार और विक्रेता – बहुत सारे क्रेता और विक्रेता होने के कारण कोई भी व्यक्तिगत रूप से बाजार मूल्य को प्रभावित नहीं कर पाता।
(ii) सजातीय उत्पाद – सभी विक्रेता सामान उत्पाद बेचते हैं जो समान गुणवत्ता और विशेषताओं के होते हैं।
(iii) पूर्ण जानकारी – बाजार में खरीदार और विक्रेता दोनों को सभी वस्तुओं, कीमतों और गुणवत्ता की पूरी जानकारी होती है।
(iv) मुक्त प्रवेश और निकास – कोई भी फर्म बिना किसी बाधा के इस बाजार में प्रवेश या बाहर जा सकती है।
(v) कीमत निर्धारण – सभी फर्में कीमत लेने वाली होती हैं (प्राइस टेकर), वे कीमत स्वयं तय नहीं कर सकतीं बल्कि बाजार द्वारा निर्धारित कीमत स्वीकारनी होती है।
(vi) स्वतंत्र निर्णय – सभी विक्रेता स्वतंत्र रूप से अपने उत्पादन व बिक्री के निर्णय लेते हैं।
(vii) विज्ञापन की कमी – क्योंकि उत्पाद समान होते हैं और जानकारी पूर्ण होती है, इसलिए विज्ञापन की जरूरत नहीं पड़ती।
(viii) सरकारी हस्तक्षेप की कमी – बाजार में न्यूनतम सरकारी हस्तक्षेप होता है।
SECTION – B
(Macro Economics : समष्टि अर्थशास्त्र)
18. एक निश्चित समय अवधि में मापी जाने वाली मात्रा को कहते हैं :
(A) वस्तुएँ
(B) प्रवाह
(C) स्टॉक
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर – (B) प्रवाह
19. भारत में राष्ट्रीय आय का अनुमान कौन लगाता है?
(A) केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (C. S. O.)
(B) भारतीय रिजर्व बैंक (R. B. I.)
(C) राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (N. S. S. O.)
(D) ये सभी
उत्तर – (A) केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (C. S. O.)
20. भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना हुई थी :
(A) 1940 में
(B) 1935 में
(C) 1950 में
(D) 1920 में
उत्तर – (B) 1935 में
21. सही सूत्र चुने :
(A) APC = ∆C/ΔΥ
(B) APC = ΔΥ/∆C
(C) APC = Y/C
(D) APC = C/Y
उत्तर – (D) APC = C/Y
22. भुगतान शेष के आर्थिक सौदों को निम्नलिखित में से कौन-से वर्ग में बाँटा गया है?
(A) दृश्य मदें
(B) अदृश्य मदें
(C) पूँजी अंतरण
(D) उपरोक्त सभी
उत्तर – (D) उपरोक्त सभी
23. गृहस्थ क्षेत्र वस्तुओं व सेवाओं का …………… करता है। (उपभोग / उत्पादन)
उत्तर – उपभोग
24. कर, सरकार को किया जाने वाला ……………. भुगतान है। (ऐच्छिक / अनिवार्य)
उत्तर – अनिवार्य
25. भारत में मुद्रा जारी करने के लिए ……………. विधि का प्रयोग होता है। (न्यूनतम सुरक्षित व्यवस्था / आनुपातिक कोष व्यवस्था)
उत्तर – न्यूनतम सुरक्षित व्यवस्था
26. अभिकथन (A) : कारक आय अर्जित आय है।
तर्क (R) : घरेलू आय में विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय शामिल होती है।
(A) अभिकथन (A) तथा तर्क (R) दोनों सत्य हैं तथा तर्क (R), अभिकथन (A) का सही स्पष्टीकरण है।
(B) अभिकथन (A) तथा तर्क (R) दोनों सत्य हैं तथा तर्क (R), अभिकथन (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
(C) अभिकथन (A) सत्य है, परन्तु तर्क (R) असत्य है।
(D) अभिकथन (A) असत्य है, परन्तु तर्क (R) सत्य है।
उत्तर – (C) अभिकथन (A) सत्य है, परन्तु तर्क (R) असत्य है।
27. अभिकथन (A) : छात्रवृत्ति एक राजस्व व्यय है।
तर्क (R) : छात्रवृत्ति के कारण किसी प्रकार की संपत्ति का निर्माण नहीं होता।
(A) अभिकथन (A) तथा तर्क (R) दोनों सत्य हैं तथा तर्क (R), अभिकथन (A) का सही स्पष्टीकरण है।
(B) अभिकथन (A) तथा तर्क (R) दोनों सत्य हैं तथा तर्क (R), अभिकथन (A) का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
(C) अभिकथन (A) सत्य है, परन्तु तर्क (R) असत्य है।
(D) अभिकथन (A) असत्य है, परन्तु तर्क (R) सत्य है।
उत्तर – (A) अभिकथन (A) तथा तर्क (R) दोनों सत्य हैं तथा तर्क (R), अभिकथन (A) का सही स्पष्टीकरण है।
28. पूर्ण रोजगार संतुलन व अल्परोजगार संतुलन में अंतर बताएँ।
उत्तर –
| पूर्ण रोजगार संतुलन | अल्परोजगार संतुलन |
| 1. वह स्थिति जब अर्थव्यवस्था के सभी संसाधन, खासतौर पर श्रम, पूरी तरह से उपयोग में होते हैं। | 1. वह स्थिति जब अर्थव्यवस्था में कुछ संसाधन अधूरे या कम उपयोग में होते हैं। |
| 2. केवल प्राकृतिक बेरोजगारी होती है, कोई अनिवार्य बेरोजगारी नहीं होती। | 2. बेरोजगारी की दर अधिक होती है, और संसाधन पूरी क्षमता से नियोजित नहीं होते। |
| 3. अर्थव्यवस्था का उत्पादन अपनी पूरी संभावना पर होता है। | 3. उत्पादन स्तर पूर्ण क्षमता से कम होता है। |
अथवा
यदि किसी अर्थव्यवस्था में 100 करोड़ रुपये का अतिरिक्त निवेश किया जाता है तथा MPC = 1/2 हो, तो आय में कितनी वृद्धि होगी?
उत्तर – अतिरिक्त निवेश (ΔΙ) = 100 करोड़ रुपये
MPC (Marginal Propensity to Consume) = 1/2
आय में वृद्धि (∆Y) = मल्टीप्लायर × ∆I
निवेश गुणक / मल्टीप्लायर (k) = 1 / (1–MPC) = 1 / (1–1/2) = 2
आय में वृद्धि (∆Υ) = k × ∆I = 2 × 100 = 200 करोड़ रुपये
29. व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में तीन अंतर बताएँ।
उत्तर –
| व्यापार शेष | भुगतान शेष |
| 1. यह केवल वस्तुओं के आयात और निर्यात के अंतर को दर्शाता है, जैसे- यदि किसी देश ने 100 करोड़ का निर्यात और 80 करोड़ का आयात किया, तो व्यापार शेष +20 करोड़ होगा। | 1. यह देश के सभी अंतरराष्ट्रीय लेन-देन का विस्तृत लेखा-जोखा है, जिसमें वस्तुओं, सेवाओं (जैसे पर्यटन, बीमा, बैंकिंग) और पूँजी लेन-देन (ऋण, निवेश) सब शामिल होते हैं। |
| 2. इसमें केवल दृश्य मदें जैसे वस्तुएँ, मशीनें, अनाज, कच्चा माल आदि शामिल होते हैं। | 2. इसमें दृश्य, अदृश्य और पूँजी मदें तीनों सम्मिलित रहती हैं, इसलिए यह व्यापार शेष से कहीं व्यापक अवधारणा है। |
| 3. यह केवल व्यापारिक लेन-देन के संतुलन को दर्शाता है और देश की कुल आर्थिक स्थिति का पूरा चित्र प्रस्तुत नहीं करता। | 3. यह देश की समग्र आर्थिक स्थिति और विदेशी मुद्रा की उपलब्धता को दर्शाता है, जिससे पता चलता है कि देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक रूप से मजबूत है या कमजोर। |
30. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के चार लक्षण लिखें।
उत्तर – पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के चार मुख्य लक्षण :
(i) उत्पादन के साधनों का निजी स्वामित्व – इस व्यवस्था में भूमि, कारखाने, मशीनें, खदानें और अन्य उत्पादन साधनों का स्वामित्व व्यक्तियों या निजी कंपनियों के पास होता है। मालिक अपनी इच्छा के अनुसार इनका उपयोग करते हैं और उत्पादन पर उनका पूरा नियंत्रण रहता है।
(ii) लाभ कमाने का उद्देश्य – इस अर्थव्यवस्था में उत्पादन का प्रमुख उद्देश्य अधिक से अधिक लाभ अर्जित करना होता है। यह लाभ की भावना उद्यमियों को संसाधनों का कुशल और सही दिशा में उपयोग करने के लिए प्रेरित करती है, जिससे उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन होता है जिनकी मांग अधिक होती है।
(iii) प्रतिस्पर्धात्मक बाजार प्रणाली – पूँजीवादी व्यवस्था में कई उत्पादक और व्यापारी स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं। उनके बीच की प्रतियोगिता उन्हें लागत घटाने, वस्तुओं की गुणवत्ता सुधारने और नए उत्पाद विकसित करने के लिए प्रेरित करती है। इससे उपभोक्ताओं को बेहतर गुणवत्ता की वस्तुएँ उचित मूल्य पर उपलब्ध होती हैं।
(iv) सीमित सरकारी हस्तक्षेप – इस व्यवस्था में सरकार की भूमिका बहुत कम होती है। सरकार केवल कानून-व्यवस्था और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए हस्तक्षेप करती है, जबकि मूल्य निर्धारण, उत्पादन और संसाधनों का आवंटन मुख्यतः मांग और आपूर्ति की शक्तियों से निर्धारित होता है।
अथवा
अंतिम तथा मध्यवर्ती वस्तुओं में अंतर बताएँ।
उत्तर –
| अंतिम वस्तुएँ | मध्यवर्ती वस्तुएँ |
| 1. वे वस्तुएँ जो सीधे उपभोग (Consumption) या निवेश (Investment) के लिए उपयोग की जाती हैं और आगे किसी उत्पादन प्रक्रिया में नहीं जातीं। | 1. वे वस्तुएँ जो आगे किसी अन्य वस्तु या सेवा के उत्पादन में कच्चे माल या अर्धनिर्मित वस्तु के रूप में उपयोग होती हैं। |
| 2. इनका मूल्य राष्ट्रीय आय (GDP) की गणना में शामिल किया जाता है क्योंकि ये अंतिम उपभोग या निवेश का हिस्सा होती हैं। | 2. इनका मूल्य राष्ट्रीय आय (GDP) की गणना में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि इससे डबल काउंटिंग हो सकती है। |
| 3. ये वस्तुएँ उत्पादन चक्र का अंतिम पड़ाव होती हैं, यानी इनके बाद और कोई उत्पादन प्रक्रिया नहीं होती। | 3. ये उत्पादन चक्र का मध्य चरण होती हैं और अंततः अंतिम वस्तु बनाने में प्रयोग की जाती हैं। |
| 4. उदाहरण: घर के लिए खरीदी गई कार, परिवार द्वारा खरीदा गया टीवी, निवेश हेतु खरीदी गई मशीनरी या कंप्यूटर। | 4. उदाहरण: आटा बनाने के लिए खरीदा गया गेहूँ, स्टील से बने मशीन के पुर्जे, कपड़े की सिलाई के लिए धागा। |
31. न्यून माँग को ठीक करने के राजकोषीय नीति के उपाय लिखें।
उत्तर – न्यून माँग को ठीक करने के राजकोषीय उपाय :
(i) सरकारी व्यय में वृद्धि – सरकार बुनियादी ढाँचे के निर्माण, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सार्वजनिक कार्यों पर अधिक व्यय करती है। इससे अर्थव्यवस्था में नया रोज़गार उत्पन्न होता है और लोगों की आय बढ़ती है। बढ़ी हुई आय के कारण लोग अधिक वस्तुओं और सेवाओं की मांग करते हैं, जिससे समग्र माँग में वृद्धि होती है।
(ii) करों में कमी – सरकार व्यक्तियों और व्यवसायों पर करों की दरें कम कर सकती है। इससे लोगों के पास खर्च करने के लिए अधिक उपलब्ध आय (Disposable Income) आती है। अधिक आय होने पर लोग वस्तुओं और सेवाओं की अधिक मात्रा खरीदते हैं, जिससे मांग बढ़ती है।
(iii) घाटे का वित्तपोषण – सरकार अपने खर्च को बढ़ाने के लिए उधार ले सकती है, जिसे घाटे का वित्तपोषण कहते हैं। इससे बाजार में अधिक धन का संचार होता है, और उत्पादन व निवेश में वृद्धि होने से कुल माँग बढ़ती है।
(iv) सब्सिडी में वृद्धि – सरकार विशिष्ट वस्तुओं या क्षेत्रों पर सब्सिडी बढ़ा सकती है। इससे वस्तुएँ सस्ती हो जाती हैं और उपभोक्ता उन्हें अधिक खरीदने लगते हैं। इस प्रकार, आर्थिक गतिविधियाँ सक्रिय होती हैं और माँग में वृद्धि होती है।
32. कर किसे कहते हैं? प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों में तीन अंतर लिखें।
उत्तर – कर वह अनिवार्य भुगतान है जो राज्य अपनी संप्रभुता के आधार पर व्यक्तियों और व्यवसायों से वसूल करता है। इसके बदले में सरकार कोई विशिष्ट वस्तु या सेवा प्रदान नहीं करती। कर का मुख्य उद्देश्य सरकारी खर्चों को वित्तपोषित करना, सामाजिक और आर्थिक योजनाओं को लागू करना तथा अर्थव्यवस्था में संसाधनों का समुचित वितरण सुनिश्चित करना होता है।
• प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष करों में अंतर :
| प्रत्यक्ष कर (Direct Tax) | अप्रत्यक्ष कर (Indirect Tax) |
| 1. यह कर सीधे व्यक्ति या संस्था की आय या संपत्ति पर लगाया जाता है। इसका बोझ वही व्यक्ति उठाता है। | 1. यह कर वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में शामिल होता है। कर का वास्तविक बोझ उपभोक्ता वह उठाता है जो वस्तु या सेवा खरीदता है। |
| 2. प्रत्यक्ष कर सामाजिक न्याय और आय पुनर्वितरण में सहायक होता है क्योंकि उच्च आय वाले अधिक कर देते हैं। | 2. अप्रत्यक्ष कर उपभोक्ताओं पर समान रूप से लागू होता है, चाहे उनकी आय अधिक या कम हो। |
| 3. उदाहरण: आयकर, संपत्ति कर, लाभांश कर। | 3. उदाहरण: बिक्री कर, वैट (GST), उत्पाद शुल्क। |
33. राष्ट्रीय आय मापने की आय विधि की व्याख्या करें।
उत्तर – राष्ट्रीय आय मापने की आय विधि वह तरीका है जिसमें किसी देश में एक निश्चित अवधि (आमतौर पर एक वर्ष) में संपूर्ण आर्थिक गतिविधियों से अर्जित आयों का योग करके राष्ट्रीय आय (National Income) का मूल्यांकन किया जाता है। इस विधि में मुख्य रूप से वेतन, मजदूरी, किराया, ब्याज, लाभ आदि शामिल होते हैं। यह विधि यह दर्शाती है कि देश के नागरिक और व्यवसाय उत्पादन से कितना वास्तविक आय अर्जित कर रहे हैं।
• मुख्य बिंदु :
(i) कर्मचारी वेतन (Wages and Salaries) – इसमें सभी श्रमिकों, कर्मचारियों और अधिकारियों को उनके कार्य का भुगतान जैसे वेतन, मजदूरी, भत्ते, बोनस आदि शामिल किए जाते हैं। यह राष्ट्रीय आय का एक प्रमुख हिस्सा होता है क्योंकि अधिकांश लोगों की आय इसी श्रेणी में आती है।
(ii) भू-रेंट (Rent) – भूमि, भवन और अन्य संपत्तियों के मालिकों को उनके संपत्ति के उपयोग के लिए प्राप्त भुगतान को राष्ट्रीय आय में जोड़ा जाता है। उदाहरण के लिए – खेती की जमीन का किराया या औद्योगिक भवन का किराया।
(iii) ब्याज (Interest) – पूंजीधारकों को उनके निवेश, जैसे बैंक जमा, ऋण, बॉन्ड आदि पर मिलने वाला ब्याज राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है। यह विधि पूंजी के उपयोग से अर्जित आय को दर्शाती है।
(iv) लाभ (Profit) – व्यापारिक और औद्योगिक संस्थाओं द्वारा अर्जित शुद्ध लाभ (Net Profit) राष्ट्रीय आय में जोड़ा जाता है। इसमें कंपनियों और उद्यमियों द्वारा बिक्री से होने वाला शुद्ध लाभ शामिल होता है।
(v) मिश्रित आय (Mixed Income) – स्वयंरोजगार वाले व्यक्तियों जैसे छोटे किसान, कारीगर, छोटे व्यापारी आदि की आय को भी राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है। इसे मिश्रित आय इसलिए कहते हैं क्योंकि इसमें मजदूरी और लाभ दोनों तत्व मिलकर होते हैं।
अथवा
राष्ट्रीय आय की गणना में शामिल न होने वाली मदों को लिखें।
उत्तर – राष्ट्रीय आय केवल वर्तमान अवधि में उत्पादित वस्तुएँ और सेवाएँ शामिल करती है। कुछ मदें इसमें शामिल नहीं की जातीं क्योंकि ये उत्पादन या सेवाओं के वास्तविक प्रवाह में योगदान नहीं करतीं या उनका मूल्य मापना कठिन होता है।
• राष्ट्रीय आय में शामिल न होने वाली मदें :
(i) अंतरण भुगतान (Transfer Payments) – ये एकतरफा भुगतान होते हैं, जैसे पेंशन, छात्रवृत्ति, बेरोजगारी भत्ता, दान या उपहार। इनका कोई प्रत्यक्ष उत्पादन नहीं होता, इसलिए ये राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं होते। ये केवल धन का हस्तांतरण हैं, उत्पादन नहीं।
(ii) मध्यवर्ती वस्तुएँ (Intermediate Goods) – वे वस्तुएँ जो अन्य वस्तुओं के उत्पादन में कच्चे माल या अर्धनिर्मित वस्तु के रूप में प्रयोग होती हैं, राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं होतीं। उदाहरण: कार बनाने में प्रयुक्त स्टील, बिजली या मशीनरी। केवल अंतिम वस्तु का मूल्य राष्ट्रीय आय में गिना जाता है।
(iii) वित्तीय लेन-देन (Financial Transactions) – शेयर, बांड, डिबेंचर आदि की खरीद-बिक्री केवल स्वामित्व का परिवर्तन है, नई वस्तु या सेवा का उत्पादन नहीं होता। केवल इन लेन-देन से संबंधित कमीशन या शुल्क को राष्ट्रीय आय में जोड़ा जा सकता है।
(iv) गैर-बाजार घरेलू सेवाएँ (Non-Market Domestic Services) – घरेलू कार्य जैसे गृहिणी द्वारा किया गया काम, स्वयंसेवी सेवाएँ और अन्य गैर-बाजार गतिविधियाँ राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं होतीं। क्योंकि ये बाजार में मूल्यांकन योग्य नहीं होतीं और उनका मूल्य मापना कठिन होता है।
(v) अवैध या अनौपचारिक आय (Illegal or Informal Income) – जुआ, तस्करी, भ्रष्टाचार या अन्य अवैध गतिविधियों से अर्जित आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता। यह कानूनी उत्पादन का हिस्सा नहीं होती और अर्थव्यवस्था की वास्तविक उत्पादकता को दर्शाती नहीं।
(vi) पुराने माल की बिक्री (Sale of Used Goods) – पुराने सामान की बिक्री में उत्पादन नया नहीं होता। उदाहरण: सेकंड-हैंड कार या फर्नीचर की बिक्री। इसे राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि इसका उत्पादन पहले ही किसी पिछले वर्ष में गिना जा चुका होता है।
34. मुद्रा से आपका क्या अभिप्राय है? इसके मुख्य कार्य बताएँ।
उत्तर – मुद्रा वह सामान्य रूप से स्वीकार्य साधन है जिसका उपयोग वस्तुओं और सेवाओं के लेन-देन, मूल्य मापन और भंडारण के लिए किया जाता है। इसे लोग एक समान्य विनिमय माध्यम के रूप में स्वीकार करते हैं। मुद्रा केवल नोट और सिक्कों तक सीमित नहीं है, बल्कि बैंक बैलेंस, चेक, डेबिट/क्रेडिट कार्ड और इलेक्ट्रॉनिक रूप में जमा धन भी मुद्रा का हिस्सा हैं। यह आर्थिक गतिविधियों को सुचारू रूप से संचालित करने में सहायक होती है।
• मुद्रा के मुख्य कार्य :
(i) विनिमय का साधन – मुद्रा का मुख्य कार्य वस्तुओं और सेवाओं की खरीद-बिक्री में साधन के रूप में उपयोग करना है। इससे बार्टर प्रणाली (वस्तु-वस्तु का आदान-प्रदान) की जटिलताएँ समाप्त हो जाती हैं और व्यापार अधिक सरल और प्रभावी बन जाता है।
(ii) मूल्य मापन का साधन – मुद्रा वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को मापने का मानक प्रदान करती है। इससे विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं की तुलना करना, मूल्य निर्धारित करना और आर्थिक निर्णय लेना आसान हो जाता है।
(iii) भंडारण का साधन – मुद्रा को भविष्य में उपयोग या खर्च के लिए सहेजा और सुरक्षित रखा जा सकता है। यह धन की क्रय शक्ति को समय तक बनाए रखती है, जिससे लोग भविष्य के लिए बचत कर सकते हैं और आर्थिक योजनाएँ बना सकते हैं।
(iv) भविष्य के भुगतान का साधन – मुद्रा का उपयोग ऋण, कर्ज या भविष्य में भुगतान करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए: कर्ज, चेक या क्रेडिट कार्ड से होने वाले लेन-देन। यह लेन-देन को सरल और भरोसेमंद बनाता है।
(v) मूल्य का स्थानांतरण – मुद्रा का उपयोग धन का एक स्थान से दूसरे स्थान या व्यक्ति तक स्थानांतरण करने के लिए किया जाता है। इससे व्यापारी और ग्राहक दोनों के लिए लेन-देन आसान और त्वरित हो जाता है।
(vi) पूंजी की तरलता – मुद्रा को किसी भी समय अन्य वस्तुओं, सेवाओं या संपत्तियों में बदला जा सकता है, जिससे यह सबसे तरल संपत्ति मानी जाती है। यह व्यापारियों और उपभोक्ताओं को तत्काल लेन-देन की सुविधा प्रदान करती है और आर्थिक गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने में मदद करती है।
अथवा
केन्द्रीय बैंक से आपका क्या अभिप्राय है? इसके कार्य लिखें।
उत्तर – केन्द्रीय बैंक किसी देश की सर्वोच्च मौद्रिक संस्था होती है। यह देश की मुद्रा नीति का प्रबंधन, वित्तीय प्रणाली की निगरानी और मुद्रा जारी करने का कार्य करती है। केन्द्रीय बैंक आर्थिक गतिविधियों को सुचारू रूप से चलाने, कीमतों की स्थिरता बनाए रखने और बैंकिंग प्रणाली में विश्वास बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, भारत में केन्द्रीय बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) है।
• केन्द्रीय बैंक के मुख्य कार्य:
(i) मुद्रा जारी करना और प्रबंधन करना – केन्द्रीय बैंक के पास देश में नोट और सिक्के जारी करने का एकाधिकार होता है। यह मुद्रा की स्थिरता बनाए रखने, नकदी की उपलब्धता सुनिश्चित करने और महंगाई (Inflation) को नियंत्रित करने में मदद करता है।
(ii) बैंकों के बैंक के रूप में कार्य करना – केन्द्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों का उधारदाता और निगरक्षक होता है। यह बैंकों के लिए जमा राशि रखता है, संकट के समय उन्हें ऋण प्रदान करता है और बैंकों के बीच लेन-देन (Clearing) की सुविधा भी उपलब्ध कराता है।
(iii) सरकार के लिए बैंकर बनना – यह सरकार के खातों का प्रबंधन करता है, सार्वजनिक ऋणों का संचालन करता है और सरकारी भुगतानों में सहायता प्रदान करता है। इसके अलावा सरकार को आर्थिक और मौद्रिक नीति पर सलाह देता है, ताकि देश की आर्थिक योजनाएँ सुचारू रूप से लागू हो सकें।
(iv) मौद्रिक नीति का संचालन – केन्द्रीय बैंक ब्याज दर और मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करके अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखता है। यह महंगाई और मंदी जैसी आर्थिक समस्याओं को रोकने में मदद करता है और निवेश एवं विकास को बढ़ावा देता है।
(v) ऋण नियंत्रण – यह अर्थव्यवस्था में ऋण की मात्रा और उसकी उपलब्धता को नियंत्रित करता है। इससे अर्थव्यवस्था में धन की मात्रा, ब्याज दर और निवेश पर नियंत्रण रखा जा सकता है, जो आर्थिक स्थिरता के लिए आवश्यक है।
(vi) विदेशी मुद्रा बाजार का प्रबंधन – केन्द्रीय बैंक देश के विदेशी मुद्रा भंडार (Forex Reserves) का प्रबंधन करता है और विनिमय दर में स्थिरता बनाए रखता है। यह आयात-निर्यात और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को संतुलित रखने में मदद करता है।
(vii) वित्तीय प्रणाली की निगरानी – यह बैंकिंग क्षेत्र की गतिविधियों की निगरानी करता है और वित्तीय प्रणाली में विश्वास और स्थिरता बनाए रखने के लिए नियम बनाता है। यह धोखाधड़ी, दिवालियापन या वित्तीय संकट जैसी स्थितियों से बचाव में मदद करता है।