HBSE Class 11 Physical Education Question Paper 2021 Answer Key

HBSE Class 11 Physical Education Question Paper 2021 Answer Key 

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Q1. अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने में अच्छे आसन के महत्त्व का उल्लेख कीजिए। 

Ans. योगासन श्वास- क्रिया का नियमन करते हैं, हृदय और फेफड़ों को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं और मन में स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति को बढ़ाते हैं। योगासन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वरदान स्वरूप हैं क्योंकि इनमें शरीर के समस्त भागों पर प्रभाव पड़ता है और वह अपने कार्य सुचारु रूप से करते हैं।

 

                                        अथवा 

अभिप्रेरणा क्या है ? खेलों के क्षेत्र में अभिप्रेरण की भूमिका का वर्णन कीजिए। 

Ans. अभिप्रेरणा एक आन्तरिक कारक या स्थिति है,जो किसी क्रिया या व्यवहार को आरम्भ करने की प्रवृत्ति जागृत करती है। यह व्यवहार की दिशा तथा मात्रा भी निश्चित करती है।खेल छात्र उन आनन्ददायक अनुभवों की इच्छा करते हैं, जिनसे सन्तोष प्राप्त होता है। खेलों से सन्तोष प्राप्त होता है। शिक्षक को खेलों द्वारा आनन्ददायक अनुभव देने चाहिए। जिससे विद्यार्थी को सन्तोष मिले। सन्तोषप्रद प्रेरणा ही विद्यार्थी को अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित करेगी। 

 

Q2. संक्रामक रोगों से क्या तात्पर्य है ? संक्रामक रोगों से बचाव व नियंत्रण के उपायों का वर्णन कीजिए। 

Ans. संक्रामक रोग वे रोग हैं जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में सीधे या परोक्ष रूप से आसानी से फैल जाते हैं। ये बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी, कवक आदि जैसे रोगजनक सूक्ष्मजीव के कारण होते हैं।ऐसी बीमारियों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए, व्यक्तिगत और सार्वजनिक स्वच्छता का रखरखाव आवश्यक है। 

इस प्रयोजन के लिए, कुछ सामान्य निवारक उपाय निम्नानुसार किए जाने चाहिए –

शिक्षा– लोगों को ऐसी बीमारियों से बचाने के लिए संचारी रोग के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए।

अलगाव– संक्रमित व्यक्ति को संक्रमण के प्रसार को कम करने के लिए अलग रखा जाना चाहिए।

टीकाकरण– संक्रमण से बचने के लिए समय पर लोगों का टीकाकरण किया जाना चाहिए।

स्वच्छता– प्रदूषित पानी, दूषित भोजन, आदि से संक्रमण से बचने के लिए स्वच्छता में सुधार किया जाना चाहिए। ये उपाय मुख्य रूप से आवश्यक हैं जहाँ संक्रामक कारकों को भोजन और पानी के माध्यम से प्रेषित किया जाता है, जैसे कि टाइफॉइड, अमीबीएसिस और एस्कैरिएसिस।

संवाहकों का उन्मूलन– संवाहकों के प्रजनन स्थानों को नष्ट कर दिया जाना चाहिए और उपयुक्त तरीकों से वयस्क संवाहकों को मारना चाहिए।

कीटाणुशोधन– संक्रमण के अवसरों को कम करने के लिए रोगी के परिवेश और उपयोग के वस्तुओं को पूरी तरह से निष्फल किया जाना चाहिए।

 

                                          अथवा

श्वसन संस्थान का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए। 

Ans. श्वास संस्थान के अंग (Organs of Respiratory System) – श्वास संस्थान में विभिन्न हैं। इनका विवरण निम्नलिखित है : 

नाक (Nose)– नाक श्वास संस्थान का महत्त्वपूर्ण अंग है। यह खोपड़ी में एक तरह की सुरंग है जिससे श्वास प्रक्रिया संभव होती है। जब हम साँस लेते हैं तो ऑक्सीजन हमारे शरीर में प्रवेश होती है। इसमें अनेक धूल-कण, मिट्टी और अनेक प्रकार के कीटाणु भी होते हैं। जब वायु नाक के माध्यम से शरीर में प्रवेश करती है तो नाक की सुरंग के अंदर वाले बाल इन अनावश्यक पदार्थों को बाहर ही रोक लेते हैं, अंदर नहीं जाने देते। साफ वायु को ही शरीर के अंदर भेजते हैं। नाक शरीर में प्रवेश करने वाली वायु को शरीर के ताप के बराबर करने में भी सहायक होती है।

स्वर-यंत्र/कण्ठ (Larynx)– नाक से ली गई वायु कण्ठ से होती हई इसी में आती है। इसके सिरे पर एक ढक्कन-सा होता है जिसे यंत्रच्छद कहते । यह ढक्कन हर समय खुला रहता है। किन्तु खाना खाते समय यह ढक्कन बंद हो जाता है ताकि भोजन स्वर-यंत्र में न गिरे। स्वर-यंत्र में जब वायु प्रविष्ट होती है तब स्वर उत्पन्न होता है। इस प्रकार यह हमें बोलने में भी सहायता प्रदान करता है। 

ग्रसनिका (Pharynx)– यह पेशियों की एक नली होती है जो नाक के पार्श्व भाग में स्थित होती है। यह खोपडी के नीचे की ओर होती है। इस प्रकार यह स्वर-यंत्र और मुँह के पीछे की ओर होती है। इसका पिछला भाग कण्ठ ग्रसनी कहलाता है। 

श्वासनली (Trachea)– श्वासनली स्वर-यंत्र से प्रारंभ होकर छाती के अंदर नीचे की ओर जाती है। यह बीच से खोखली एक नली होती है। यह उप-अस्थियों के अधूरे छल्लों के साथ मिलकर बनती है। ये छल्ले पिछली तरफ जुड़े नहीं होते, क्योंकि श्वासनली का पिछला भाग चपटा होता है। इसमें वायु को छानने के लिए छोटे-छोटे बाल होते हैं। आगे जाकर यह नली दो शाखाओं में बँट जाती है।

वायु-नलियाँ/श्वसनियाँ (Bronchi)– वक्ष भाग में पहुँचते ही श्वासनली दो शाखाओं में बँट जाती है जिन्हें श्वसनियाँ या वायु- लियाँ कहते हैं। दाईं वायु-नली बाईं वायु-नली से कुछ छोटी किन्तु अधिक चौड़ी होती है। दोनों वायु-नलियाँ अपनी-अपनी ओर के फेफड़ों में घुस जाती हैं। इनके माध्यम से वायु से ऑक्सीजन (O) रक्त में तथा रक्त से कार्बन-डाइऑक्साइड (CO) वायु में चलती रहती है। इस प्रकार फेफड़ों में उपस्थित वायु-लिकाएँ साँस की वायु को वायु कोष्ठकों में लाने एवं वापस ले जाने का कार्य करती हैं।

फेफड़े (Lungs)– हमारे शरीर में एक जोड़ी उलझे हुए स्पंज की भाँति ठोस फेफड़े होते हैं-दायाँ फेफड़ा और बायाँ फेफडा । दोनों फेफड़ों का भार भिन्न होता है। ये चिकने एवं कोमल होते हैं। इनके भीतर अत्यंत सूक्ष्म अनंत कोष्ठ होते हैं जिनको वाय- कोष्ठ (Air Cells) कहते हैं। इन वायु-कोष्ठों में वायु भरी होती है अर्थात् ये वाय को जमा करते और सिकुड़ने पर वायु को बाहर निकालते हैं। फेफड़ों के चारों ओर एक प्लीऊरा नामक दोहरी झिल्ली चढ़ी होती है जिनके मध्य में एक तरल पदार्थ होता है। यह तरल पदार्थ रगड़ व चोट से फेफड़ों की रक्षा करता है। फेफड़ों का मुख्य कार्य शरीर के अंदर वायु खींचकर ऑक्सीजन उपलब्ध कराना तथा कोशिकाओं की गतिविधियों से उत्पन्न होने वाली कार्बन-डाइऑक्साइड गैस को शरीर से बाहर फेंकना है। फेफड़ों में किसी प्रकार की खराबी होने से श्वसन प्रक्रिया बाधित हो जाती है।

डायाफ्राम या पेट पर्दा (Diaphragm)– डायाफ्राम वह अंग है, जो श्वास को अन्दर ले जाने में सहायता करता है। इसका आकार गुंबद की तरह होता है। यह छाती को पेट से अलग करता है और जिगर को नीचे दबाता है। जब हम श्वास लेते हैं तो पेट पर्दा या डायाफ्राम बढ़ जाता है तथा जब हम श्वास छोड़ते हैं तो यह अपनी पहले वाली अवस्था में आ जाता है।

 

Q3. असीमित गति वाले जोड़ों का वर्णन करें। 

Ans. असीमित गति वाले जोड़- इन्हें रिसावदार जोड़ भी कहते हैं। हमारे शरीर के अधिक जोड़ इसी भाग के अंतर्गत आते हैं। टाँगों व बाजुओं के जोड़ इसी प्रकार के जोड़ों के उदाहरण हैं। इन जोड़ों में बहुत ही मुलायम सिनोवियल झिल्ली होती है। इन जोड़ों को गति के आधार पर निम्नलिखित पाँच भागों में बाँट सकते हैं 

(i) कब्जेदार जोड़ (Hinge joints)– इस प्रकार के जोड़ों में अस्थियों के सिरे आपस में इस तरह से जुड़े होते हैं कि गति केवल एक ‘ओर से ही हो सकती है। ये जोड़ ठीक उसी तरह कार्य करते हैं जैसे कि दरवाजे के कब्जे कोहनी, घुटने व उंगलियों के जोड़ इसके उदाहरण हैं।

(ii) घूमने वाले जोड़ (Pivot Joints)– घूमने वाले जोड़ों की गति चक्र में होती है। इस जोड़ में एक हड्डी छल्ला बनती है और दूसरी इसमें धुरी की भाँति फँसी हुई होती है। इस प्रकार का जोड़ रीढ़ की पहली व दूसरी अस्थि एटलस व एक्सिस के बीच पाया जाता है।

(iii) फिसलनदार जोड़ (Gliding Joints)– फिसलनदार जोड़ प्रायः तलों की विरोधता से बनते हैं। ये जोड़ कलाई, घुटने में मिलते हैं।

(iv) गेंद व छेद वाले जोड़ (Ball and Socket Joints)– गेंद व छेद के जोड़ में हड्डी का एक सिरा गेंद की भाँति गोल और दूसरा सिरा एक प्याले की भाँति होता है। गेंद वाला भाग प्याले में फिट होता है। इस प्रकार के जोड़ कंधे और कूल्हे में होते हैं। 

(v) काठीदार जोड़ (Shaddle Joints)– इस प्रकार के जोड़ों में काफी गति होती है। इस प्रकार के जोड़ों में दो हड्डियों की आकृति काठीदार होती है। जब ये एक-दूसरे में फिट होती हैं तो इस प्रकार के जोड़ बनते हैं। कार्पल व मेटाकार्पल इस प्रकार के जोड़ हैं। 

 

Q4. व्यायाम के रक्त प्रवाह संस्थान पर पड़ने वाले प्रभावों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। 

Ans. नियमित रूप से व्यायाम करने से शरीर में कुछ स्थायी परिवर्तन आ जाते हैं जिसका प्रभाव सर्वप्रथम हृदय पर पड़ता है। व्यायाम के कारण हृदय की माँसपेशियाँ मजबूत हो जाती हैं। इस मजबूती के कारण हृदय की Stroke Volume बढ़ जाती है। यह रक्त की उस मात्रा को कहते हैं जो हृदय एक संकुचन में महाधमनी में डालता है।

कुछ समय तक व्यायाम करने के फलस्वरूप एक कुशल एथलीट में सामान्य नब्ज की धड़कन गति संख्या में थोड़ी-सी गिरावट आती है। फलतः हृदय का विराम समय बढ़ जाता है और उसे अधिक आराम अथवा फिर से तैयार होने का अधिक समय मिलता है। इस सुधार के कारण वह आवश्यकता पड़ने पर अधिक भार सह सकता है।

किसी एक कार्य के लिए अकुशल व्यक्ति की हृदय गि में तीव्रता से बढ़ोतरी होती है परन्तु रक्तचाप कम रहता है। इसके विपरीत प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति की हृदय गति में कम बढ़ोतरी होती है परन्तु रक्तचाप बढ़ता है जिससे अधिक रक्त का संचार हो पाता है और कार्य सुगमता से होता हुआ प्रतीत होता है ।

नियमित व्यायाम से हमारे रक्त में कुछ रासायनिक परिवर्तन हो जाते हैं जिसका अनुमान हम रक्त में Cholestrol की मात्रा से, जो कि वसा का ही एक रूप होती है, लगा सकते हैं। व्यायाम के फलस्वरूप रक्त में Cholestrol की मात्रा कम हो जाती है। इससे दिल का दौरा पड़ने की सम्भावना कम रहती है। अतः हृदय के रोगियों को भी हल्का-फुल्का व्यायाम करने के लिए कहा जाता है।

प्रशिक्षण के फलस्वरूप व्यायाम करने पर नाड़ी की धड़कन की संख्या में प्रारम्भ के मुकाबले में वृद्धि कम होती है। इससे कार्य अधिक देर तक अथवा कठोर कार्य किया जा सकता है।

नित्य प्रति व्यायाम करने से शरीर में कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है जिसके कारण शरीर का रंग भी लाली पर हो जाता है। कोशिकाओं की संख्या बढ़ने के कारण माँसपेशियों को अधिक आक्सीजन एवं भोजन प्राप्त हो पाता है तथा त्याज्य पदार्थों का विसर्जन भी शीघ्र होता है।

माँसपेशियों में कार्य न कर रही कोशिकाएँ खुल जाती हैं। रक्त में हुए रासायनिक परिवर्तनों के साथ रक्त में लाल रक्त कणिकाओं की संख्या बढ़ जाती है। किसी कार्य की समाप्ति पर एक प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति की हृदय धड़कन एक साधारण व्यक्ति के मुकाबले में शीघ्रता से सामान्य हो जाती है। अर्थात् कम हो जाता है। प्रशिक्षण के कारण हमारा रक्त प्रवाह संस्थान अधिक का जमाव सहन कर सकता है जिससे थकान देर से होती है।

 

Q5. थकावट के कारणों का संक्षेप में वर्णन करें। 

Ans. जेम्स ड्रेवर के अनुसार, “पहले से करते चले आ रहे कार्य में खर्च की हुई शक्ति के कारण कार्य – कुशलता, क्षमता अथवा उत्पादन में कमी को थकान या थकावट कहते हैं।” 

बोरिंग के अनुसार, “लगातार कार्य करते रहने के परिणामस्वरूप कुशलता में कमी आ जाना थकान या थकावट है।” 

सालों के अध्यन के बाद भी थकान या थकावट का कोई ज्ञात कारण आज तक शोधकर्ताओं को नहीं मिल पाया है। हालांकि, लोगों में थकान के साथ कई बीमारियां देखी गयी हैं लेकिन इसके विकास के कारण का अभी तक पता नहीं चल पाया है। 

रोग नियंत्रण केंद्र (सीडीसी) से पता चलता है कि शोधकर्ता अभी भी थकान के कारणों की पहचान करने की कोशिश कर रहे हैं। अध्ययन किए गए कुछ कारकों में शामिल हैं –

(i) वायरल संक्रमण– कुछ लोगों को वायरल संक्रमण होने के बाद थकान होती है, इसिलए शोधकर्ता इसे भी उन कारकों में से मानते हैं जिनसे थकान हो सकती है। शोधकर्ताओं का मानना है कि एपस्टीन-बार वायरस, ह्यूमन हर्पीस वायरस 6 और माउस ल्यूकेमिया वायरस थकान के लिए ज़िम्मेदार हो सकते हैं। हालाँकि, अभी तक इस बात की पुष्टि नहीं हुई है।

(ii) प्रतिरक्षा प्रणाली की समस्याएं– थकान से ग्रस्त लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली थोड़ी कमज़ोर हो जाती है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि यह कारण थकान होने के लिए पर्याप्त है या नहीं।

(iii) हार्मोन असंतुलन– थकान से ग्रस्त लोगों को कभी-कभी हाइपोथेलेमस, पिट्यूटरी ग्रंथि या एड्रि‍नल ग्रंथि में उत्पन्न हार्मोन के असामान्य रक्त स्तरों का अनुभव होता है लेकिन इन असामान्यताओं का कारण अभी अज्ञात है।

 

Q6. डेंगू क्या है ? इसके लक्षणों तथा बचाव व रोकथाम का वर्णन कीजिए। 

Ans. डेंगू एक मच्छर जनित वायरल इंफेक्शन या डिजीज है। डेंगू होने पर तेज बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द, त्वचा पर चकत्ते आदि निकल आते हैं। डेंगू बुखार को हड्डी तोड़ बुखार भी कहते हैं। एडीज मच्छर के काटने से डेंगू होता है।

लक्षण– डेंगू रोग के प्रमुख लक्षणों में अकस्मात तेज सर दर्द व बुखार होना, मांसपेशियों एवं जोड़ों में दर्द होना, आंखों में दर्द होना जी मिचलाना व उल्टी होना, तथा गंभीर मामलों में नाक, मुंह, मसूडों से खून आना, तथा त्वचा पर चकते उभरना है। दो से सात दिनों में मरीज की स्थिति गंभीर भी हो सकती है। शरीर का तापमान कम हो जाता है। शॉक की स्थिति निर्मित होती है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने अवगत कराया कि डेंगू के लक्षण दिखने पर तत्काल जिला अस्पताल में उपचार कराने कहा है।

डेंगू के रोकथाम एवं बचाव के उपाय– घरों के आसपास पूर्ण साफ-सफाई की व्यवस्था सुनिश्चित करें। कचरे को अपने आवास से दूर फेंके। घरों के कूलर, टेंक, ड्रम, बाल्टी आदि से पानी खाली करें। कूलर का उपयोग नही होने का दशा में उसका पानी पूरी तरह खाली करें। घरों के आसपास पानी एकत्रित होने वाली सभी अनुपयोगी वस्तुएं जैसे -टीन के डब्बे, कॉच एव प्लास्टिक के बोतल, नारियल के खोल, पुराने टायर आदि नष्ट कर पाट दें तथा निस्तारी योग्य पानी में लार्वा पाए जाने पर टेमीफोस लार्वानाशक दवा का पानी की सतह पर छिड़काव करें। फ्रीज के ‘ड्रिप-पैन’ से पानी प्रतिदिन खाली करें। पानी संग्रहित करने वाले टंकी, बाल्टी, टब आदि सभी को हमेशा ढंककर रखें। प्रभावित क्षेत्र में प्रति सप्ताह रविवार के दिन डेंगू रोधी दिवस के रूप में मनाया जाए, जिसके अंतर्गत समस्त पानी के कंटेनरों को खाली किया जाए एवं घर में तथा आसपास साफ-सफाई अभियान के रूप में किए जाने के लिए लोगों को जागरूक किया जाए। 

 

Q7. खेल भावना से क्या तात्पर्य है ? 

Ans. खेल एक शारीरिक क्रिया है, जिसके खेलने के तरीकों के अनुसार उसके अलग-अलग नाम होते हैं। खेल लगभग सभी बच्चों द्वारा पसंद किए जाते हैं, चाहे वे लड़की हो या लड़का। आमतौर पर, लोगों द्वारा खेलों के लाभ और महत्व के विषय में कई सारे तर्क दिए जाते हैं। और हाँ, हरेक प्रकार का खेल शारीरिक, मानसिक, मनोवैज्ञानिक और बौद्धिक स्वास्थ्य के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। यह एक व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है। नियमित रुप से खेल खेलना हमारे मानसिक कौशल के विकास में काफी सहायक होता है। यह एक व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक कौशल में भी सुधार करता है। यह हमारे अंदर प्रेरणा, साहस, अनुशासन और एकाग्रता लाने का कार्य करता है। स्कूलों में खेल खेलना और इनमें भाग लेना विद्यार्थियों के कल्याण के लिए आवश्यक कर दिया गया है। खेल, कई प्रकार के नियमों द्वारा संचालित होने वाली एक प्रतियोगी गतिविधि है। 

 

Q8. मलेरिया के प्रकारों का वर्णन कीजिए। 

Ans. मलेरिया रोग एनाफिलीज मादा मच्छर के काटने से होता है। इस प्रजाति के मच्छर बारिश के मौसम में अधिक होते है। क्यूंकि बारिश का पानी अधिक दिनों तक जमा होने की वजह से दूषित हो जाता है और यही इसी प्रजाति के मच्छर की उत्पत्ति होती है। मलेरिया के मच्छर के काटने की वजह से व्यक्ति को बुखार और सिर दर्द आना शुरू हो जाता है। 

मलेरिया के प्रकार –

(i) प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम– यह मलेरिया परजीवी आमतौर पर अफ्रीका में पाया जाता है इसकी वजह से रोगी को ठंड लगने के साथ सिर दर्द भी होता है 

(ii) प्लास्मोडियम विवैक्स– यह विवैक्सी परजीवी दिन के समय में काटता है और इसका असर 48 घंटे बाद दिखना शुरू होता है इस रोग की वजह से सर में दर्द होना, हाथ – पैरो में दर्द होना, भूख न लगना और तेज बुखार भी रहता है। 

(iii) प्लास्मोडियम ओवेल– यह असामान्य परजीवी है और यह पश्चिम अफ्रीका में पाया जाता है इसमें रोगी में लक्षण के उत्पादन के बिना यह अनेक वर्षों तक लिवर में रहे सकता है।

(iv) प्लास्मोडियम मलेरिया– यह मलेरिया प्रोटोजोआ का एक प्रकार है। इस रोग की वजह से रोगी को प्रत्येक चौथे दिन बुखार आने लगता है और शरीर में प्रोटीन की मात्रा कम होने की वजह से शरीर में सूजन आने लगती है।

(v) प्लास्मोडियम नॉलेसि– यह परिजिवी आमतौर पर दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है और यह एक प्राइमेट मलेरिया परजीवी है। इसमें रोगी को ठंड लगने के साथ बुखार आता है और रोगी को सिर दर्द, भूख न लगना, बुखार जैसे परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

 

Q9. व्यावसायिक स्वास्थ्य से क्या अभिप्राय है ? 

Ans. व्यावसायिक स्वास्थ्य के कार्य वातावरण में लोगों की शारीरिक, बौद्धिक और सामाजिक भलाई के लिए बनाई गई रणनीतियों की एक सभा है। विभिन्न विषयों व्यावसायिक स्वास्थ्य में हस्तक्षेप करते हैं जो स्वच्छता और औद्योगिक सुरक्षा, संगठनात्मक मनोविज्ञान, व्यावसायिक चिकित्सा, पर्यावरण, श्रम कानून जैसे कई अन्य प्रथाओं के साथ विभिन्न विषयों से निपटते हैं। व्यावसायिक स्वास्थ्य चाहता है कि काम आदमी और आदमी को काम करने के लिए प्रेरित करता है हर तरह से एक सामंजस्यपूर्ण और स्वस्थ तरीके से। व्यावसायिक स्वास्थ्य इसे कई कंपनियों में शिक्षा अभियानों के माध्यम से भलाई, सुरक्षा, स्वच्छता, कार्य कुशलता, समाजक्षमता और कई अन्य कारकों में लागू किया जाता है जो कार्य वातावरण में हस्तक्षेप करते हैं। वर्तमान में हर कंपनी को व्यावसायिक स्वास्थ्य नीतियों को स्वीकार करना चाहिए।

 

Q10. खेल मनोविज्ञान का अर्थ स्पष्ट करें। 

Ans. खेल मनोविज्ञान से अभिप्राय खेलकूद और शारीरिक शिक्षा से संबंधित मनोवैज्ञानिक पहलुओं से है। खेलों को शरीर के विकास के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है और मनोविज्ञान का संबंध मनुष्य के शरीर और मन के विकास से होता है, इसलिए खेल मनोविज्ञान को व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।

 

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