Class 12 Political Science Half Yearly Question Paper 2025 Answer Key

Class 12 Political Science Half Yearly Question Paper 2025 Answer Key (NCERT Based)

Instructions :
• All questions are compulsory.
• Questions (1-10) carry 1 mark each.
• Questions (11-14) carry 2 marks each.
• Questions (15-18) carry 3 marks each.
• Questions (19-20) carry 5 marks each.

1. भारत और चीन के मध्य अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा कौन-सी है?
(A) मैकमोहन रेखा
(B) रेडक्लिफ रेखा
(C) नेहरू रेखा
(D) माओं रेखा
उत्तर – (A) मैकमोहन रेखा

2. भारत के प्रथम चुनाव आयुक्त कौन थे?
(A) बलराम जाखड
(B) सुकुमार सेन
(C) हुकुम सिंह
(D) शिवराज पाटिल
उत्तर – (B) सुकुमार सेन

3. स्वतंत्रता के बाद भारत में भाषा के आधार पर बना पहला राज्य कौन-सा था?
(A) गुजरात
(B) असम
(C) आंध्र प्रदेश
(D) राजस्थान
उत्तर – (C) आंध्र प्रदेश

4. भारत का ‘आयरनमैन’ किसे कहा जाता है?
(A) महात्मा गांधी
(B) सुभाष चंद्र बोस
(C) राजेंद्र प्रसाद
(D) सरदार पटेल
उत्तर – (D) सरदार पटेल

5. ‘भारतीय स्वतंत्रता कानून’ कब पारित हुआ?
(A) वर्ष 1947 में
(B) वर्ष 1946 में
(C) वर्ष 1948 में
(D) वर्ष 1949 में
उत्तर – (A) वर्ष 1947 में

6. आजादी के बाद भारत में कैसी अर्थव्यवस्था लागू की गई?
उत्तर – मिश्रित अर्थव्यवस्था

7. भारत में कौन-सा भाषाई फार्मूला लागू किया गया है?
उत्तर – त्रिभाषा फार्मूला (तीन भाषा सूत्र)

8. भारत में दूसरी पंचवर्षीय योजना ………….. में लागू की गई थी।
उत्तर – 1956 में

9. 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया। (सही / गलत)
उत्तर – गलत (गरीबी हटाओ का नारा 1971 मे दिया)

10. अभिकथन (A) : ‘जय जवान, जय किसान’ नारे का संबंध श्री लाल बहादुर शास्त्री से है।
कारण (R) : 1967 के चुनावों में कांग्रेस लोकसभा के चुनाव भी हारी और विधानसभा के भी।
(A) अभिकथन और कारण दोनों सत्य हैं और कारण अभिकथन का सही स्पष्टीकरण है।
(B) अभिकथन और कारण दोनों सत्य हैं, लेकिन कारण अभिकथन का सही स्पष्टीकरण नहीं है।
(C) अभिकथन सत्य है लेकिन कारण असत्य है।
(D) अभिकथन असत्य है लेकिन कारण सत्य है।
उत्तर – (C) अभिकथन सत्य है लेकिन कारण असत्य है।

11. सांप्रदायिकता का क्या अर्थ है ?
उत्तर – साम्प्रदायिकता का अर्थ है अपने समुदाय के प्रति एक मजबूत लगाव, यह किसी का अपना धर्म, क्षेत्र या भाषा हो सकता है। यह समुदायों के बीच हितों के अंतर को बढ़ावा देता है जो समुदायों के बीच शत्रुता के प्रति असंतोष पैदा कर सकता है। भारत में सांप्रदायिकता एक विशिष्ट रूप में पायी जाती है।

12. भारत की दलीय व्यवस्था के कोई दो लक्षण बताईए।
उत्तर – भारत की दलीय व्यवस्था के दो प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं :
(i) बहुदलीय व्यवस्था – भारत में अनेक राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं। देश की सामाजिक, भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के कारण यह बहुदलीय प्रणाली विकसित हुई है।
(ii) क्षेत्रीय दलों की बढ़ती भूमिका – क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों या क्षेत्रों के हितों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और केंद्र की राजनीति में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

13. किन्हीं तीन कारकों का विश्लेषण करें जिन्होंने 1970 के दशक की शुरुआत में इंदिरा गांधी की लोकप्रियता को बढ़ाया।
उत्तर – श्रीमती इंदिरा गांधी की लोकप्रियता के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारक :
(i) ‘गरीबी हटाओ’ का लोकप्रिय नारा
(ii) बैंकों का राष्ट्रीयकरण
(iii) प्रिवी पर्स की समाप्ति
(iv) भूमि सुधार कानून और भूमि सीमा अधिनियम

14. मिश्रित अर्थव्यवस्था का क्या अर्थ है?
उत्तर – मिश्रित अर्थव्यवस्था वह आर्थिक व्यवस्था है जिसमें सरकार और निजी क्षेत्र दोनों मिलकर देश की आर्थिक गतिविधियों का संचालन करते हैं। इस व्यवस्था में सार्वजनिक और निजी स्वामित्व दोनों का सह-अस्तित्व होता है, तथा बाजार की शक्तियों के साथ सरकारी नियोजन भी कार्य करता है। इसका उद्देश्य आर्थिक विकास के साथ सामाजिक न्याय और समान अवसर सुनिश्चित करना होता है।

15. भारत में हरित क्रांति अपनाने के कोई तीन कारण लिखिए।
उत्तर – भारत में हरित क्रांति अपनाने के तीन मुख्य कारण :
(i) खाद्यान्न की कमी – 1960 के दशक में भारत में लगातार खाद्यान्न की कमी और अकाल जैसी स्थिति पैदा हो रही थी। इससे भूखमरी का खतरा बढ़ गया और देश की आर्थिक स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। इस स्थिति ने यह स्पष्ट कर दिया कि देश में पर्याप्त खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है।
(ii) जनसंख्या वृद्धि – उस समय भारत की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही थी। बढ़ती जनसंख्या के कारण भोजन की मांग लगातार बढ़ रही थी और पारंपरिक कृषि पद्धतियों से इस बढ़ती मांग को पूरा करना कठिन हो रहा था। इससे यह आवश्यक हो गया कि कृषि उत्पादन में सुधार करके अधिक अन्न उत्पादन किया जाए।
(iii) कृषि उत्पादन में वृद्धि की आवश्यकता – पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ सीमित उत्पादन देती थीं और अधिकांश किसानों की पैदावार काफी कम थी। इसलिए उच्च उपज देने वाले बीज, आधुनिक सिंचाई तकनीक, उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग करके अन्न उत्पादन बढ़ाना और देश को आत्मनिर्भर बनाना जरूरी था।

16. किन बातों के कारण गोर्बाचोव सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए?
उत्तर – गोर्बाचोव को सोवियत संघ में सुधार करने के लिए कई कारणों से प्रेरित किया गया था। यहाँ कुछ मुख्य कारण दिए जा रहे हैं :
(i) आर्थिक समस्याएं – सोवियत संघ में आर्थिक समस्याएं थीं, जैसे की उत्पादन में कमी, अर्थव्यवस्था में स्थिरता, और भूमि की अनुपयुक्त उपयोग। इन समस्याओं के समाधान के लिए सुधार की आवश्यकता थी।
(ii) राजनीतिक अस्थिरता – सोवियत संघ में राजनीतिक अस्थिरता और प्रतिबंधों की स्थिति थी, जिससे लोगों की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध था। गोर्बाचोव ने इसे सुधारने का प्रस्ताव किया।
(iii) सामाजिक परिवर्तन – सोवियत समाज में सामाजिक परिवर्तन की मांग थी, जैसे की मीडिया की स्वतंत्रता, मनोरंजन की पहुंच, और मनोरंजन की मुक्ति।
(iv) अंतर्राष्ट्रीय दबाव – सोवियत संघ के पास अंतर्राष्ट्रीय दबाव होने के कारण, गोर्बाचोव को सुधार के माध्यमों पर ध्यान देने की आवश्यकता महसूस हुई।
(v) नेतृत्व की प्रेरक – गोर्बाचोव को एक प्रेरक नेता माना जाता था, जिन्होंने सोवियत संघ में सुधार के लिए प्रेरित किया।

17. कांग्रेस में फूट के क्या कारण थे?
उत्तर – कांग्रेस में 1969 में फूट के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे :
(i) नेतृत्व संघर्ष – पार्टी के वरिष्ठ नेता ‘सिंडिकेट’ और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीच सत्ता और निर्णय लेने को लेकर मतभेद थे। इंदिरा गांधी ने अपने समर्थकों की संख्या बढ़ाई और पार्टी एवं सरकार पर अपनी पकड़ मजबूत की, जिससे पारंपरिक नेताओं की स्थिति कमजोर हुई और टकराव बढ़ गया।
(ii) राष्ट्रपति चुनाव विवाद – 1969 के राष्ट्रपति चुनाव में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार का विरोध करते हुए वी.वी. गिरी को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में समर्थन दिया। इस कदम ने पार्टी में गहरी खाई पैदा कर दी और मतभेद स्पष्ट हो गए।
(iii) विचारधारात्मक मतभेद – इंदिरा गांधी ने गरीब जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए समाजवादी नीतियाँ अपनाईं, जैसे बैंकों का राष्ट्रीयकरण और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम। जबकि ‘सिंडिकेट’ के नेता इन नीतियों के विरोधी थे और पारंपरिक दृष्टिकोण के पक्षधर थे। इस विचारधारात्मक अंतर ने फूट को और बढ़ावा दिया।

18. राज्य पुनर्गठन आयोग का क्या काम था? इसकी प्रमुख शिफारिशें क्या थी?
उत्तर – केन्द्र सरकार ने सन् 1953 में भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के लिए एक आयोग बनाया। फजल अली की अध्यक्षता में गठित इस आयोग का कार्य राज्यों के सीमांकन के मामले पर कार्रवाई करना था। इसने अपनी रिपोर्ट में स्वीकार किया कि राज्यों को सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए।
• राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशें :
(i) भारत की एकता व सुरक्षा की व्यवस्था बनी रहनी चाहिए।
(ii) राज्यों का गठन भाषा के आधार पर किया जाए।
(iii) भाषाई और सांस्कृतिक सजातीयता का ध्यान रखा जाए।
(iv) वित्तीय तथा प्रशासनिक विषयों की ओर उचित ध्यान दिया जाए।
इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर सन् 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केन्द्रशासित प्रदेश बनाए गए।

19. राष्ट्र निर्माण के तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर – राष्ट्र निर्माण का अर्थ है एक ऐसा मजबूत और एकजुट राष्ट्र तैयार करना, जिसमें लोग, भूभाग, सरकार और संप्रभुता के आधार पर समाज और राज्य का समग्र विकास हो। राष्ट्र निर्माण केवल राजनीतिक या आर्थिक पहलू तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक सक्रियता का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है।
• राष्ट्र निर्माण के मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं :
(i) जनसंख्या – राष्ट्र के लिए एक निश्चित संख्या में लोग होना आवश्यक है। ये लोग राष्ट्र के सदस्य होते हैं और उनकी सक्रिय भागीदारी, सहयोग, उत्तरदायित्व और राष्ट्रीय भावना राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
(ii) निश्चित भूभाग – राष्ट्र के पास एक स्पष्ट और मान्यता प्राप्त भौगोलिक क्षेत्र होना चाहिए। इस क्षेत्र में सीमाएँ निश्चित होती हैं और यह न केवल राष्ट्र की स्थिरता और सुरक्षा के लिए जरूरी है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों के सुचारू संचालन के लिए भी आवश्यक है।
(iii) सरकार – हर राष्ट्र की अपनी सरकार होती है जो कानून बनाती है, उन्हें लागू करती है और नागरिकों के अधिकारों व कर्तव्यों की रक्षा सुनिश्चित करती है। मजबूत और सक्षम सरकार ही राष्ट्र को राजनीतिक स्थिरता, सुशासन और न्यायसंगत प्रशासन प्रदान कर सकती है।
(iv) संप्रभुता – राष्ट्र स्वतंत्र रूप से अपने आंतरिक और बाहरी मामलों में निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिए। संप्रभुता के बिना राष्ट्र अपनी नीति, आर्थिक योजना और विदेश संबंधों को स्वतंत्र रूप से निर्धारित नहीं कर सकता।
(v) सांस्कृतिक एकता – समान भाषा, धर्म, रीति-रिवाज और परंपराएं लोगों को जोड़ती हैं। यह साझा सांस्कृतिक आधार नागरिकों में एकजुटता और राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करता है, जिससे राष्ट्र के प्रति समर्पण और सामूहिक जिम्मेदारी की भावना उत्पन्न होती है।
(vi) राजनीतिक एकता – समान कानून और सुसंगत प्रशासन व्यवस्था नागरिकों को एक-दूसरे से जोड़ती है। यह राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने में सहायक है और समाज में अनुशासन, समरसता और न्याय की भावना को बढ़ावा देती है।
(vii) राष्ट्रीयता की भावना और नेतृत्व – लोगों में राष्ट्र के प्रति समर्पण और साझा उद्देश्य की भावना होना आवश्यक है। इसके साथ ही, दूरदर्शी नेतृत्व और मजबूत संस्थाएँ राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को दिशा और समर्थन प्रदान करती हैं, जिससे राष्ट्र अपने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक लक्ष्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त कर सके।

20. विदेश नीति का क्या अर्थ है? भारत की विदेश नीति के मुख्य सिद्धांतों का वर्णन करें।
उत्तर – विदेश नीति एक देश की बाहरी संबंधों और विदेशी राष्ट्रों के साथ संबंधों को नियंत्रित करने के लिए बनाई गई नीति है। इसका मुख्य उद्देश्य देश की सुरक्षा, समृद्धि, संरक्षण और प्रतिस्थापना को सुनिश्चित करना होता है।
• भारत की विदेश नीति के मुख्य सिद्धांतों में निम्नलिखित शामिल हैं :
(i) अपराधिकरण (Non-Alignment) – भारत की विदेश नीति का मुख्य सिद्धांत अपराधिकरण है, जिसका मतलब है किसी एक दल के साथ संबंध स्थापित नहीं करना। भारत ने हमेशा ही स्वतंत्रता, स्वायत्तता, और स्वाधीनता के मामले में अपनी स्वतंत्रता को महत्व दिया है।
(ii) प्राथमिकता (Priority) – भारत की विदेश नीति में प्राथमिकता उसके राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखने के लिए होती है। इसका मुख्य उद्देश्य है देश की सुरक्षा, समृद्धि, और समरसता को सुनिश्चित करना।
(iii) समरसता (Harmony) – भारत की विदेश नीति में समरसता को महत्व दिया जाता है, जिसका मतलब है सहयोग, समरसता, और समन्वय को प्रोत्साहित करना।
(iv) सहयोग (Cooperation) – भारत की विदेश नीति में सहयोग को महत्वपूर्ण माना जाता है, जो अन्य राष्ट्रों के साथ सहयोग, समरसता, और सहयोग के माध्यम से सुरक्षा, प्रगति, और समृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए होता है।
(v) सुलभता (Accessibility) – भारत की विदेश नीति में सुलभता को महत्वपूर्ण माना जाता है, जो संपर्क, पहुंच, और संबंधों को सुलभ बनाए रखने के माध्यम से सुनिश्चित होता है।